बाईस वर्षीय हीरा खातून के लिए बीड़ी बनाना किसी धार्मिक कार्य से कम नहीं है। केंदू के पत्तों को तंबाकू के साथ लपेटकर बनाई गई छोटी-छोटी बीड़ी से होने वाली आय से उनकी कॉलेज की पढ़ाई का खर्च पूरा हो जाता था, खासकर जब तक उनकी शादी नहीं हुई थी। मगर अब उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी है।
मामूली आय के बावजूद अब वह बीड़ी बनाने के अपने हुनर के दम पर अपने पति के साथ भविष्य संवारने की उम्मीद कर रही हैं। हीरा के पिता एक छोटे-मोटे दर्जी थे और उनके पास कोई भी परिधान सिलने का हुनर नहीं था। वह मुख्य तौर पर मरम्मती कार्य ही कर पाते थे और इसलिए उनकी बेहद मामूली थी।
उन्होंने कहा, ‘परिवार की जरूरत कभी पूरी नहीं हो पाती थी। मैंने जो कुछ भी किया है वह बीड़ी बनाकर ही किया है।’ उनके पति राजमिस्त्री हैं जो फिलहाल केरल में बेहतर अवसरों की तलाश में हैं। उन्होंने कहा, ‘वहां (केरल में) मजदूरी दोगुनी है और मैं एक दिन में करीब 500 बीड़ी बना लेती हूं। हमें अपने एक साल के बच्चे के भविष्य के लिए भी सोचना है।’
लालगोला के पठानपारा की संकरी व घुमावदार सड़कों पर अक्सर महिलाएं बीड़ी बनाती हुई दिख जाती हैं। ये महिलाएं अपने घरेलू काम को निपटाने के बाद आजीविका के लिए बीड़ी बनाने में जुट जाती हैं।
तैयार उत्पाद के लिए कच्चे माल और उपकरण यानी केंदू के पत्ते, तंबाकू, धागा, कैंची आदि को कुलो (बांस की ट्रे) पर बड़े करीने से रखे जाते हैं। उसके बाद महिलाओं की उंगलियां बड़ी कुशलता से काम शुरू कर देती हैं। यहां मजदूरी बहुत कम है और 1,000 बीड़ी बनाने के लिए महज 150 रुपये मिलते हैं। एक दिन में इतनी बीड़ी शायद ही कोई बना पाता है। घंटों तक काम करने के कारण बीड़ी श्रमिकों के पैरों में अक्सर में ऐंठन होने लगती है। मगर यह एक ऐसा हुनर है जिसे वर्षों से निखारा जा रहा है और यह इस ग्रामीण बस्ती के कई घरों की जान है।
लालगोला मुर्शिदाबाद जिले में जंगीपुर लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र का हिस्सा है। वह देश में बीड़ी उत्पादों का गढ़ है। श्रम एवं रोजगार मंत्रालय की वर्ष 2022-23 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिम बंगाल में देश के सबसे अधिक यानी करीब 37 फीसदी बीड़ी मजदूर हैं।
सीटू से संबद्ध मुर्शिदाबाद जिला बीड़ी मजदूर और पैकर्स यूनियन के अनुमान के अनुसार, पश्चिम बंगाल में बीड़ी मजदूरों की कुल संख्या करीब 22 लाख है। इसमें मुर्शिदाबाद जिले की सबसे बड़ी हिस्सेदारी है जहां करीब 12 लाख बीड़ी मजदूर हैं। इस प्रकार जिले में बीड़ी मजदूर एक अहम वोट बैंक हैं।
यूनियन के महासचिव ज्योतिरूप बनर्जी ने कहा कि इन बीड़ी मजदूरों में करीब 95 फीसदी महिलाएं हैं। बीड़ी मजदूरों में ज्यादातर मुसलमान परिवार की महिलाएं हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, मुर्शिदाबाद में 66.27 फीसदी मुस्लिम आबादी है। जहां तक जिले के पुरुषों का सवाल है तो अधिकतर पुरुष अधिक कमाई के लिए केरल जैसे स्थानों पर चले गए हैं।
कोमिला बीबी के साथ ऐसा नहीं हुआ। उनके पति पिछले चार सालों से लकवाग्रस्त हैं। उन्होंने कहा, ‘मुझे अपना खर्च चलाने के लिए रोजाना 800 से 900 बीड़ी बनानी पड़ती है। पिछले कुछ साल से मैं अपने परिवार में अकेली कमाती हूं।’ दोपहर हो चुकी है। कोमिला अपने घरेलू काम निपटा रही हैं। वह शाम तक बीड़ी बनाने वाली हैं, जो उनके डॉक्टर की सलाह के बिल्कुल विपरीत है। कोमिला करीब चार साल पहले टीबी से ग्रस्त हो गई थीं।
उन्होंने एक साल बीड़ी बनाना छोड़ दिया था, लेकिन ठीक होने के बाद अब वह दोबारा उस काम में लग गई हैं। उन्होंने कहा, ‘मेरे पास कोई विकल्प नहीं है। मुझे अपने बच्चों को पालना है और लकवाग्रस्त पति की देखभाल करनी है।’
बगल में बैठी ममता बीबी बीड़ी बनाने से सांस फूलने की शिकायत करती हैं। उन्होंने कहा, ‘चलने पर मेरी सांस फूलने लगती है। डॉक्टर का कहना है कि ऐसा दिल की बीमारी के कारण हो सकता है। उन्होंने मुझे बीड़ी न बनाने के लिए कहा है।’
अनौपचारिक क्षेत्र में बीड़ी मजदूरों की सबसे दयनीय स्थिति है। दिसंबर 2022 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा किए गए एक अध्ययन में कहा गया कि बीड़ी बनाना स्वास्थ्य के लिए एक पेशागत खतरा है। भारत में डब्ल्यूएचओ के कार्यालय ने बीड़ी बनाने वाले मजदूरों, उनके परिवारों और समुदायों के बीच पर्यावरण संबंधी जोखिम एवं स्वास्थ्य संबंधी खतरों का अध्ययन का विश्लेषण किया। इसमें शामिल सभी 95 अध्ययन में शरीर के लगभग सभी अंगों में रोग के लक्षण बताए गए हैं।
रेजिना बीबी ने कहा, ‘हम वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं और हमारी मजदूरी मामूली बढ़ी है। हम दिनरात मेहतन करते हैं और उसके लिए 150 रुपये पर्याप्त है?’ उन्होंने कहा, ‘महाजन करते हैं कि मजदूरी कंपनी तय करती है। मगर दूसरे इलाकों में लोगों को 170 से 180 रुपये मिल रहे हैं।’
लालगोला से करीब 20 किलोमीटर दूर रघुनाथगंज (जंगीपुर लोकसभा क्षेत्र) में बीड़ी श्रमिकों को 1,000 बीड़ी के लिए 170 रुपये मिलते हैं। पश्चिम बंगाल सरकार ने बीड़ी मजदूरों के लिए 253.03 रुपये से 267.44 रुपये प्रति 1,000 बीड़ी मजदूरी निर्धारित की है। मगर सरकारी सूत्रों का कहना है कि यह एक अनौपचारिक क्षेत्र है जहां कंपनियां ठेके पर काम कराती है। ऐसे में क्रियान्वयन एक बड़ी समस्या है।
बीड़ी के लिए कच्चे माल के तौर पर केंदू पत्ते और तंबाकू को दूसरे राज्यों से मंगाया जाता है। नूर बीड़ी वर्क्स के प्रबंध निदेशक खलील उर रहमान ने कहा, ‘बीड़ी पर जीएसटी की दर काफी अधिक है। कच्चे माल की आपूर्ति भी दूसरे जगहों से होती है और तैयार माल उत्तर एवं दक्षिण भारत में भेजा जाता है। हम दक्षिण की कंपनियों का मुकाबला नहीं कर सकते क्योंकि वहां सरकार द्वारा निर्धारित वेतन पर कच्चे माल स्थानीय तौर पर तैयार किए जाते हैं।’
रहमान जंगीपुर निर्वाचन क्षेत्र से मौजूदा सांसद और तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार हैं। उन्होंने कहा कि मजदूरी बढ़ाने के लिए श्रमिकों और कंपनियों के बीच द्विपक्षीय समझौते को पूरे जिले में समान रूप से लागू किया जाना चाहिए।
रहमान के अलावा टीएमसी के कुछ विधायक भी बीड़ी कारोबारी हैं। इनमें राज्य के पूर्व श्रम मंत्री एवं जंगीपुर से विधायक जाकिर हुसैन और सागरदिघी से तृणमूल कांग्रेस के विधायक बैरन विश्वास शामिल हैं। मुर्शिदाबाद जिले में लोक सभा की तीन सीटें- जंगीपुर, बरहामपुर एवं मुर्शिदाबाद- हैं। जंगीपुर और मुर्शिदाबाद में 7 मई को मतदान होगा। क्या गरीबी से त्रस्त बीड़ी मजदूरों के लिए अगले पांच साल कितना अगल होंगे, यह देखना अभी बाकी है।