राज्य-स्वामित्व वाली बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम्स) का परिचालन घाटा मौजूदा वित्त वर्ष में एक-तिहाई घटकर ₹8,000 करोड़ से ₹10,000 करोड़ के बीच रहने का अनुमान है। इसका कारण है कुछ राज्यों में टैरिफ बढ़ोतरी, बिजली खरीद की लागत में कमी और परिचालन दक्षता में सुधार।
पिछले वित्त वर्ष में डिस्कॉम्स का संयुक्त घाटा ₹12,000-15,000 करोड़ के बीच था। क्रिसिल रेटिंग्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, परिचालन घाटे में कमी से डिस्कॉम्स के कर्ज बढ़ने की रफ्तार धीमी हुई है और उनकी क्रेडिट प्रोफाइल में सुधार आया है। रिपोर्ट में 11 राज्यों की 30 डिस्कॉम्स का आकलन किया गया, जो देश की कुल बिजली मांग का 70 फीसदी पूरा करती हैं।
कंपनियों के एग्रीगेट टेक्निकल एंड कमर्शियल (AT&C) घाटे 2019-20 के 19 फीसदी से घटकर पिछले वित्त वर्ष में 15 फीसदी पर आ गए। यह सुधार बुनियादी ढांचे में निवेश जैसे कंडक्टर और ट्रांसफार्मर बदलने, फीडर सेग्रीगेशन और अंडरग्राउंड केबलिंग की वजह से संभव हुआ है, जिससे चोरी और बिना मीटर की बिक्री कम हुई।
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क्रिसिल रेटिंग्स के डिप्टी चीफ रेटिंग्स ऑफिसर मनीष गुप्ता ने कहा, “इस वित्त वर्ष में परिचालन अंतर 12 पैसे से घटकर 5-10 पैसे रहने का अनुमान है। इसका मुख्य कारण स्वीकृत टैरिफ बढ़ोतरी और कोयले पर मुआवजा सेस हटना है, जिससे औसत बिजली खरीद लागत (APPC) 4-6 पैसे प्रति यूनिट घटेगी।”
पिछले पांच वर्षों में डिस्कॉम्स का परिचालन अंतर 110 पैसे प्रति यूनिट बढ़े हुए औसत राजस्व (ARR) और बेहतर सब्सिडी वसूली से घटा है। हालांकि, आपूर्ति की औसत लागत (ACS) केवल 65 पैसे प्रति यूनिट बढ़ी है, क्योंकि परिचालन दक्षता में सुधार और सस्ती नवीकरणीय ऊर्जा का इस्तेमाल बढ़ा है।
इसके बावजूद, डिस्कॉम्स का राज्य सरकारों पर निर्भर रहना जारी है। इस वित्त वर्ष में सब्सिडी वसूली ₹2.3 लाख करोड़ रहने का अनुमान है, जो 2019-20 के मुकाबले दोगुनी है।
30 राज्य डिस्कॉम्स का कर्ज इस वित्त वर्ष में बढ़कर ₹6.7-6.8 लाख करोड़ होने का अनुमान है, जो पिछले साल ₹6.5 लाख करोड़ और 2019-20 में ₹4 लाख करोड़ था। हालांकि, उनकी इंटरेस्ट कवरेज रेशियो 2019-20 के 0.2 गुना से सुधरकर अब 1.3 गुना तक पहुंचने की उम्मीद है।