सितंबर तिमाही में चाय बागान कंपनियों के मुनाफे में वृद्धि दर्ज की गई। इससे चाय की कीमतों में तेजी का पता चलता है। प्रतिकूल मौसम परिस्थितियों के कारण उत्पादन प्रभावित हुआ जिससे कीमतों में इजाफा हुआ। अनियमित बारिश के बाद लंबे समय तक सूखे के कारण चाय उत्पादन में पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले करीब 7.67 करोड़ किलोग्राम की कमी आई। उत्तर भारत से चाय उत्पादन में करीब 6.3 करोड़ किलोग्राम का नुकसान हुआ जिससे थोक कीमतों में तेजी आई। चाय के कुल उत्पादन में उत्तर भारत की हिस्सेदारी 82 फीसदी से अधिक है।
चाय बोर्ड के आंकड़ों से पता चलता है कि सितंबर 2024 तक उत्तर भारत में औसत नीलामी मूल्य 247.33 रुपये प्रति किलोग्राम था जो एक साल पहले की इसी अवधि के मुकाबले 23.98 फीसदी अधिक है। दक्षिण भारतीय चाय का औसत मूल्य 126.22 रुपये प्रति किलोग्राम एक साल पहले की अवधि के मुकाबले 16.19 फीसदी अधिक था। इसी प्रकार चाय का अखिल भारतीय औसत मूल्य 215.34 रुपये प्रति किलोग्राम था जो एक साल पहले की अवधि के मुकाबले 22.01 फीसदी अधिक है।
इक्रा के सहायक उपाध्यक्ष सुमित झुनझुनवाला ने कहा कि जुलाई से सितंबर की अवधि गुणवत्तापूर्ण चाय उत्पादन का समय है। इसलिए वह उद्योग के लिए बेहतर तिमाही मानी जाती है। उन्होंने कहा, ‘हम इस सीजन की शुरुआत से ही उत्पादन में नरमी देख रहे हैं। मगर कीमतों में तेजी ने उपज में आई गिरावट की भरपाई कर दी है।’
जय श्री टी के कार्यकारी निदेशक विकास कंडोई ने कहा कि मुनाफे में सुधार का श्रेय मुख्य तौर पर भारतीय चाय बोर्ड की नीतियों को दिया जाना चाहिए। बोर्ड की नीतियां उपभोक्ता सहित सभी हितधारकों के अनुकूल हैं। उन्होंने कहा कि आंतरिक प्रबंधन में हुए महत्त्वपूर्ण बदलाव के कारण भी बेहतर कार्यकुशलता और लागत में कटौती के अलावा बेहतर कीमत हासिल करने में मदद मिली।
मैकलॉयड रसेल के सूत्रों ने बताया कि मुनाफे में सुधार बेहद आवश्यक था। उन्होंने कहा, ‘फसल का नुकसान शुरू होने से चाय की किल्लत हो गई। हमें अनुपालन वाली चाय होने का फायदा मिला और हमारा लागत प्रबंधन कारगर रहा।’
गुडरिक ग्रुप के वित्त निदेशक और सीएफओ सोमेन मुखर्जी ने कहा, ‘हमारे लिए यह कई कारकों का मिला-जुला प्रभाव था जिनमें उपज स्थिर रहने के साथ ही खुली चाय की कीमतें 20 फीसदी बढ़ना और मात्रा के लिहाज से निर्यात बढ़कर दोगुना होना आदि शामिल हैं।’
मुखर्जी ने कहा, ‘लागत में कटौती के लिए किए गए तमाम उपाय और गुणवत्तापूर्ण चाय उत्पादन पर लगातार ध्यान केंद्रित करने के परिणाम अब सामने आने लगे हैं। मगर कीटों की बढ़ी समस्या और अनियमित मौसम की परिस्थितियां चाय उत्पादन के लिए अनुकूल नहीं हैं। इससे कंपनी की वित्तीय स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।’ पहले छह महीनों के दौरान एक महत्त्वपूर्ण सकारात्मक बदलाव के मद्देनजर गुडरिक ने उम्मीद जताई है कि साल के शेष महीनों में भी यही रुझान बरकरार रहेगा।
रसेल इंडिया के निदेशक (वित्त) निर्मल खुराना ने कहा कि इस साल की पहली छमाही पिछले वर्ष की पहली छमाही के मुकाबले काफी अच्छी रही। उन्होंने कहा, ‘घरेलू और निर्यात बाजारों से अच्छी कमाई हुई। साथ ही सीटीसी और पारंपरिक दोनों किस्म की मांग में तेजी रही।’