सरकार वाहन क्षेत्र के लिए एक प्रोत्साहन योजना तैयार कर रही है ताकि अगले पांच वर्षों के दौरान वाहनों और वाहन कलपुर्जे के निर्यात को बढ़ावा दिया जा सके। इस मामले से अवगत चार सूत्रों ने यह जानकारी दी।
सूत्रों ने बताया कि भारी वाहन विभाग (डीएचआई) ने शुरुआती प्रस्ताव पर वाहन उद्योग समूहों की राय मांगी है। प्रस्ताव के तहत अगले पांच वर्षों के दौरान निर्यात के लिए स्थानीय उत्पादन एवं खरीद के लिए प्रोत्साहन देने का सुझाव दिया गया है।
दो सूत्रों ने बताया कि प्रोत्साहन वाहनों अथवा कलपुर्जों की बिक्री मूल्य पर आधारित होगा और पात्र कंपनियों को कुछ निर्धारित शर्तों को पूरा करना होगा। इन शर्तों में न्यूनतम राजस्व एवं मुनाफे की सीमा और कम से कम 10 देशों में मौजूदगी आदि शामिल होगी। उन्होंने कहा कि फिलहाल प्रोत्साहन के स्वरूप के बारे में निर्णय नहीं लिया गया है।
डीएचआई ने इस मुद्दे पर पूछे गए सवालों का तत्काल जवाब नहीं दिया।
यह पहल सरकार की उस पहल का हिस्सा है जिसके तहत निवेश को आकर्षित करने, रोजगार सृजित करने और विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए ‘चैम्पियन’ क्षेत्र तैयार करने का प्रयास किया गया है। साथ ही यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा देश को आत्मनिर्भर बनाने के आह्वान से प्रेरित है।
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि सरकार निर्यात को बढ़ावा देना चाहती है और प्रोत्साहन योजना के लिए कुछ क्षेत्रों की पहचान की गई है जिनमें वाहन एवं कपड़ा क्षेत्र भी शामिल हैं। उन्होंने कहा, ‘जहां तक वाहन क्षेत्र का सवाल है तो सरकार विभिन्न हितधारकों के साथ बातचीत कर रही है। हमें यह देखना है कि वैश्विक परिप्रेक्ष्य में क्या करने की जरूरत है।’ उन्होंने कहा कि बातचीत अभी शुरुआती चरण में है और फिलहाल कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है लेकिन इस क्षेत्र के प्रोत्साहन के लिए एक योजना तैयार की जा रही है।
भारत के वाहन क्षेत्र का निर्यात मार्च 2019 में समाप्त वित्त वर्ष के दौरान 27 अरब डॉलर को छू गया। इस क्षेत्र की प्रमुख कंपनियों में फोर्ड मोटर, हुंडई मोटर, मारुति सुजूकी, फोक्सवैगन और बॉश शामिल हैं। विश्लेषकों का कहना है कि इन कंपनियों को प्रोत्साहन योजना से सबसे अधिक फायदा होगा।
