उद्योगों के भीतर साल 2022 के आखिरी कुछ महीनों के दौरान आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) और जेनरेटिव एआई (जेन-एआई) पर चर्चा तेज होने लगी थी। ओपन एआई की सफलता ने एआई की परिवर्तनकारी क्षमता को प्रदर्शित किया था, जिससे कार्यस्थल में बदलाव की संभावना प्रबल हो गई। मगर 18 महीने तक लगातार चर्चा के बावजूद उद्यमों के भीतर जेन-एआई को अपनाने में सुस्ती दिख रही है।
बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (बीसीजी) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 80 फीसदी से अधिक भारतीय डेवलपर जेन-एआई के उत्पादकता लाभों को पहचानते हैं, लेकिन सिर्फ 39 फीसदी ही ऐसे हैं जो इसका बखूबी इस्तेमाल करना जानते हैं। इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात है कि आमतौर पर जिन्हें जेन-एआई पीढ़ी कहा जाता है उन जेन-जी डेवलपर्स के बीच इसे अपनाने की दर काफी कम है। जेन-जी पीढ़ी के बीच सिर्फ 31 फीसदी ही इसका बखूबी इस्तेमाल कर रहे हैं। बीसीजी के प्रबंध निदेशक और वरिष्ठ पार्टनर राजीव गुप्ता ने अपनाने में सुस्ती को लेकर कई कारणों का जिक्र किया। उन्होंने इसके लिए अपर्याप्त प्रशिक्षण, सुरक्षा चिंताओं के प्रति ग्राहकों की हिचकिचाहट और व्यावसायिक व्यवहार्यता को जिम्मेदार ठहराया। मगर उन्होंने एक गंभीर मुद्दे का भी जिक्र किया।
राजीव ने कहा कि यह एक ऐसी गंभीर समस्या है जिसके प्रति लोग बात नहीं करना चाहते हैं। उन्होंने समझाया, ‘सबसे बड़ी वजह डर है। डेवलपर अथवा कर्मचारी के नजरिये से देखें तो इससे नौकरी जाने का डर है। संगठन के तौर पर देखें तो इससे निवेश कम होने, कार्यबल में कटौती और संभावित व्यवधान का खतरा है। भले ही ये डर गैरजरूरी हों, लेकिन ये बड़ी अड़चन हैं।’ मैकिन्सी ऐंड कंपनी के वरिष्ठ पार्टनर विकास डागा ने कहा कि जेन-एआई को अपनाना तकनीकी चुनौती से अधिक मानवीय चुनौती है। डागा कहते हैं, ‘हम बार-बार कहते हैं आ रहे हैं कि जेन-एआई के बड़ी चुनौती प्रौद्योगिकी नहीं है बल्कि इंसानों का व्यवहार है। असली चुनौती पहली पंक्ति के कर्मचारियों को इन साधनों का सक्रिय रूप से उपयोग करने और उनसे कुछ मूल्य निकालने के लिए प्रेरित करना है।’
यह पूरे उद्यम में इसे अपनाने को बढ़ावा देने में प्रबंधन में आए बदलावों की महत्त्वपूर्ण भूमिका दर्शाता है। मैकिन्सी के मुताबिक, सिर्फ 10 फीसदी उद्यमों ने ही बड़े पैमाने पर जेन-एआई को लगाया है और 5 फीसदी से भी कम कंपनियों ने अपने पूरे कार्य में जेन-एआई को सफलतापूर्वक शामिल किया है। एआई आधारित बदलावों में सबसे आगे रहने वाले भारतीय आईटी सेवा फर्मों के लिए जेन-एआई और एजेंटिक एआई में बदलाव अनिवार्य रूप से लंबे समय से चले आ रहे हैं उनके नीचे से ऊपर के कार्यबल (पिरामिड संरचना) को प्रभावित करेगा।
एचसीएलटेक के मुख्य कार्याधिकारी और प्रबंध निदेशक सी विजयकुमार ने कहा, ‘पिरामिड संरचना बरकरार रहेगी मगर हर स्तर पर प्रतिभाओं का समावेश होगा। जिस तरह से हम भर्ती करते हैं और उन्हें प्रशिक्षित करते हैं वह काफी हद तक बदल जाएगा। हमें अधिक विशिष्ट प्रतिभाओं की जरूरत होगी और अगर शुरुआती स्तर पर भर्तियां जारी रखेंगे तो उनसे अपेक्षा भी काफी ज्यादा रहेगी।’
ऐक्सेंचर की एक रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि इसके 87 फीसदी ग्राहक परिवेश ने अभी तक जेन-एआई को नहीं अपनाया है, वहीं 13 फीसदी इसकी पूरी क्षमता को भुनाने के लिए सही रणनीतियां लागू कर रहे हैं। इस बीच, बिजनेस प्रॉसेस मैनेजमेंट (बीपीएम) क्षेत्र में सहायक एआई की मौजूदगी बढ़ने लगी है, लेकिन कंपनियों ने बताया कि ग्राहक इस तकनीक को पूरी तरह अपनाने की इच्छा नहीं दिखा रहे हैं।