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जीडीपी में 23.9 प्रतिशत गिरावट और लोगों की नौकरियां जाना अर्थव्यवस्था में मंदी?

Last Updated- December 15, 2022 | 2:32 AM IST

चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद में 23.9 फीसदी का संकुचन आने से ऐसा लगता है कि अर्थव्यवस्था मुद्रास्फीति जनित मंदी की चपेट में आ गई है। अर्थव्यवस्था में इतना अधिक संकुचन आने से लोगों की नौकरियां जा रही हैं और उपभोक्ता मूल्य महंगाई (सीपीआई) लगातार चौथे महीने भारतीय रिजर्व बैंक की 6 फीसदी की सीमा के पार जा रही है। मौजूदा परिस्थिति में अर्थशास्त्रियों ने सरकार और केंद्रीय बैंक को चेताया है। सरकार और रिजर्व बैंक वृद्धि को पटरी पर लाना चाहते हैं जिसके लिए उन्हें यह सतर्क किया गया है कि इन नीतियों की वजह से महंगाई में और इजाफा न होने पाए।    
नैशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च में विशिष्य फेलो सुदीप्त मुंडले ने कहा, ‘अर्थव्यवस्था गंभीर रूप से मुद्रास्फीति जनित मंदी में प्रवेश कर गई है। इसका इससे बाहर निकलना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। वृद्धि दर को हासिल करने के लिए राजकोषीय और मौद्रिक नीति में बदलाव किया जाना चाहिए और इस दौरान महंगाई को भी काबू में रखा जाना चाहिए।’  
मुद्रास्फीति जनित मंदी मंद आर्थिक वृद्धि की स्थिति होती है जिसमें तुलनात्मक रूप से उच्च बेरोजगारी या आर्थिक गतिहीनता की स्थिति होती है। साथ ही यह अपने साथ बढ़ती महंगाई भी लाती है। एशियाई विकास बैंक और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की एक हालिया रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 2020 में भारत में 41 से 61 लाख नौकरियां जाएंगी जो कोविड-19 के कारण लगाए गए लॉकडाउन के दायरे पर निर्भर करेगा।     
यह पूछने पर कि क्या खरीफ की बंपर पैदावार से खाद्य महंगाई में कमी आएगी जो उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) महंगाई का एक अहम हिस्सा है, इसके जवाब में उन्होंने कहा कि इससे कुछ हद तक महंगाई को काबू करने में मदद मिलेगी लेकिन  महंगाई को काफी नीचे लाने में यह सहायक नहीं होगी। अप्रैल में खुदरा खाद्य महंगाई 10.48 फीसदी थी जो अगले महीने मामूली घटकर 9.2 फीसदी और जून में कम होकर 8.72 फीसदी रही थी।  हालांकि, जुलाई में इसमें फिर से उछाल आई और यह 9.62 फीसदी के स्तर पर पहुंच गई। उल्लेखनीय है कि रिजर्व बैंक अप्रैल और मई की महंगाई के आंकड़ों को स्वीकार नहीं करता है क्योंकि इनकी गणना आरोपित तरीके से की गई थी जिसके तहत समान श्रेणी के उत्पादों कीमत का सहारा लिया गया था। ऐसा कोविड-19 के कारण लगाएगा लॉकडाउन में सभी कीमत बिंदु उपलब्ध नहीं नहीं होने की वजह से किया गया था। मुंडले ने कहा कि महंगाई पर दबाव गैर खाद्य उत्पादों की आपूर्ति को लगे झटके के कारण से है। खाद्य वस्तुओं की आपूर्ति के रास्ते में लॉजिस्टिक बाधा भी आ रही है लेकिन बाकी दिक्कत उत्पादन संबंधी है जो कि कृषि में नहीं है।
उन्होंने कहा, ‘इसलिए मेरा मत है कि वित्तीय प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए जिसकी भरपाई आंशिक तौर पर मुद्रीकरण से हो जाएगी लेकिन महंगाई दर को दहाई अंक में नहीं पहुंचने देना चाहिए।’  
उन्होंने कहा कि यदि सरकार अर्थव्यवस्था में निवेश के जरिये गतिविधियों को बढ़ावा नहीं देती है तो महंगाई 2 अंकों में नहीं जाएगी।     
मुंडले ने चेताया, ‘यदि सरकार ऐसा करती है तो महंगाई दर दो अंकों में पहुंच जाएगी। यह एक मुश्किल काम है क्योंकि महंगाई और वृद्धि का आपस में टकराव होता है। यह कोई सरल काम नहीं है इसीलिए राजकोषीय और मौद्रिक नीतियों में बदलाव किया जाना चाहिए।’  
बैंक के पूर्व गवर्नर सी रंगराजन मुद्रास्फीति जनित मंदी यानी स्टैगफ्लेशन का उपयोग तो नहीं करते लेकिन इस बात पर सहमत हैं कि यदि व्यवस्था में तरलता मुहैया कराई गई तो इससे महंगाई बढ़ेगी।  
पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद प्रणव सेन इस बात से सहमत नहीं है कि फिलहाल समूची अर्थव्यवस्था मुद्रास्फीति जनित मंदी की चपेट में है। उन्होंने आश्चर्य जताते हुए कहा, ‘हम किस तरह की मंदी की बात कर रहे हैं।’
उन्होंने ध्यान दिलाया कि सीपीआई अपने चरम से ढलान पर है वहीं थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) में कमी आ रही है या कीमतों में कमी आ रही है।  उन्होंने कहा सीपीआई और डब्ल्यूपीआई महंगाई दरों में हमेशा ही अंतर होता है लेकिन दोनों दलों का विपरीत दिशा में होना सामान्य बात नहीं है।
उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में उपभोक्ताओं के लिए मंदी की स्थिति हो सकती है लेकिन उत्पादकों के लिहाज से ऐसी स्थिति नहीं है।     
उन्होंने कहा ये दोनों महंगाई दरें विपरीत दिशा में क्यों बढ़ रही हैं इसके लिए उचित विश्लेषण किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा इसकी एक वजह यह हो सकती है कि व्यापारियों को ऋण नहीं मिल पा रहा है जिसके कारण उन्हें उत्पादकों से माल उठाकर खुदरा कारोबारियों तक पहुंचाने में मुश्किल आ रही है। हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया कि यह उनका महज अनुमान है और  वृद्धि में सुधार लाने के लिए सटीक उपाय करने के लिए इस मामले में उचित जांच की जानी चाहिए।     
इक्रा की प्रधान अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि एक जोखिम यह है कि मौजूदा समय में संक्रमण में तेजी आने से स्थानीय स्तर पर लॉकडाउन को बढ़ाने पर मजबूर होना पड़ सकता है जिससे आपूर्ति व्यवस्था और अधिक चरमरा सकती है। इसके परिणाम स्वरूप महंगाई दर में कमी नहीं आ पाएगी और उत्पादन में सुधार नहीं हो पाएगा। 

First Published - September 6, 2020 | 11:37 PM IST

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