Trump Tariffs: भारतीय दवा कंपनियों पर अमेरिका के ब्रांडेड या पेटेंटेड दवाओं पर लगाए जाने वाले 100 प्रतिशत टैरिफ का सीधा असर फिलहाल कम रहने की उम्मीद है। वजह यह है कि भारत मुख्य रूप से जेनेरिक दवाओं का निर्यात करता है, जो इन टैरिफ के दायरे में नहीं आतीं। हालांकि, एनालिस्ट्स का कहना है कि सन फार्मा, बायोकॉन और ऑरोबिंदो जैसी कंपनियों पर थोड़ा बहुत नेगेटिव असर पड़ सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि उनका अमेरिकी ब्रांडेड दवाओं के बाजार से जुड़ाव है। इस बीच, शुक्रवार (26 सितंबर) सुबह निफ्टी फार्मा इंडेक्स 1.7% गिरा। सन फार्मा का शेयर 1.8%, बायोकॉन 2.56% और ऑरोबिंदो लगभग 1% नीचे आया।
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने सोशल मीडिया पर घोषणा की कि अमेरिका के बाहर बनी ब्रांडेड और पेटेंटेड दवाओं पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगाया जाएगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि जिन कंपनियों ने अमेरिका में निर्माण संयंत्र शुरू कर दिया है या निर्माणाधीन हैं। उन्हें इस नियम से छूट मिल सकती है। कुछ सप्ताह पहले ही ट्रंप ने यूरोप में बनी ब्रांडेड दवाओं पर 15 प्रतिशत टैरिफ की घोषणा की थी।
नूवामा रिसर्च ने बताया कि सन फार्मा ने वित्त वर्ष 2024-25 में नई दवाओं से 1.1 अरब डॉलर की कमाई की है। बायोकॉन की ब्रांडेड बायोसिमिलर दवाओं से कमाई 45 करोड़ डॉलर से कम है। वहीं, ऑरोबिंदो की ब्रांडेड कैंसर दवाओं से 10 करोड़ डॉलर की आमदनी है। ये तीनों कंपनियां अमेरिकी बाजार में अपनी जगह बना रही हैं।
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वहीं, जुबिलेंट फार्मोवा के लिए यह स्थिति सकारात्मक हो सकती है। कंपनी की अमेरिका-स्थित स्पोकेन (वॉशिंगटन) में फिल-फिनिश सुविधा वित्त वर्ष 2025-26 की दूसरी छमाही में शुरू होने वाली है। अल्केम भी अमेरिका में छोटा सीडीएमओ यूनिट स्थापित कर रहा है। इससे भविष्य में मांग बढ़ने की संभावना है।
इंडियन फार्मास्युटिकल एलायंस ने कहा कि भारतीय कंपनियों पर असर सीमित रहेगा। संगठन के महासचिव सुधर्शन जैन ने कहा, ”राष्ट्रपति की पोस्ट पेटेंटेड/ब्रांडेड दवाओं पर लागू है। यह जेनेरिक दवाओं पर लागू नहीं होती।”
भारत अमेरिका को जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। 2025 की पहली छमाही में ही भारत से 3.7 अरब डॉलर की दवाओं का निर्यात हुआ। अमेरिका में कुल दवा खपत का 90 प्रतिशत जेनेरिक है। जबकि मूल्य के हिसाब से इनकी हिस्सेदारी 10 प्रतिशत है। ऐसे में जेनेरिक पर टैरिफ न लगना भारतीय उद्योग के लिए सकारात्मक है।
एनालिस्ट्स का कहना है कि जटिल या स्पेशलिटी जेनेरिक भविष्य में जांच के दायरे में आ सकते हैं। चूंकि अमेरिका भारतीय दवा कंपनियों का सबसे बड़ा बाजार है, इसलिए टैरिफ का दायरा बढ़ने पर निर्यात वृद्धि पर असर पड़ सकता है। वर्तमान में हेडलाइन जोखिम अधिक है लेकिन परिचालन जोखिम कम। कई पहलुओं पर अभी स्पष्टता नहीं है और आगे नियामक दिशा-निर्देश आने की उम्मीद है।
विश्लेषकों ने यह भी कहा कि यह टैरिफ एपीआई, फिल-फिनिश उत्पादों या डिवाइस मैन्युफैक्चरिंग पर लागू नहीं होता। बड़ी बहुराष्ट्रीय फार्मा कंपनियां अमेरिका में बड़े निवेश (कैपेक्स) की घोषणा कर चुकी हैं। जैसे एस्ट्राजेनेका, जेएंडजे, रोश, नोवार्टिस, सनोफी और एबवी।
इन निवेशों के चलते अमेरिकी कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग की मांग बढ़ सकती है। इससे अमेरिकी सुविधाओं को लाभ मिलेगा। वहीं, भारत और एशिया की सीडीएमओ कंपनियां अगले कुछ वर्षों तक मौजूदा अनुबंधों पर काम जारी रख सकेंगी।