सरकार भारतीय बैंक संघ (आईबीए) को उसका मुंह तकने के बजाय बैंकों से रकम लेकर प्रस्तावित परिसंपत्ति पुनर्गठन कंपनी (बैड बैंक) बनाने के लिए कह सकती है। आईबीए चाहता है कि सरकार इसकी प्रवर्तक बने। मगर सरकार संभवत: इससे इनकार कर उसे बैंकों की मदद से ही संस्था का गठन करने के लिए कहेगी। वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि बैंक चाहें तो अपनी रकम से बैड बैंक बना सकते हैं।
वित्त मंत्रालय और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को भेजे प्रस्ताव में आईबीए ने राष्ट्रीय स्तर पर परिसंपत्ति पुनर्गठन कंपनी (एआरसी) बनाने का सुझाव रखा था। आईबीए ने सरकार से इसकी प्रवर्तक बनने का अनुरोध भी किया था। संगठन ने कहा था कि सरकार शुरुआत में इसके लिए 10,000 करोड़ रुपये की पूंजी दे। इससे बैड बैंक तमाम बैंकों की लगभग 70,000 करोड़ रुपये की फंसी कर्ज परिसंपत्तियां ले पाता।
आईबीए चाहता था कि सरकार इस कंपनी या बैड बैंक में निवेश करे और इसकी कमान भी अपने हाथ में ले ताकि बैंकों को इस समय कुछ राहत मिल सके क्योंकि बाजार में पहले से काम कर रही एआरसी प्रणाली के वांछित नतीजे नहीं मिले हैं। सरकार निवेश करेगी तो बैंक भी इस संस्था में निवेश करने से नहीं हिचकेंगे। आईबीए के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम सार्वजनिक नहीं करने की शर्त पर बताया कि वर्तमान एआरसी को संपत्तियां देने में दिक्कत यह है कि किसी संपत्ति में कई बैंक शामिल हों तो आम सहमति से कोई फैसला हो ही नहीं पाता। उन्होंने यह भी कहा कि आईबीए सरकार और आरबीआई को इस प्रस्ताव पर मनाने की कोशिश करता रहेगा। आईबीए का प्रस्ताव है कि बैड बैंक को एनपीए संपत्तियां शुद्घ बुक वैल्यू पर बेची जाएं ताकि बैंकों को नुकसान नहीं झेलना पड़े।
मगर वित्त मंत्रालय के अधिकारी ने बताया कि सरकारी रकम से बैड बैंक स्थापित करना सरकार की प्राथमिकताओं में नहीं है। अधिकारी ने कहा, ‘बाजार में कई संपत्ति पुनर्गठन कंपनियां पहले से काम कर रही हैं इसलिए एक और कंपनी में सरकार के निवेश की कोई तुक नहीं है।’ उन्होंने कहा कि इस समय सरकार का पूरा ध्यान आर्थिक गतिविधियों के लिए रकम का इंतजाम करने पर है। यह काम पूरी तरह आपात ऋण गांरटी योजना के तहत किया जा रहा है, जिसमें 3 लाख करोड़ रुपये की रकम कारोबारों को दी जाएगी। 4 जुलाई तक बैंकों ने 1.1 लाख करोड़ रुपये के कर्ज मंजूर कर दिए थे, जिनमें 56,000 करोड़ रुपये से ऊपर की रकम कारोबारियों को बांट दी गई थी।
आईबीए के प्रस्ताव में कहा गया है किसरकार के स्वामित्व वाली एआरसी बनाई जाएगी, जिसका परिचालन फंसी संपत्तियों में कर्ज वाले बैंकों, पेशेवरों और एक वैकल्पिक निवेश फंड के हाथों में होगा। प्रस्तावित एआरसी फंसी संपतियां खरीदने के लिए 15 फीसदी कीमत नकद में देगी और बाकी प्रतिभूति के रूप में दी जाएगी। चूंकि प्रस्तावित बैड बैंक में पेशेवर भी होंगे, इसलिए खराब परिसंपत्तियों का कायाकल्प कर दिया जाएगा और वैकल्पिक निवेश फंड के जरिये उसमें संस्थागत वित्त आएगा। परिसंपत्ति के मूल्यांकन में अंतर होने से मौजूदा एआरसी ढांचे के तहत फंसे कर्ज बेचने में बहुत अड़चन आती हैं।
