परिचालन संबंधी कठिनाइयों, कोविड-19 के कारण यात्रियों की संख्या में गिरावट और भारतीय रेलवे से प्रतिस्पर्धा के डर की वजह से रेलवे के निजीकरण की पहली कवायद पटरी से उतर गई है।
इस क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि इन निजी रेलगाडिय़ों को लोकप्रिय मार्गों पर भारतीय रेलवे की राजधानी एक्सप्रेस जैसी उच्च रफ्तार रेलगाडिय़ों से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ेगी। निजी कारोबारी सेवाओं, रफ्तार, कुशलता की बराबरी करने की कवायद कर सकते हैं, लेकिन भारतीय रेल द्वारा इन सेवाओं के लिए तय किराये का मुकाबला करना मुश्किल होगा। एक स्वतंत्र नियामक का अभाव भी इस क्षेत्र में उतरने को इच्छुक कारोबारियों को रोक रहा है, जो तय करे कि रेल मंत्रालय निजी और सरकारी ट्रेनों को एकसमान मौका देगा।
आधिकारिक रूप से सरकार ने कहा है कि पहले दौर की बोली खत्म नहीं की गई है और मूल्यांकन हो रहा है। लेकिन रेल मंत्रालय नीलामियों और निजी बोलीकर्ताओं की कम संख्या पर फिर से विचार कर रहा है। इसमें 15 कारोबारियों ने रुचि दिखाई थी, लेकिन भारतीय रेल खानपान एवं पर्यटन निगम (आईआरसीटीसी) और मेघा इंजीनियरिंग ऐंड इन्फ्रास्ट्रक्चर (एमईआईएल) ही बोली के लिए सामने आईं।
आईआरसीटीसी की चिंता
अधिकारियों के मुताबिक आईआरसीटीसी को निजी ट्रेन के परिचालन के वितत्तपोषण में कठिनाई आ रही है। इसने सरकारी उद्यम भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स (बीएचईएल) से निजी ट्रेन परिचालन के वित्तपोषण के लिए शुरुआती बात की है। हालांकि इसका कोई परिणाम नहीं निकल सका और आईआरसीटीसी ने निजी ट्रेन चलाने के लिए किसी की मदद की खुली पेशकश की। लेकिन इसमें ज्यादा प्रगति नहीं हो सकी और आईआरसीटीसी ने रेल मंत्रालय को इन असफल कवायदों के बारे में सूचित कर दिया है। उस समय स्थिति और जटिल हो गई, जब आईआरसीटीसी ने महामारी के कारण 3 प्रीमियम ट्रेन सेवाओं में कटौती कर दी। आईआरसीटीसी ने 2 तेजस ट्रेन और एक काशी महाकाल एक्सप्रेस ट्रेन चलाई थी। हालांकि तेजस की सेवाएं बहाल कर दी गई हैं। एक अधिकारी ने कहा, ‘हमने रेल मंत्रालय से कहा है कि हम काशी महाकाल एक्सप्रेस नहीं चलाना चाहते।’
निजी क्षेत्र की आशंका
आईआरसीटीसी द्वारा निजी ट्रेन चलाने पर निजी ट्रेन ऑपरेटरों की नजर थी, जिन्होंने महसूस किया कि उनका सौदा कच्चा साबित हो सकता है। यह स्वतंत्र नियामक न होने की वजह से हुआ। डेलॉयट इंडिया के सरकारी व निजी सेवाओं के लीडर और पार्टनर अरिंदम गुहा ने कहा, ‘सबसे अहम सुधार स्वतंत्र नियामक की नियुक्ति है, जो दोनों ऑपरेटरों को वस्तुनिष्ठ तरीके से देखे। सरकार का नियामक और ऑपरेटर के रूप में कामकाज में अंतर होना जरूरी है।’ नियामक के काम का उल्लेख करते हुए गुहा ने कहा, ‘नियामक की पहली प्राथमिकता ट्रैक साझा करने करने पर फैसला करना है। मसला यह है कि सरकारी व निजी ट्रेनों के लिए साझा ट्रैक हैं। नियामक को तय करना होगा कि समय सारिणी का पालन हो और ट्रैक समान रूप से साझा किए जाएं।’