पूर्वी और पश्चिमी समर्पित माल ढुलाई गलियारों (डीएफसी) की बढ़ी हुई 43,000 करोड़ रुपये लागत का बोझ केंद्र सरकार खुद वहन कर सकती है। इस परियोजना की 75 प्रतिशत लागत के लिए बहुपक्षीय निकायों ने धन मुहैया कराया है।
डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर कॉर्पोरेशन आफ इंडिया (डीएफसी) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘पूर्वी डीएफसी पहले ही पूरा हो चुका है। पश्चिमी गलियारे के बचे हिस्से पर 10,000 से 12,000 करोड़ रुपये लागत आएगी और यह सरकार के समर्थन से भी पूरा किया जा सकता है।’अधिकारी ने कहा कि अंतिम लागत ढांचे में संशोधन किया जा सकता है, जब केंद्रीय मंत्रिमंडल संशोधित लागत अनुमान को मंजूरी दे देगा।
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि बहुपक्षीय एजेंसियां बढ़ी लागत के लिए अतिरिक्त धन देने को इच्छुक हैं, लेकिन केंद्र सरकार इन खर्चों को, खासकर रेलवे की योजनाओं को आक्रामक पूंजीगत व्यय से पूरा करना चाहती है। पिछले साल रेल मंत्रालय ने 2 डीएफसी के लिए संशोधित लागत का अनुमान तैयार किया था, जो पहले 81,000 करोड़ रुपये लागत से बनने का अनुमान था। इस समय इसकी लागत 54 प्रतिशत बढ़कर 1.24 लाख करोड़ रुपये हो गया है, जिसमें पूरे हो चुके पूर्वी गलियारे पर 51,000 करोड़ रुपये लागत, जबकि निर्माणाधीन पश्चिमी गलियारे की लागत 73,000 करोड़ रुपये है।
संशोधित लागत में भूमि अधिग्रहण पर आने वाला 21,846 करोड़ रुपये और निर्माण व अन्य लागत पर आने वाला 1.02 लाख करोड़ रुपये खर्च शामिल है।डीएफसीसी के प्रबंध निदेशक आरके जैन के मुताबिक लागत में कुछ बदलाव शुरुआती परियोजना की योजना में बदलाव है, जो वर्षों पहले किए गए और उन्हें स्वीकार करना जरूरी था। डीएफसी में विशेष उद्देश्य इकाई में 3 और 1 का ऋण इक्विटी अनुपात है। पूर्वी गलियारे में केंद्रीय रेल मंत्रालय ने 3,679 करोड़ रुपये इक्विटी डाली है और इसके लिए विश्व बैंक से ऋण मिला है। वहीं पश्चिमी गलियारे का वित्तपोषण पूरी तरह ऋण से किया गया है और जापान इंटरनैशनल कोऑपरेशन एसोसिएशन ने इसके लिए ऋण मुहैया कराया है।
डीएफसी को 15 साल से ज्यादा पहले मंजूरी मिली थी। भूमि अधिग्रहण को लेकर इसमें कुछ कठिनाइयां आईं, ठेका देने में, सलाहकार नियुक्त करने, ऋण की मंजूरी में देरी हुई। और हाल में कोविड-19 के कारण इस पर असर पड़ा। इसकी वजह से परियोजना में देरी होने की वजह से लागत बढ़ गई।
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पूर्वी डीएफसी को 538 किलोमीटर घटाने और बिहार व पश्चिम बंगाल के बीच के इस महत्त्वपूर्ण खंड को मिश्रित इस्तेमाल वाले रेलवे ट्रैक के रूप में बनाने का फैसला किया था।