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दिवाला और ऋण शोधन प्रक्रिया में नई बहस: समाधान पेशेवर की जवाबदेही पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश

शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाया कि समाधान पेशेवर महेंद्र कुमार खंडेलवाल द्वारा फॉर्म एच सहित अनिवार्य अनुपालन प्रमाणपत्र जमा करने में विफल रहने के कारण समाधान योजना ‘अवैध’ थी।

Last Updated- May 05, 2025 | 10:24 PM IST
Supreme Court of India
प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो

कानून के विशेषज्ञों का कहना है कि भूषण पावर ऐंड स्टील मामले में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला दिवाला और ऋण शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) के तहत जांच-परख प्रक्रिया को नया रूप दे सकता है। अदालत ने अपने फैसले में इस कंपनी के मामले में समाधान पेशेवर द्वारा गंभीर चूक करने और प्रमुख जानकारी का खुलासा नहीं करने का हवाला दिया है।

शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाया कि समाधान पेशेवर महेंद्र कुमार खंडेलवाल द्वारा फॉर्म एच सहित अनिवार्य अनुपालन प्रमाणपत्र जमा करने में विफल रहने के कारण समाधान योजना ‘अवैध’ थी, क्योंकि कॉरपोरेट ऋणशोधन अक्षमता समाधान प्रक्रिया विनियम के नियम 39(4) और 39(6) के तहत यह महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। अदालत ने कहा कि यह चूक प्रक्रियात्मक नहीं थी बल्कि ऐसी महत्त्वपूर्ण चूक थी जिसने 2021 में अनुमोदित योजना की वैधता को कमजोर कर दिया।

इस बारे में प्रतिक्रिया के लिए खंडेलवाल को शनिवार को ईमेल किया गया था मगर उनका कोई जवाब नहीं आया। पिछले साल जून में एक अलग आदेश में भारतीय दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता बोर्ड (आईबीबीआई) के पूर्णकालिक सदस्य ने समाधान पेशेवर रहने के दौरान बीमा प्रीमियम में बढ़ोतरी तथा चीन से ग्रेफाइट आयात के मुद्दों से संबंधित खंडेलवाल के आचरण की जांच के लिए मामले को बोर्ड को वापस भेज दिया था।

शीर्ष अदालत ने पिछले सप्ताह भूषण पावर ऐंड स्टील के लिए जेएसडब्ल्यू स्टील की समाधान योजना को ‘अवैध’ घोषित कर कंपनी के परिसमापन का आदेश दिया था। भूषण पावर ऐंड स्टील को दिवालिया अदालत में भेजा गया था क्योंकि उसने  47,200 करोड़ रुपये के कर्ज के भुगतान में चूक की थी।

शीर्ष अदालत ने कहा कि जेएसडब्ल्यू स्टील ने भूषण पावर ऐंड स्टील के पूर्व प्रवर्तकों से जुड़ी एक इकाई में संयुक्त उपक्रम का खुलासा नहीं किया था और समाधान पेशेवर ने भी इसके बारे में नहीं बताया। अदालत ने माना कि खंडेलवाल आईबीसी की धारा 25 के तहत अपने वैधानिक कर्तव्यों का पालन करने में विफल रहा, जिसमें धारा 29A के तहत समाधान आवेदक की पात्रता का सत्यापन भी शामिल है। आईबीसी की धारा 29A कॉर्पोरेट देनदार के पूर्व प्रवर्तकों, उनके संबंधित पक्षों, साथ ही कुछ अन्य व्यक्तियों को संकटग्रस्त कंपनी के पुनरुद्धार में हिस्सा लेने से अयोग्य ठहराती है।

अदालत ने कहा, ‘ऋणदाताओं की समिति (सीओसी) की 14वीं बैठक में समाधान पेशेवर के कानूनी सलाहकार द्वारा इसका विशेष रूप से उल्लेख किया गया था कि जेएसडब्ल्यू की समाधान योजना धारा 29ए के अनुपालन के अधीन है। हालांकि बाद की बैठकों में इस बात पर कोई स्पष्टता नहीं थी कि जेएसडब्ल्यू ने उक्त आवश्यकता का अनुपालन किया या नहीं। जेएसडब्ल्यू ने समाधान योजना प्रस्तुत करने की अपनी पात्रता के संबंध में हलफनामा दायर किया था लेकिन रिकॉर्ड पर ऐसा कुछ भी नहीं है जो यह दर्शाता हो कि इस हलफनामे को समाधान पेशेवर द्वारा सत्यापित किया गया था क्योंकि वह ऐसा करने के लिए बाध्य थे।’

कानून के विशेषज्ञों का कहना है कि यह निर्णय आईबीबीआई द्वारा अनुशासनात्मक कार्रवाई का रास्ता खोलता है तथा समाधान पेशेवरों की जवाबदेही बढ़ाने में नजीर पेश करता है। सलाहकार फर्म कैटालिस्ट एडवाइजर्स के संस्थापक केतन दलाल ने कहा, ‘यह निर्णय सभी हितधारकों के लिए एक चेतावनी है।’ उन्होंने कहा कि यदि संहिता को अपना वांछित उद्देश्य प्राप्त करना है तो समयसीमा को तार्किक बनाया जाना चाहिए।

First Published - May 5, 2025 | 10:20 PM IST

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