शाम ढलते ही मेरठ के पास जंगेठी गांव में करीब 10 महिलाएं एकत्र होती हैं। उनके पास हाथ से बनी टोकरियां थीं, जिन्हें उन्होंने दिनभर की मेहनत से तैयार किया था। वे इन्हें बेचने के लिए सौदेबाजी कर रही थीं, ताकि उन्हें अच्छी कीमत मिल सके। इसी दौरान उनके दिमाग में कुछ और भी चल रहा था। वे सोच रही थीं कि अपनी पहली कमाई से क्या-क्या खरीदें। ऐसे ही सवाल पर उनमें से एक ने कहा, ‘सबसे पहले हम भगवान के लिए प्रसाद खरीदेंगे और अपने बच्चों के लिए खाने की अच्छी-अच्छी चीजें घर ले जाएंगे।’ समूह की अन्य महिलाओं ने भी इसी तरह अपनी इच्छा व्यक्त की।
पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) इको रूट्स फाउंडेशन ने गांव जंगेठी में 20-25 महिलाओं का समूह तैयार किया है। ये महिलाएं हाथों से रोजमर्रा में काम आने वाली ऐसी चीजें बनाती हैं, जिनसे पर्यावरण को भी नुकसान न पहुंचे। इस समूह की लीडर बबीता एनजीओ के संयोजक (उत्तर प्रदेश) विक्रम से अपनी वस्तुओं को अच्छे दामों पर बेचने के लिए सौदेबाजी कर रही थीं।
वह कहती हैं, ‘आप तो जानते हैं बाजार में इन चीजों का क्या रेट चल रहा है। इसलिए सही-सही दाम लगाइए। इसे बनाने में बहुत मेहनत लगती है।’ वाकई यह काम बहुत मेहनत का है। गांव की महिलाएं तालाब से जलकुंभी निकालती हैं। फिर इसे साफ कर सुखाती हैं। इसके बाद इसे तराश कर दुरुस्त करती हैं। इस पूरी प्रक्रिया में कम से कम 15 दिन लगते हैं।
एनजीओ की ओर से छोटे से प्रशिक्षण कार्यक्रम के बाद कुछ महिलाओं ने बीते फरवरी में काम शुरू किया था। इसके बाद महिलाओं की संख्या बढ़ती गई। समूह में शामिल राजेश (62) ने उत्साहित होकर बताया, ‘दो महिलाएं मेरे पास आई थीं। उन्होंने मुझे इस समूह में शामिल होने के लिए कहा था।’ यह काम इतने आसान भी नहीं है। इसमें बहुत सारी चुनौतियां भी हैं। तालाब से जलकुंभी निकालना बहुत मुश्किल भरा काम है।
भाजपा ने लोक सभा चुनाव के लिए पिछले दिनों जारी किए अपने घोषणा पत्र में श्रम बल में महिलाओं की संख्या बढ़ाने का वादा भी किया है। साथ ही लखपति दीदी योजना के तहत तीन करोड़ महिलाओं को सशक्त बनाने की बात भी कही है। अभी इस योजना से एक करोड़ महिलाएं लाभान्वित हो चुकी हैं। इसी गांव में महिलाओं का एक और समूह लेदर बॉल सिलकर तैयार करने का काम कर रहा है। इस गांव में यह काम पीढि़यों से होता आ रहा है। समूह की 33 वर्षीय शालू बताती हैं, ‘मेरी मां करीब 25 साल पहले लेदर बॉल सिलने का काम किया करती थीं।’
चारपाई पर बैठीं तीन महिलाएं बॉल सिलने के अपने काम में व्यस्त हैं। एक महिला उन्हें बड़े ध्यान से देख रही है। वह भी देख-देख कर इसी काम को सीखना चाहती है। दो दशक से बॉल सिलने का काम कर रहीं उर्मिला ने कहा कि एक बॉल सिलने के उन्हें 30 रुपये मिलते हैं। हम प्रतिदिन यह काम करते हैं और रविवार के दिन हमारा हिसाब होता है यानी पूरे सप्ताह जितनी बॉल तैयार की गईं, उसी हिसाब से रकम दे दी जाती है।
उत्तर प्रदेश में इस समय 8,48,810 स्वयं सहायता समूह हैं, जिनके साथ 9,580,275 सदस्य काम कर रहे हैं। ग्रामीण विकास मंत्रालय के अनुमान के मुताबिक उत्तर प्रदेश से 4,38,590 लखपति दीदी बन सकती हैं।
आर्थिक समीक्षा 2022-23 के मुताबिक देशभर में कार्यरत 1.2 करोड़ स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) में लगभग 88 प्रतिशत महिला समूह हैं। हालांकि बहुत सी महिलाओं तक ऐसी योजनाएं नहीं पहुंच रही हैं। मुजफ्फरनगर के नूरनगर गांव में भी कुछ महिलाओं ने दावा किया कि उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है।
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी (सीएमआईई) के आंकड़ों के मुताबिक महिला श्रमबल भागीदारी दर (एलएफपीआर) 2023-24 में 10.3 प्रतिशत बढ़ गई है, जो एक साल पहले 8.7 प्रतिशत थी। इसी अवधि में ग्रामीण क्षेत्रों में यह 9.7 प्रतिशत से बढ़कर 10.8 फीसदी हो चुकी है।