बीएस बातचीत
लौह अयस्क की किल्लत को देखते हुए इसके निर्यात पर नियंत्रण के लिए इस्पात कंपनियों से मांग लगातार तेज हो रही है। एक साक्षात्कार में आर्सेलरमित्तल निप्पॉन स्टील इंडिया (एएमएनस इंडिया) के मुख्य कार्याधिकारी दिलीप ऊमेन ने ईशिता आयान दत्त को बताया कि लौह अयस्क की किल्लत के कारण उत्पादन में कमी सरकार की आत्मनिर्भर नीति के अनुरूप नहीं है। पेश हैं मुख्य अंश:
क्या इस्पात उद्योग ने लौह अयस्क निर्यात पर प्रतिबंध की मांग की है?
लौह अयस्क कीमतें बढ़ी हैं। यदि आप ओडिशा में कीमतों को देखें तो ये जून से 175 प्रतिशत बढ़ी हैं। एनएमडीसी की कीमतें भी 84-85 प्रतिशत बढ़ी हैं। इसका मुख्य कारण है लौह अयस्क की कम उपलब्धता। इसके परिणामस्वरूप, उद्योग को दबाव झेलना पड़ रहा है। जब हमें स्थानीय जरूरत पूरी करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है तो कैसे उस लौह अयस्क का निर्यात कर सकते हैं, जो इस क्षेत्र के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। लौह अयस्क उत्पादन घटा है, लेकिन निर्यात में इजाफा हुआ है। हम निर्यात के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन घरेलू इस्पात उद्योग की जरूरत पहले पूरी की जानी चाहिए। इस संकट का समाधान नहीं निकलने तक निर्यात रोका जाना चाहिए।
क्या उपलब्धता एक समस्या है, क्योंकि नीलामी वाली कई खदानों में परिचालन नहीं हो रहा है?
कई खदानों को परिचालन में नहीं लाया गया है। अपनी जरूरतेंपूरी करने के लिए हमारे पास लौह अयस्क नहीं है। यदि इस्पात उत्पाद में लौह अयस्क की किल्लत की वजह से कमी आती है तो हम आत्मनिर्भर भारत कैसे न सकते हैं?
गैर-परिचालन वाली खदानों के मुकाबले परिचालन से जुड़ी खदानों में भंडार की स्थिति क्या है?
सरकार को उन खदानों पर ध्यान देने की जरूरत है जो परिचालन में नहीं हैं, क्योंकि एक वजह यह है कि उनमें खनन शुरू नहीं हुआ है। इनमें कुछ बड़ी खदानें हैं जो अभी चालू नहीं हुई है। नीलामी से जुड़ी सभी खदानें एमडीएफए (माइन डेवलपमेंट ऐंड प्रोडक्शन एग्रीमेंट) की न्यूनतम 80 प्रतिशत ढुलाई जरूरत पूरी कर सकती हैं।
क्या ज्यादातर लौह अयस्क निर्यात लोहे की कम मात्रा वाला होता है जिसका इस्तेमाल इस्पात उद्योग द्वारा नहीं
किया जाता?
अभी हमें लो या हाई ग्रेड तक पहुंच हासिल नहीं है। हमने 60 प्रतिशत लौह के साथ लौह अयस्क लेना शुरू किया है और तब यह फायदमंद साबित हुआ है।
लौह अयस्क की समस्या से एएमएनएस इंडिया किस तरह से प्रभावित हुई है?
हमारे पास एक खदान है जिसे हमने उत्पादन के लिए इस्तेमाल किया है। इस खदान में धातु मौजूद है, लेकिन समस्या लॉजिस्टिक की है, खदान से अन्य संयंत्र तक ढुलाई को लेकर। इसके अलावा भंडारण बढ़ाने और ढुलाई में तेजी लाने के लिए इस खदान में स्टैक्स की क्षमता मौजूदा 4,000 टन से बढ़ाकर 40,000 टन किए जाने की जरूरत है।
एएमएनएस का उत्पादन कितना प्रभावित हुआ है?
हमारा पैलेट उत्पादन प्रभावित हुआ है। मॉनसून के दौरान एनएमडीसी प्रभावित हुई थी, हालांकि अब उत्पादन में तेजी आई है। मेरा मानना है कि यह तेजी बरकरार रहेगी।
इस्पात कीमतों को लेकर उपभोक्ता उद्योगों से चिंताएं बढ़ रही हैं। इस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
यदि उत्पादन सामग्री की कीमतें बढ़ती रहीं, तो हमें कुछ हद तक मुनाफा सुनिश्चित करना होगा। यदि कीमतें नीचे आती हैं तो इस्पात कीमतें भी नीचे आएंगी। यदि लौह अयस्क की उपलब्धता बढ़ती है तो इस्पात उत्पादन में भी तेजी आएगी और इससे इस्पात कीमतें नीचे लाने में मदद मिलेगी।
भारत में एएमएनएस कितनी तेजी से अपना दायरा बढ़ाएगी?
हम प्रधानमंत्री की आत्मनिर्भर पहल में सक्रियता के साथ योगदान देना चाहेंगे और हमने इस्पात क्षमता 30 करोड़ टन पर पहुंचाने की योजना बनाई है। यदि उचित परिवेश मुहैया कराया गया, तो हम भारत में अपनी उपस्थिति बढ़ाने को इच्छुक हैं।