तिरुपुर में निर्यातकों ने आईसीआईसीआई बैंक के उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया, जिसमें बैंक विदेशी मुद्रा के डेरिवेटि्व्स और वायदा सौदे का नुकसान झेल रहे किसानों के सामने मदद का हाथ बढ़ाया था।
यह प्रतिक्रिया तब सामने आई जब भारत के दूसरे सबसे बड़े बैंक ने नुकसान के हिस्से को दीर्घावधि ऋण या उसका प्रारूप दोबारा बदलने का प्रस्ताव दिया था। आईसीआईसीआई बैंक के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी के वी कामथ को लिखे एक पत्र में तिरुपुर एक्सपोर्टर एसोसिएशन (टीईए) के अध्यक्ष ए शक्तिवल ने बैंक से कहा है कि तिरुपुर के निर्यातक जिस नुकसान को झेल रहे हैं, बैंक उसका 75 प्रतिशत हिस्सा आपस में बांट ले।
अपने पत्र में शक्लिवल ने बैंक की ओर से दिए जाने वाले दोनों विकल्पों का भी जिक्र किया है। संपर्क करने पर आईसीआईसीआई के प्रवक्ता ने कहा, ‘हम अपने ग्राहक और उसके कारोबार के बारे में बात नहीं करना चाहते।’ शक्तिवल ने पहले तो इस पत्र के बारे में किसी भी जानकारी से इनकार कर दिया, लेकिन बाद में कहा कि यह पत्र प्रेस के लिए नहीं है।
टीईए ने अपने पत्र में लिखा है कि नुकसान को दीर्घकावधि ऋण में तब्दील करना सभी निर्यातकों के हित में नहीं होगा, जैसा कि वे पहले ही अपने वर्तमान ऋणों की अदायगी में मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। पत्र में लिखा गया है, ‘अगर आगे उन पर बोझ डाला गया, तब वे अपने वर्तमान ऋणों की किस्तों या ब्याज के पुनर्भुगतान में चूक सकते हैं।’
ऋण के प्रारूप को बदलने की संभावना पर एसोसिएशन ने लिखा है, ‘ज्यादातर निर्यातक और जोखिम झेलने के लिए तैयार नहीं हैं (अपने पैसे को नुकान में बदलने के लिए)।’ कुछ बैंक कंपनियों को मार्क-टू-मार्केट नुकसान को प्रारूप बदलने का विकल्प दे रहे हैं, जिससे वे अपनी स्थिति को मजबूत कर देनदारियों का भुगतान अगले साल तक कर सकते हैं। इसके अलावा कई कंपनियां ऋण के एक नए ढांचे को अपना लेंगी जो उन्हें ऋण चुकाने के लिए ज्यादा अच्छा विनिमय दर मुहैया करवाएगा।
अन्य निजी बैंकों, जैसे कि एक्सिस बैंक, कोटक महिन्द्रा बैंक और यस बैंक के साथ ही आईसीआईसीआई बैंक को भी उनके ग्राहक अपना पैसा डूबने के बाद अदालत तक ले गए थे। ग्राहकों ने बैंकों पर गलत-बिक्री का आरोप लगाया था। टीईए ने तिरुपुर के निर्यातकों की डेरिवेटिव्स और वायदा सौदों में जोखिम झेलने में अक्षम होने का बचाव करते हुए आईसीआईसीआई बैंक को लिखा कि ज्यादातर निर्यातक पहली पीढ़ी के उद्यमी हैं और उनमें से तो कुछ अभी ग्रेजुएट भी नहीं हैं।
‘जो निर्यातक पहले सीधे-साधे ठेके पूरे करते थे, वे पिछले दो से तीन दशकों से सिर्फ बैंकों के भरोसे की वे जो बता रहे हैं, वह उनके भले में है, इसलिए बिना जाने विदेशी मुद्रा के डेरिवेटिव्स और वायदा सौदों में अपना पैसा लगा बैठे।’ पत्र में आगे लिखा गया, ‘जैसे कि कई बैंकों ने डेरिवेटिव्स और वायदा सौदों को लागत में कमी लाने की एक रणनीति की तरह पेश करने के लिए कई सेमिनार और कार्यशालाएं भी आयोजित की।
उन्होंने बताया कि यह सौदे आपको रुपये की बढती कीमत, चीन और बांगलादेश से मिलने वाली प्रतिस्पर्धा, बिजली, मजदूरी, कच्चे माल, किरायों की बढ़ती लागत से होने वाली समस्याओं में यह आपकी मदद करेगा और उनकी इन बातों में आकर निर्यातकों ने मान लिया की ये सौदे काफी सुरक्षित हैं।’
टीईए ने अपने सदस्यों की विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव्स सौदों को लेकर मुर्खता पूर्ण रवैये की बात स्वीकारते हुए कहा, कि विदेशी रुपयों में लिए गए ऋण पर 1.5 से 2 प्रतिशत ब्याज बचाने की उनकी सोच के कारण, अब वे 30 से 40 प्रतिशत का नुकसान झेल रहे हैं। ‘वायदा सौदों के जरिये 10 लाख कमाने की अपनी तीव्र इच्छा में, अब उन्हें 1 से 2 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।’
‘आपके बैंक ने अमेरिकी डॉलकरस्विस फ्रैंक का 1.10 का स्तर सुनिश्चित किया था, जो पिछले 25 से 30 सालों में नहीं देखा गया और बेहद सुरक्षित नॉक आउट स्तर था। इसी तरह अमेरिकीजापानी येन के 100 का स्तर बहुत बेहतरीन स्तर सुनिश्चित किया था। लेकिन पिछले एक महीने में, हम स्विस फ्रैंक का 1.00 से नीचे और जापानी येन का 100 से नीचे गिरने के इतिहास के गवाह रह चुके हैं।
2 से 3 महीनों में, अमेरिकी डॉलर स्विस फ्रैंक के मुकाबले काफी कमजोर हुआ है और जापानी येन 20 प्रतिशत से अधिक, जिससे वित्तीय सुनामी ने जन्म लिया है और इससे तिरुपुर के निर्यातकों की पूरी की पूरी शुध्द संपत्ति लगभग सुनामी में खत्म हो चुकी है।’
इस पत्र से तिरुपुर के निर्यातकों की खस्ता हालत भी पता चलती है। पत्र में लिखा गया है कि प्रमोटर अपनी इकाइयों और निजी परिसंपत्ति को बेचने के बाद भी वे इन नुकसानों का बराबर सामना नहीं कर पाएंगे।