अमेरिका के बच्चों के लिए, डॉनल्ड ट्रंप सरकार द्वारा चीन जैसे देशों पर लगाए गए टैरिफ (आयात शुल्क) वास्तव में अब बच्चों का खेल नहीं रहा है क्योंकि इस क्रिसमस सीजन में खिलौनों की कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचने का अनुमान है। हालांकि, भारत के खिलौना निर्यात उद्योग के लिए अमेरिकी टैरिफ एक बड़ा झटका साबित हो रहा है, जो चीन-प्लस-वन नीति का लाभ उठाते हुए वॉलमार्ट, एमेजॉन और टारगेट कॉरपोरेशन जैसी अमेरिकी रिटेल कंपनियों से बड़े ऑर्डर हासिल करके इस क्षेत्र में बड़ी संभावनाएं तलाशने के लिए तैयार था।
बढ़े हुए अमेरिकी टैरिफ का असर, भारत के लगभग 6,000 करोड़ रुपये के खिलौना निर्यात के एक बड़े हिस्से पर होता दिख रहा है। भारतीय खिलौना संघ के अनुसार, अमेरिका की रिटेल कंपनियों में से अधिकांश ने टैरिफ की स्थिति में अनिश्चितता के कारण अपने ऑर्डर रोक दिए हैं, जिससे भारत के खिलौना निर्माताओं की चिंताएं बढ़ गई हैं।
टायर बनाने वाली कंपनी, एमआरएफ ऐंड एसोसिएट्स के स्वामित्व वाली फनस्कूल इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के ए शब्बीर ने कहा, ‘पिछले साल, भारत के खिलौना निर्यात का 40 प्रतिशत से अधिक हिस्सा अमेरिका को भेजा गया था जिसके कारण यह भारतीय निर्माताओं के लिए एक प्रमुख बाजार बन गया है। टैरिफ दरों में किसी भी बढ़ोतरी से प्रतिस्पर्धा पर सीधा असर पड़ेगा और हाल के वर्षों में भारतीय निर्यातकों ने जो रफ्तार कायम की है, वह धीमी हो सकती है।’
हालांकि फनस्कूल ने सीधे तौर पर ऑर्डर रद्द होने की बात नहीं कही, लेकिन शब्बीर ने बताया कि नए ऑर्डर में साफतौर पर कमी आई है क्योंकि खरीदार सावधानी बरत रहे हैं। हालांकि, कुछ अमेरिकी खिलौना कंपनियों ने इससे 27 अगस्त की समय-सीमा से पहले मौजूदा ऑर्डरों को भेजने में तेजी लाने को कहा है ताकि अतिरिक्त शुल्क से बचा जा सके।
हैस्ब्रो, मैटल, स्पिन मास्टर और अर्ली लर्निंग सेंटर जैसी वैश्विक कंपनियां पहले से ही भारत में अनुबंध के आधार पर विनिर्माण कर रही थीं, लेकिन इस साल पहली बार वॉलमार्ट और टारगेट कॉरपोरेशन जैसी कंपनियां, भारतीय खिलौना ब्रांडों से माल खरीदने पर विचार कर रही थीं। दिलचस्प बात यह है कि ड्रीम प्लास्ट, माइक्रोप्लास्ट और इनकस इंटरनैशनल जैसी इतालवी कंपनियां भी अनुबंध विनिर्माण के लिए भारत की ओर देख रही हैं।
भारतीय खिलौना संघ (टीएआई) के अध्यक्ष अजय अग्रवाल ने कहा, ‘ज्यादातर खिलौना कंपनियां अपने माल को लेकर फंसी हुई हैं क्योंकि खरीदार कुछ भी नहीं खरीद रहे हैं। इस बात को लेकर भी अनिश्चितता है कि कितना शुल्क लगाया जाएगा। भारत से प्रमुख खरीदार अब एमेजॉन, वॉलमार्ट और टारगेट हैं।’ टीएआई के अनुमान के अनुसार, अमेरिका के बाजार में भारत के लगभग 20 निर्यातक सक्रिय हैं जिनमें फनस्कूल, फन जू टॉयज और सनलॉर्ड शामिल हैं। भारत से प्रमुख खिलौना निर्यातों में सॉफ्ट डॉल, स्पोर्ट्स टॉयज, बिल्डिंग और डेवलपमेंट टॉयज, शैक्षणिक खिलौने (बोर्ड गेम और पजल आदि), म्यूजिकल टॉयज और इलेक्ट्रॉनिक सामान शामिल हैं।
आईएमएआरसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2023 में भारतीय खिलौना उद्योग का मूल्य 1.7 अरब डॉलर था, जिसके 10.6 प्रतिशत की दर से बढ़कर 2032 तक 4.4 अरब डॉलर होने की उम्मीद है। शब्बीर ने कहा, ‘खरीदारों में पहले जो उत्साह था, वह कम हो गया है और कई लोग टैरिफ के असर को देखते हुए सामान मंगाने की अपनी रणनीतियों का दोबारा मूल्यांकन कर रहे हैं। वियतनाम और उभरते खिलौना निर्माण केंद्र, इंडोनेशिया जैसे देशों को इस समय लागत का फायदा मिल रहा है क्योंकि उनके यहां टैरिफ भारत की तुलना में कम है।’
उन्होंने यह भी कहा कि कुछ ग्राहक उन वस्तुओं की खरीद को रोक रहे हैं जिन्हें तैयार करने में काफी लंबा वक्त लगता है। इस अनिश्चितता का असर भारत के दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों पर भी पड़ने की उम्मीद है। शब्बीर ने कहा, ‘इसमें निश्चित रूप से दीर्घकालिक विकास पर असर डालने की क्षमता है। फनस्कूल में हमने हाल के वर्षों में निर्यात-आधारित वृद्धि देखी है और अपनी विनिर्माण क्षमता बढ़ाने में बड़ा निवेश किया है। मौजूदा अनिश्चितता को देखते हुए अब उन क्षमताओं का पूरा इस्तेमाल न होने का असली जोखिम है। अगर टैरिफ की स्थिति जारी रहती है तब भारतीय निर्माताओं ने वैश्विक खिलौना निर्यात के क्षेत्र में जो अपनी रफ्तार बनाई है, वह धीमी हो सकती है।’
अग्रवाल ने कहा, ‘हम यूरोप, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया और पश्चिम एशिया जैसे वैकल्पिक बाजारों को देख सकते हैं।’वर्तमान में, अमेरिका के खिलौना बाजार में चीन की सबसे बड़ी हिस्सेदारी है जो लगभग 80 प्रतिशत है। कई अमेरिकी खिलौना कंपनियों ने पहले ही सरकार को चेतावनी दी है कि इस क्रिसमस सीजन में उन्हें कीमतों को रिकॉर्ड ऊंचाई तक बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
यह सब ऐसे समय में हो रहा है जब भारत सरकार ‘मेक इन इंडिया’ अभियान और खिलौनों के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना के माध्यम से इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए कदम उठा रही थी। सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय ने इस क्षेत्र का विकास करने के लिए पूरे देश में 19 खिलौना क्लस्टर बनाए हैं। इनमें मध्य प्रदेश में 9, राजस्थान में तीन, उत्तर प्रदेश में दो, कर्नाटक में दो और आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में एक-एक क्लस्टर शामिल है।