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Tiger Global Flipkart deal: सुप्रीम कोर्ट ने फ्लिपकार्ट डील मामले में टाइगर ग्लोबल के पक्ष में दिए गए फैसले पर लगाई रोक

India-Mauritius DTAA conundrum: : अगस्त 2024 में हाई कोर्ट ने अपने फैसले में टाइगर ग्लोबल को DTAA के तहत कैपिटल गेन टैक्स छूट के लिए योग्य माना था।

Last Updated- January 25, 2025 | 1:32 PM IST
Supreme Court Stray Dogs order
सुप्रीम कोर्ट | फोटो क्रेडिट: Commons

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक मामले में दिल्ली हाई कोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी, जिसमें मॉरीशस की निवेश यूनिट, टाइगर ग्लोबल इंटरनेशनल III होल्डिंग्स के पक्ष में फैसला दिया गया था। यह मामला फ्लिपकार्ट सिंगापुर में अपनी हिस्सेदारी को 2018 में वॉलमार्ट को 14,500 करोड़ रुपये से अधिक में बेचने से जुड़े पूंजीगत लाभ (capital gains) पर केंद्रित है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “इस याचिका में उठाए गए मुद्दों पर गहराई से विचार करने की जरूरत है। इस बीच, हाई कोर्ट के आदेश को लागू करने, अमल में लाने और कार्यान्वित करने पर रोक लगाई जाती है।” मामले की अगली सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में 14 फरवरी को होगी।

हाई कोर्ट का फैसला और डीटीएए के तहत छूट

दिल्ली हाई कोर्ट ने अगस्त 2024 में दिए अपने फैसले में टाइगर ग्लोबल को इंडिया-मॉरीशस डबल टैक्सेशन एवॉइडेंस एग्रीमेंट (DTAA) के तहत पूंजीगत लाभ कर छूट के लिए पात्र ठहराया था।

हालांकि, इससे पहले एडवांस रूलिंग अथॉरिटी (AAR) ने टाइगर ग्लोबल को इस संधि का लाभ देने से इनकार कर दिया था। AAR ने तर्क दिया था कि यह लेन-देन कर बचाने के लिए स्ट्रक्चर्ड था और इंडिया-मॉरीशस DTAA ऐसे अप्रत्यक्ष ट्रांसफर (indirect transfers) पर लागू नहीं होता। लेकिन हाई कोर्ट ने AAR के फैसले को पलटते हुए डीटीएए के ग्रैंडफादरिंग प्रावधानों (grandfathering provisions) और टाइगर ग्लोबल के टैक्स रेजिडेंसी सर्टिफिकेट (TRC) की वैधता को स्वीकार किया।

हाई कोर्ट ने माना कि डीटीएए के अनुच्छेद 13(3A) के तहत, 1 अप्रैल 2017 से पहले खरीदे गए शेयरों से प्राप्त पूंजीगत लाभ भारतीय करों से मुक्त है। अदालत ने मॉरीशस द्वारा जारी TRC को निवास प्रमाण और संधि लाभ के लिए पर्याप्त प्रमाण माना। अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के “Union of India v. Azadi Bachao Andolan” मामले का हवाला देते हुए यह फैसला दिया।

सरकार के तर्क और डीटीएए संशोधन

भारत और मॉरीशस के बीच डीटीएए को मई 2016 में संशोधित किया गया था। इस संशोधन के तहत, 1 अप्रैल 2017 के बाद खरीदे गए भारतीय कंपनियों के शेयरों की बिक्री से प्राप्त पूंजीगत लाभ पर भारत में कर लगाया जा सकता है। लेकिन अनुच्छेद 13(3A) के “ग्रैंडफादरिंग क्लॉज” के तहत 1 अप्रैल 2017 से पहले खरीदे गए शेयरों को इस कर से छूट दी गई थी।

टाइगर ग्लोबल ने अक्टूबर 2011 से अप्रैल 2015 के बीच शेयर खरीदे थे, जो इसे ग्रैंडफादरिंग प्रावधान के तहत छूट के लिए योग्य बनाता है। हालांकि, सरकार का दावा है कि 2018 में संशोधन के बाद मॉरीशस की इकाइयों के माध्यम से यह बिक्री केवल संधि लाभ लेने के लिए स्ट्रक्चर्ड की गई थी।

टैक्स अधिकारियों का तर्क है कि टाइगर ग्लोबल की मॉरीशस इकाइयों में “वाणिज्यिक सार” (commercial substance) नहीं है और ये केवल एक माध्यम (conduit) के रूप में इस्तेमाल की गईं। उनका दावा है कि इन इकाइयों का वास्तविक नियंत्रण और निर्णय-making अमेरिका स्थित टाइगर ग्लोबल मैनेजमेंट एलएलसी द्वारा किया गया।

मामले की गंभीरता पर विशेषज्ञ की राय

एकेएम ग्लोबल के टैक्स पार्टनर अमित माहेश्वरी ने कहा कि इस मामले का व्यापक प्रभाव है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगाई है।

उन्होंने कहा, “टैक्स संधियों की व्याख्या, अप्रत्यक्ष ट्रांसफर के मामलों में स्पष्टता, conduit कंपनियों की परिभाषा और उनके आर्थिक substance को लेकर यह मामला कई महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाता है। निवेश इकाइयों के संचालन में कर्मचारियों की उपस्थिति का कितना महत्व है, यह भी स्पष्ट किया जाना चाहिए। इस मामले में एक स्पष्ट और सुसंगत दृष्टिकोण की आवश्यकता है, और इसका निर्णय महत्वपूर्ण होगा।”

First Published - January 25, 2025 | 1:32 PM IST

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