लेनदार विशेषकर कर्ज देने वाले अगर कंपनी द्वारा डिफॉल्ट यानी भुगतान में चूक की बात साबित कर देते हैं तो राष्ट्रीय कंपनी विधि पंचाट (एनसीएलटी) के पीठों को वह मामला कंपनी दिवालिया प्रक्रिया के लिए स्वीकार करने से पहले सवाल-जवाब नहीं करने चाहिए। एनसीएलटी के लिए तैयार किए जा रहे दिशानिर्देशों में यह बात जोर देकर कही गई है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया दिशानिर्देशों के मसौदे को अंतिम रूप दिया जा रहा है।
अधिकारी के अनुसार कंपनी कानून के मामलों में प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत शामिल हो सकता है और सभी पक्षों की सुनवाई के लिए कार्यवाही लंबी खिंच सकती है मगर ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) की कार्यवाही में यह बात लागू नहीं होती। उन्होंने कहा, ‘यदि लेनदार डिफॉल्ट साबित कर देता है तो निर्णायक अधिकारी को मामले पर दोबारा गौर करने और चुनौती देने वाली याचिका स्वीकार करने की जरूरत नहीं है। इससे कार्यवाही में देर ही होती है।’
दोनों के बीच अंतर करने की जरूरत इसलिए हुई क्योंकि आईबीसी से भी पहले स्थापित हुआ एनसीएलटी उन नियमों पर काम करता है, जो कंपनी कानून के मामलों से जुड़े हैं। निर्णायक अधिकारी के स्तर पर लगने वाला समय कम करने के लिए कंपनी मामलों के मंत्रालय ने आवेदन स्वीकार किए जाने के चरण से ही आईबीसी के लिए खास दिशानिर्देश गढ़े हैं।
उदाहरण के लिए आईबीसी के मुताबिक मामला स्वीकार करने का निर्णय 14 दिन में हो जाना चाहिए। मगर वास्तव में एनसीएलटी में दिवालिया प्रक्रिया के तहत मामला स्वीकार कराना बहुत टेढ़ी खीर है, जिसमें कभी-कभी एक साल से भी अधिक समय लग जाता है। एनसीएलटी अक्सर इस प्रक्रिया को शुरू किए जाने के खिलाफ सवाल उठाता है और याचिकाएं स्वीकार कर लेता है। पीडब्ल्यूसी इंडिया के पार्टनर अंशुल जैन ने कहा, ‘अगर कॉरपोरेट ऋणदाता ने कर्ज चुकाने में डिफॉल्ट साबित कर दिया है तो उधार लेने वाले के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया शुरू हो ही जानी चाहिए।’
सिंगल विंडो मंजूरी की मांग
कंपनी मामलों का मंत्रालय आईबीसी के तहत समाधान वाली कंपनियों के लिए एकल खिड़की मंजूरी की उद्योग की मांग पर भी विचार कर सकता है। उद्योग कंपनी कानून के तहत आने वाली विभिन्न प्रक्रियाओं के लिए इस सुविधा की मांग कर रहा है। उद्योग सूत्रों के अनुसार इन प्रक्रियाओं में कंपनी के निदेशक मंडल, प्रवर्तकों और शेयर पूंजी में बदलाव के साथ-साथ गैर-अनुपालन से संबंधित मुद्दे भी शामिल हैं।
विशेषज्ञ बताते हैं कि जब कोई लेनदार किसी देनदार कंपनी का अधिग्रहण करता है तो उसे कई बदलाव करने पड़ते हैं। इस दौरान उसे निदेशक बदलने, मौजूदा पूंजी रद्द करने और नए शेयर जारी करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। ऐसे बदलावों के लिए कंपनी कानून या ई-फॉर्म के तहत कोई प्रक्रिया नहीं है।
एनसीएलटी द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार नवंबर 2017 से अगस्त 2022 के बीच उसने दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने के लिए 31,203 मामले निपटाए। इनमें से 7,175 मामले स्वीकार किए जाने के पूर्व चरण में और 3,369 मामले स्वीकार किए जाने के बाद के चरण में अटके थे।
मंत्रालय ने मामला लटकाने के लिए बेजा मुकदमे दायर करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए एनसीएलटी को सशक्त बनाने की भी योजना बनाई है। इस प्रकार की हरकत से निपटने के लिए मंत्रालय ने डिफॉल्ट साबित होने के बाद वित्तीय लेनदारों द्वारा दायर किए गए आवेदनों को अनिवार्य रूप से स्वीकार करने का प्रस्ताव दिया है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि प्रस्तावित आईबीसी संशोधन विधेयक पर मंत्रालयों के बीच चर्चा के बाद कंपनी मामलों का मंत्रालय मसौदे को संसद में पेश करने के लिए तैयार करने से पहले कुछ मसलों पर विचार कर रहा है।