भारत से अमेरिका को होने वाले दवा निर्यात अगर 25 फीसदी शुल्क के दायरे में आएंगे तो विश्लेषकों का मानना है कि इससे कंपनियों की आय प्रभावित होगी। उनका कहना है कि अतिरिक्त शुल्क के बोझ का 75 फीसदी हिस्सा ग्राहकों के कंधों पर डालने के बावजूद एबिटा पर उसका प्रभाव करीब 5 फीसदी हो सकता है।
कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज ने कहा कि मान लेते हैं कि भारतीय दवा कंपनियों पर 25 फीसदी शुल्क लगाया गया और ग्राहकों के कंधों पर कोई बोझ नहीं डाला गया तो जेनेरिक दवा निर्यातकों की प्रति शेयर आय 0 से 27 फीसदी तक प्रभावित हो सकती है। मगर अनुबंध अनुसंधान, विकास एवं विनिर्माण संगठनों (सीआरडीएमओ) पर प्रभाव अपेक्षाकृत कम रहेगा।
इंडिया रेटिंग्स ऐंड रिसर्च के सहायक निदेशक (स्वास्थ्य सेवा) कृष्णनाथ मुंडे ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से बातचीत में कहा, ‘भारतीय दवा कंपनियों को कार्यकारी आदेश 14257 के तहत नई शुल्क व्यवस्था से छूट प्राप्त है। छूट मिलने पर भी अमेरिका भविष्य में किसी व्यापारिक अथवा सुरक्षा कारणों से भारतीय दवा कंपनियों पर लक्षित शुल्क लगा सकता है।’
उन्होंने कहा कि अधिकतर दवा कंपनियों के लिए जेनेरिक दवाओं का निर्यात कम एबिटा मार्जिन वाला कारोबार है जो आम तौर पर 10 से 20 फीसदी के दायरे में होता है। उन्होंने कहा, ‘अगर भविष्य में 25 फीसदी शुल्क लगाया जाता है तो 60 से 75 फीसदी बोझ अंतिम उपभोक्ताओं पर पड़ेगा। एबिटा पर उसका असर 5 फीसदी तक हो सकता है।’
भारत ने वित्त वर्ष 2025 में अमेरिका को 10.5 अरब डॉलर मूल्य की दवाओं का निर्यात किया जो हमारे कुल दवा निर्यात का 34.5 फीसदी है। आशिका ग्रुप की फार्मा विश्लेषक (संस्थागत अनुसंधान) निराली शाह ने कहा, ‘इससे कम मुनाफा वाली श्रेणियों में आपूर्ति प्रभावित हो सकती है। ब्रांडेड कंपनियां शुरू में इसके प्रभाव को बेहतर तरीके से झेल सकती हैं, लेकिन लगातार शुल्क के कारण लंबी अवधि में उनकी लागत बढ़ सकती है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो कोई खास बदलाव नहीं होगा लेकिन संभावित शुल्क का असर वैश्विक दवा निर्यातकों के निवेश एवं आपूर्ति श्रृंखला संबंधी निर्णयों पर बरकरार रहेगा।’