अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के पास अन्वेषण और उत्पादन के लिए ऑयल इंडिया लिमिटेड (ओआईएल) विदेशी साझेदार तलाश रही है। इंडिया एनर्जी वीक (आईईडब्ल्यू) 2024 के दौरान अलग से बातचीत करते हुए ओआईएल के चेयरमैन रंजीत रथ ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि विदेशी साझेदारों को आकर्षित करने के लिए जल्द ही अबूधाबी में रोड शो का आयोजन किया जाएगा।
साझेदारी के लिए एक्सॉनमोबिल, इक्विनोर और बेकर ह्यूज जैसी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के नाम पर विचार चल रहा है।
कंपनी के अंडमान शेल्फ में दो शैलो वाटर ब्लॉक एएन-ओएसएचपी-2018/1 और एएन-ओएसएचपी-2018/2 हैं, जो उसे 2018 में तीसरे दौर के ओपन एक्सेस लाइसेंसिंग प्रोग्राम (ओएलएपी) के दौरान मिले थे।
रथ ने कहा कि राष्ट्रीय तेल कंपनी ने अपतटीय अन्वेषण के लिए 1,500 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। उन्होंने कहा कि पहले चरण के तहत अन्वेषण सितंबर 2024 में शुरू होना है। कंपनी ने 3 रिग्स के लिए पहले ही ठेकों को अंतिम रूप दे दिया है।
ऑयल इंडिया लिमिटेड दो सरकारी तेल कंपनियों में से एक है, जो अन्वेषण और उत्पादन के काम में लगी है। अन्य कंपनी ओएनजीसी है। कंपनी के कुल 4 अपतटीय ब्लॉक हैं, जो कोंकण-केरल, कृष्णा-गोदावरी और अंडमान द्वीप समूह में 13,230 किलोमीटर में फैले हैं।
ओआईएल ने कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ाकर 40 लाख टन से ऊपर करने का लक्ष्य रखा है। प्राकृतिक गैस का उत्पादन आने वाले वर्षों में सालाना 5 अरब घन मीटर होने की उम्मीद है।
सार्वजनिक क्षेत्र की ऊर्जा उत्पादक इस समय असम और राजस्थान में कई नए कुओं और गैस क्षेत्रों पर काम कर रही है, जहां से उत्पादन शुरू होना है। इससे कंपनी चालू साल में 38 लाख टन सालाना कच्चे तेल के उत्पादन का लक्ष्य हासिल कर सकेगी। नया लक्ष्य वित्त वर्ष2022-23 में हुए 31.8 लाख टन उत्पादन से 20 प्रतिशत ज्यादा है। कंपनी का विदेश का ईऐंडपी पोर्टफोलियो 7 देशों रूस, वेनेजुएला, मोजांबिक, नाइजीरिया, बांग्लादेश, लीबिया और गैबन में है।
ओआईएल वित्त वर्ष 2024 में 60 नए कुओं की खुदाई की प्रक्रिया में है, जो वित्त वर्ष 2023 के 45 और वित्त वर्ष 2021-22 के 38 की तुलना में ज्यादा है। इन गतिविधियों में मदद के लिए उसने 2 अतिरिक्त ड्रिलिंग रिग्स के लिए ठेके दिए हैं और मौजूदा रिग्स की अवधि बढ़ा दी है।
सरकार ने 2030 तक 10 लाख वर्ग किलोमीटर अन्वेषण का लक्ष्य रखा है। 2024 तक के आंकड़ों के मुताबिक पिछले 5 साल में यह क्षेत्रफल दोगुना होकर 2,42,055 वर्ग किलोमीटर हो गया है। इसने भारत के अपतटीय छिछले बेसिन में नो-गो एरिया 99 प्रतिशत तक घटा दिया है।