चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के उच्च आवृत्ति वाले संकेतकों से पता चलता है कि देश की अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे सुधार की राह पर बढ़ रही है और वैश्विक चुनौतियों के बावजूद इसमें मजबूती देखी जा रही है। ये बातें भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की वित्तीय स्थायित्व रिपोर्ट में कही गई हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बैंकों की गैर-निष्पादित आस्तियां (एनपीए) छह साल के सबसे कम स्तर पर हैं और लंबे अंतराल के बाद कर्ज की मांग नजर आ रही है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भू-राजनीतिक हालात, जिंसों के बढ़े हुए दाम, कच्चे तेल में तेजी और वित्तीय बाजार में उतार-चढ़ाव की चुनौतियों के बावजूद चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था के उच्च आवृत्ति के संकेतक पिछली तिमाही से अधिक तेजी का संकेत देते हैं मगर तेजी असमान है।’ रिपोर्ट के अनुसार कंपनियों की बिक्री और मुनाफे में बढ़ोतरी आई है मगर पूंजीगत निवेश चक्र में अभी टिकाऊ सुधार की जरूरत है। रिपोर्ट कहती है कि वैश्विक घटनाक्रम से उत्पन्न चुनौतियों के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था पुनरुद्धार की राह पर है।
रिपोर्ट में इसका विशेष उल्लेख किया गया है कि कच्चे तेल के दाम में अप्रत्याशित तेजी ने देश में मुद्रास्फीति पर प्रतिकूल असर डाला है और इसकी वजह से पेट्रालियम उत्पादों के दाम बढ़ गए हैं, जिसका परोक्ष असर अन्य वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों पर भी पड़ा है।
रिजर्व बैंक के अनुमान के अनुसार कच्चे तेल का दाम 100 डॉलर प्रति बैरल पहुंचने के बाद हर 10 फीसदी वृद्धि से देश में मुद्रास्फीति 30 आधार अंक बढ़ सकती है और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि 20 आधार अंक घट सकती है। आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष के लिए वृद्धि और मुद्रास्फीति का अनुमान लगाते समय कच्चे तेल के दाम 105 डॉलर प्रति बैरल तक रहने का अनुमान लगाया था।
इस बीच बैंकों की उधारी वृद्धि में लगातार तेजी आ रही है। रिपार्ट में कहा गया है कि कर्ज की मांग में वृद्धि दो अंक में पहुंच गई है और कर्ज-नुकसान अनुपात में सुधार के साथ सकल एनपीए 6 साल के निचले स्तर पर आ गया है। रिपोर्ट कहती है, ‘मार्च 2022 में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों का एनपीए 6 साल के सबसे कम स्तर 5.9 फीसदी रह गया है और शुद्ध एनपीए अनुपात घटकर 1.7 फीसदी रह गया है। प्रोविजनिंग कवरेज अनुपात (पीसीआर) मार्च 2021 में 67.6 फीसदी था, जो मार्च 2022 में 70.9 फीसदी हो गया है।’
उधारी जोखिम के लिए वृहद-दबाव परीक्षण से पता चलता है कि अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के पास पर्याप्त पूंजी है और सभी बैंक प्रतिकूल दबाव की स्थिति में भी न्यूनतम पूंजी आवश्यकता को पूरा करने में सक्षम हैं। आरबीआई ने कहा, ‘बैंकों की पूंजी और तरलता की स्थिति में सुधार हुआ है और परिसंपत्ति की गुणवत्ता भी सुधरी है। गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को भी पर्याप्त पूंजी उपलब्ध है।’
पिछले वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में भी बैंकिंग क्षेत्र के दक्षता संकेतक में सुधार दिखा था। इसके साथ ही सुदृढ़ता के संकेतक से पता चलता है कि बैंकों के पास पर्याप्त पूंजी बफर है और पूंजी पर्याप्तता अनुपात 18 आधार अंक बढ़कर 16.7 फीसदी हो गया है। हालांकि तरलता-कवरेज अनुपात में कमी के कारण 2021-22 की दूसरी छमाही में तरलता जोखिम संकेतक में मामूली गिरावट आई है, लेकिन यह 100 फीसदी की नियामकीय जरूरत से अब भी ऊपर है।