हाल में कई बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों ने भारतीय औषधि बाजार में अपनी पैठ बढ़ाने के लिए भारतीय कंपनियों के साथ साझेदारी करने पर ध्यान केंद्रित किया है। डॉ. रेड्डीज, सिप्ला एवं एमक्योर के साथ सनोफी की साझेदारी और अस्थमा की दवा के वितरण के लिए एस्ट्राजेनेका एवं मैनकाइंड फार्मा के बीच साझेदारी जैसे तमाम उदाहरण से इस रुझान का पता चलता है।
विश्लेषकों का कहना है कि इस रणनीति से बहुराष्ट्रीय कंपनियों को स्थापित भारतीय नेटवर्क का फायदा उठाने और लोगों के बीच अपनी पैठ बढ़ाने में मदद मिलती है। दूसरी ओर भारतीय कंपनियों को इससे वैश्विक ब्रांड एवं विशेषज्ञता का फायदा मिलता है।
सनोफी ने हाल में भारतीय बाजार में अपने वैक्सीन ब्रांडों को विशेष रूप से वितरित करने और उसे बढ़ावा देने के लिए डॉ. रेड्डीज लैबोरेटरीज के साथ साझेदारी की है। इस साझेदारी के जरिये डॉ. रेड्डीज की पहुंच सनोफी के वैक्सीन उत्पादों तक हुई है, जिसमें हेक्सैक्सिम और पेंटाक्सिम जैसे ब्रांड शामिल हैं। इससे बाजार में डॉ. रेड्डीज की पहुंच एवं पेशकश को बढ़ावा मिलेगा, जबकि सनोफी को डॉ. रेड्डीज के वितरण नेटवर्क एवं बाजार विशेषज्ञता का फायदा होगा।
सिटीग्रुप ग्लोबल मार्केट्स इंडिया के कुणाल शाह ने कहा, ‘जहां तक घरेलू कंपनियों का सवाल है तो उन्हें गंभीर दवा जैसी मुख्य चिकित्सा श्रेणियों में नरमी से जूझना पड़ रहा है। ऐसे में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ साझेदारी के जरिये प्रीमियम ब्रांडों और विशेष नेटवर्क तक उनकी पहुंच सुनिश्चित होगी जिससे उनका मूल्य बढ़ेगा। इसी प्रकार आम तौर पर शहरी इलाकों तक सीमित पहुंच वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियां भी अपने भारतीय साझेदार के वितरण नेटवर्क के जरिये बाजार में व्यापक पैठ बना पाएंगी। इस प्रकार के समझौते में आम तौर पर मार्जिन पहले से तय कर दिए जाते हैं। ऐसे में घरेलू बिक्री बढ़ने से बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मार्जिन में भी वृद्धि होती है।’
सनोफी ने वैक्सीन की सालाना बिक्री को 2030 तक बढ़ाकर 10 अरब यूरो करने की योजना बनाई है। साल 2023 की पहली छमाही में सनोफी की वैक्सीन बिक्री एक साल पहले की समान अवधि के मुकाबले 8.7 फीसदी बढ़कर 239 करोड़ यूरो हो गई। इसे कई कारकों से रफ्तार मिली जिसमें यूरोप में कोविड-19 वैक्सीन की बिक्री और यात्रा एवं बूस्टर खुराक की बिक्री में सुधार आदि शामिल हैं।
भौगोलिक तौर पर सबसे मजबूत वृद्धि ‘अन्य देशों’ से हासिल हुई जो 5.4 फीसदी रही। इसे मुख्य तौर पर चीन में पेंटाक्सिम का दमदार प्रदर्शन से बल मिला। भारत में सनोफी के करीब 5,000 कर्मचारी हैं।
यह रुझान वैक्सीन से इतर अन्य दवाओं में भी दिखता है। सनोफी ने भारत में केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (सीएनएस) संबंधी दवाओं की बिक्री के लिए सिप्ला के साथ करार किया है। इससे सिप्ला का दवा पोर्टफोलियो मजबूत होगा क्योंकि सनोफी सीएनएस बाजार की अग्रणी कंपनी है।
सिप्ला अपने व्यापक नेटवर्क के जरिये सनोफी के सीएनएस दवाओं की बिक्री करेगी जिसमें फ्रिसियम जैसी प्रमुख दवाएं शामिल हैं। इसी प्रकार सनोफी ने भारत में अपने कार्डियोवैस्कुलर दवाओं कार्डेस, क्लेक्सेन, टारगोसिड, लासिक्स और लासिलेक्टोन को विशेष तौर पर वितरित करने के लिए एमक्योर फार्मास्युटिकल्स के साथ साझेदारी की है।
एस्ट्राजेनेका जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भी भारत में अपनी अस्थमा की दवा के वितरण के लिए मैनकाइंड फार्मा के साथ साझेदारी की है। मैनकाइंड फार्मा 97 फीसदी परिचालन राजस्व भारतीय बाजार से अर्जित करती है। कंपनी 16,000 से अधिक फील्ड कर्मियों और 13,000 स्टॉकिस्टों के साथ एक दमदार वितरण नेटवर्क का दावा करती है।
ग्लेनमार्क फार्मास्युटिकल्स की सहायक इकाई ग्लेनमार्क स्पेशिएलिटी ने इस साल के आरंभ में भारत, एशिया प्रशांत, पश्चिम एशिया एवं अफ्रीका, रूस, सीआईएस और लैटिन अमेरिका में रोगियों के लिए कैंसर की दवा एनवाफोलिमैब के वितरण के लिए जियांग्सू अल्फामैब बायोफार्मास्युटिकल्स और 3डी मेडिसिंस (बीजिंग) के साथ साझेदारी की घोषणा की थी।
इक्रा की फार्मा एनालिस्ट किंजल शाह ने कहा, ‘यह कोई नया रुझान नहीं है, मगर अब जिस रफ्तार से ऐसी होने लगी है वह महत्त्वपूर्ण है। ऐसा कई कारकों के कारण हो रहा है जिसमें विकसित बाजारों में मूल्य निर्धारण संबंधी दबाव, उभरते बाजारों में मुद्रा में उतार-चढ़ाव और भारत में दवाओं के मूल्य निर्धारण पर सरकार का बढ़ता नियंत्रण शामिल हैं।’