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बैंकों का क्रेडिट-डिपॉजिट अनुपात बढ़ा, क्या नकदी की कमी चिंता की बात है?

क्रेडिट-डिपॉजिट अनुपात यह बताता है कि बैंक अपने जमा का कितना हिस्सा कर्ज के रूप में दे रहे हैं।

Last Updated- September 04, 2024 | 5:50 PM IST
बैंक जमा की तुलना में ऋण वृद्धि अधिक होने से नकदी की चुनौतियां संभवः रिपोर्ट Cash challenges possible due to credit growth being higher than bank deposits: Report

हाल के समय में बैंक लोन की तुलना में जमा में बढ़ोतरी की धीमी रफ्तार ने सरकार और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) को चिंता में डाल दिया है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि यह समस्या कुछ बैंकों के लिए खास हो सकती है और इसे पूरे बैंकिंग सेक्टर के लिए गंभीर मानना सही नहीं है क्योंकि हर लोन से खुद ही जमा बनता है।

RBI के आंकड़ों के अनुसार, 26 जुलाई तक बैंक लोन में सालाना 13.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई, जबकि जमा में 10.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। सभी शेड्यूल्ड कमर्शियल बैंकों (SCB) के लिए लोन-जमा अनुपात 2018-19 के 78.3 प्रतिशत से बढ़कर 2023-24 में 79.6 प्रतिशत हो गया है।

क्रेडिट-डिपॉजिट अनुपात का असर

क्रेडिट-डिपॉजिट अनुपात यह बताता है कि बैंक अपने जमा का कितना हिस्सा कर्ज के रूप में दे रहे हैं। अगर यह अनुपात ज्यादा होता है, तो बैंकों को नकदी की कमी और कर्ज जोखिम का सामना करना पड़ सकता है।

बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस का कहना है, “हाई क्रेडिट-डिपॉजिट अनुपात का मतलब हो सकता है कि बैंक अपने रिजर्व का इस्तेमाल कर्ज देने के लिए कर रहे हैं।” उन्होंने कहा कि जब बैंक बाजार से कम समय के लिए महंगे दाम पर लोन लेते हैं और उसे लंबी अवधि के कर्ज में लगाते हैं, तो इससे उनके परिसंपत्ति-देयता प्रबंधन (asset-liability management) में दिक्कतें आ सकती हैं।

पूर्व वित्तीय सेवाएं सचिव डी के मित्तल के अनुसार, अगर जमा की धीमी वृद्धि बैंकों के कर्ज देने पर असर डालती है, तो यह चिंता का कारण हो सकता है। हालांकि, फिलहाल बैंक बिना किसी परेशानी के कर्ज दे रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जमा बढ़ाना जरूरी है, लेकिन इसकी तुलना सीधे लोन वृद्धि से करना पूरी तरह सही नहीं है। “बैंकों के पास जमा के अलावा भी पैसे जुटाने के कई तरीके होते हैं, जैसे नॉन-कन्वर्टिबल डिबेंचर (NCDs) और सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट (CDs), जिनका इस्तेमाल वे जरूरत के हिसाब से करते हैं।”

वित्तीय प्रणाली में नकदी की कमी

नीति अनुसंधान केंद्र के सीनियर फेलो सौगत भट्टाचार्य ने बताया कि कर्ज में बढ़ोतरी से जमा भी बढ़ता है, लेकिन हाल के समय में नकदी की कमी के कारण जमा पूल घटने लगा है। RBI द्वारा सख्ती के चलते वित्तीय प्रणाली में संरचनात्मक नकदी (structural liquidity) में गिरावट आई है, जिससे जमा के रूप में जुटाए जाने वाले कुल फंड घटे हैं। बैंकों की संरचनात्मक नकदी से तात्पर्य उन फंड्स से है, जो लंबे समय तक कर्ज देने के लिए स्थिर रहते हैं।

2023-24 में निजी क्षेत्र के बैंकों का क्रेडिट-डिपॉजिट अनुपात 94.1 प्रतिशत तक पहुंच गया, जबकि सरकारी बैंकों में यह 72.4 प्रतिशत रहा। भट्टाचार्य के अनुसार, सरकारी बैंकों का क्रेडिट-डिपॉजिट अनुपात निजी बैंकों की तुलना में कम होता है, क्योंकि उनके पास बड़ी शाखा नेटवर्क होती है, जो अधिक जमा जुटाने में मदद करती है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकारी बैंकों को केंद्रीय और राज्य सरकारों के बड़े व्यापार और बैलेंस का फायदा मिलता है, जो निजी बैंकों को नहीं मिलता।

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRBs) का अनुपात सरकारी बैंकों से थोड़ा अधिक था, जबकि शहरी सहकारी बैंकों का क्रेडिट-डिपॉजिट अनुपात इन सभी श्रेणियों में सबसे कम था।

2023-24 में शेड्यूल्ड कमर्शियल बैंकों (SCBs) में कुल जमा का 41% हिस्सा चालू और बचत खातों (Casa) में था, जबकि पिछले साल यह 43.6% और 2021-22 में 45.2% था, जो चार साल में सबसे अधिक था। Casa जमा कम लागत वाले होते हैं, और इनकी बड़ी हिस्सेदारी जमा की कुल लागत को कम करती है।

घरेलू बचत और नकदी समाधान

सौगत भट्टाचार्य के अनुसार, अब लोग पारंपरिक बैंक जमाओं से अधिक बाजार-आधारित निवेश की ओर रुख कर रहे हैं, जिससे जमा की संरचना बदल रही है। पहले बचत का बड़ा हिस्सा बचत खातों में जाता था, लेकिन अब यह प्रवृत्ति घट गई है।

2024-25 की पहली तिमाही में Casa अनुपात कम हो गया, क्योंकि अधिक फंड उच्च लागत वाले सावधि जमा (fixed deposits) में शिफ्ट हो गए। इसके कारण जमाओं की लागत (ब्याज दरें) बढ़ गई हैं। भट्टाचार्य का सुझाव है कि बैंकों को जमाओं को आकर्षित करने के लिए ब्याज दरें बढ़ानी पड़ सकती हैं।

भट्टाचार्य ने यह भी कहा कि बैंकों को नियामक सीमाओं के भीतर रहते हुए कुछ जमाओं को इक्विटी और बॉन्ड मार्केट से जोड़कर रिटर्न बढ़ाने के तरीकों पर विचार करना चाहिए।

मदन सबनवीस के अनुसार, जमा को बढ़ावा देने के लिए बैंक आमतौर पर ब्याज दरें बढ़ाते हैं, लेकिन वे कुछ विशेष अवधियों के लिए ब्याज दरें बढ़ा रहे हैं, क्योंकि उन्हें उम्मीद है कि भविष्य में ब्याज दरें घटेंगी, जिससे अधिक लागत पर जमा लेना फायदेमंद नहीं होगा।

HDFC बैंक की प्रमुख अर्थशास्त्री साक्षी गुप्ता ने बताया कि क्रेडिट और जमा की वृद्धि के बीच अंतर बना हुआ है, जिससे बैंकों ने सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट (CD) के जरिए उधारी बढ़ाई है। यह शॉर्ट-टर्म उधारी साधन बैंकों को बाजार से फंड जुटाने में मदद करता है, जिससे वे अपनी नकदी की तात्कालिक जरूरतों को पूरा कर सकते हैं। हालांकि, हाल के आंकड़े बताते हैं कि यह अंतर अब कम हो रहा है, क्योंकि कर्ज की मांग धीमी हो गई है, जो RBI की नियामक सख्तियों जैसे असुरक्षित कर्ज पर 25 आधार अंकों की बढ़ोतरी के कारण हुआ है।

2023-24 में Casa का हिस्सा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में 40.5% और निजी बैंकों में 40.7% था, जो पिछले साल से कम है। हालांकि, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRBs) में यह अनुपात 55.8% था, और 2018-19 से यह इसी स्तर पर बना हुआ है।

सौगत भट्टाचार्य का मानना है कि घरेलू वित्तीय बचत बढ़ाने के उपाय बैंकों में जमा बढ़ाने में मदद कर सकते हैं। आंकड़ों के मुताबिक, 2022-23 में घरेलू बचत जीडीपी का सिर्फ 5.1% थी, जो 47 साल में सबसे कम है।

मदन सबनवीस ने बताया कि महंगाई और लगातार बढ़ते खर्च की वजह से लोग कम बचत कर रहे हैं, जिससे वित्तीय बचत में भी मामूली बढ़त हो रही है। उन्होंने कहा, “यह समस्या उन देशों में आम है, जो ज्यादा खर्च को बढ़ावा देना चाहते हैं।”

अंतर को पाटने के लिए नए उपाय खोजने का आह्वान

पिछले महीने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बैंकों से कहा था कि वे कर्ज और जमा की धीमी वृद्धि के बीच के अंतर को खत्म करने के लिए नए उपाय तलाशें। RBI गवर्नर शक्तिकांत दास ने अगस्त 2024 की मौद्रिक नीति में कहा कि बैंकों को कर्ज की तेज रफ्तार के मुकाबले जमा की धीमी वृद्धि के कारण नकदी की समस्या हो रही है। उन्होंने बैंकों से कहा कि वे घरेलू बचत को बढ़ाने के लिए नए उत्पाद और सेवाएं शुरू करें और अपनी शाखाओं का पूरा उपयोग करें।

First Published - September 4, 2024 | 5:49 PM IST

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