चीन की कंपनियां यदि भारत की मोबाइल उपकरण और इलेक्ट्रॉनिक्स आपूर्ति श्रृंखला में शामिल होकर कारखाना लगाना चाहेंगी तो उन्हें भारतीय साझेदार को कम से कम 51 फीसदी हिस्सेदारी सौंपनी पड़ सकती है।
एक शीर्ष सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘अब सहमति बन रही है कि ऐसे संयुक्त उद्यमों में भारतीय साझेदारों की 51 फीसदी हिस्सेदारी होनी चाहिए ताकि प्रबंधन और निदेशक मंडल पर उनका नियंत्रण हो।’
यह कदम अहम है क्योंकि कई वैश्विक एवं भारतीय कंपनियां मोबाइल उपकरण एवं पुर्जा विनिर्माण क्षेत्र में चीन की कंपनियों के साथ साझे उपक्रम स्थापित करने की संभावनाएं तलाश रही हैं। उनका कहना है कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की सीमा किसी उत्पाद के लिए आवश्यक उस प्रौद्योगिकी की अहमियत से जुड़ी होनी चाहिए, जिसे चीन की कंपनी सौंपना चाहती है।
इंडियन सेल्युलर ऐंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन ने सरकार को सुझाव दिया है कि ग्रेड प्रणाली के आधार पर सीमा निर्धारित की जा सकती है। उदाहरण के लिए पैसिव और ऐक्टिव पुर्जों, कैमरा मॉड्यूल, कनेक्टर, रिंगर आदि के लिए FDI की सीमा 51 फीसदी रखने का सुझाव दिया गया है।
उसके हिसाब से मैकेनिक्स, माइक्रोफोन, कीपैड आदि के लिए FDI की सीमा 49 फीसदी रखी जा सकती है। पैकेजिंग जैसे अन्य क्षेत्रों के लिए FDI की सीमा महज 24 फीसदी रखने का सुझाव दिया गया है।
इससे सुनिश्चित होगा कि देश चीन से आयात पर निर्भर न रहे और भारत में ही प्रमुख पुर्जों का मूल्यवर्द्धन हो सके। ऐसे में आपूर्ति श्रृंखला कहीं अधिक सुरक्षित हो सकती है।
कुछ वैश्विक कंपनियां संयुक्त उद्यम के लिए बराबर हिस्सेदारी वाले ढांचे पर जोर दे रही हैं। उनका कहना है कि इसके बिना अधिकतर चीनी कंपनियां अपनी प्रौद्योगिकी साझा नहीं करना चाहेंगी।
पिछले कुछ महीनों में चीन से FDI के मुद्दे पर सरकार के रुख में कुछ बदलाव आया है। साल 2020 में भारत-चीन सीमा पर गतिरोध बढ़ने के बाद सरकार का रुख काफी सख्त हो गया था। मगर मोबाइल उपकरण एवं अन्य क्षेत्रों की वैश्विक एवं भारतीय कंपनियों की लगातार मांग के बाद कुछ छूट दी गई है। उनका कहना है कि यदि देश इस क्षेत्र में अपने निर्यात लक्ष्य को हासिल करना चाहता है तो आपूर्ति श्रृंखला तैयार करने के लिए चीन से मदद की दरकार होगी।
सरकार ने भारतीय कंपनियों से उन चीनी आपूर्तिकर्ताओं के नाम मांगे हैं, जो भारतीय कंपनियों के साथ संयुक्त उद्यम के जरिये यहां अपने कारखाने लगाना चाहती हैं। सरकार द्वारा शुरुआती जांच के बाद उन चीनी कंपनियों को किसी भारतीय संयुक्त उद्यम साझेदार के साथ बातचीत करनी होगी।
बातचीत के बाद अंतिम चरण में अप्रैल 2020 के प्रेस नोट 3 के तहत FDI मंजूरी के लिए उन्हें सरकार से संपर्क करना पड़ेगा। प्रेस नोट में कहा गया था कि उन देशों की कंपनियों को भारत में निवेश के लिए सरकार से FDI मंजूरी लेनी होगी, जिनकी जमीनी सीमा भारत से लगती है। प्रेस नोट 3 के तहत नियमों में कोई ढील नहीं दी गई है।
इस नीति के तहत ऐपल पुर्जों की आपूर्ति करने वाले चीन के अपने 17 वेंडरों में से 14 के निवेश के लिए मंजूरी पाने की योजना बना रही है। ऐपल ने मूल्य के लिहाज से अपनी 12 से 20 फीसदी आईफोन असेंबली क्षमता 2026 तक भारत में लाने की योजना बनाई है। इनमें से 10 आपूर्तिकर्ता प्रेस नोट 3 जारी होने से पहले से ही भारत आ गए थे। मगर सूत्रों का कहना है कि यदि वे भारत में और निवेश करना चाहेंगे तो उन्हें भी संयुक्त उद्यम के लिए मंजूरी लेनी होगी।
करीब 80 फीसदी वैश्विक मोबाइल उपकरण आपूर्ति श्रृंखला चीन में है और उसका संचालन चीन की कंपनियां करती हैं। भारत ने 2026 तक इस क्षेत्र में निर्यात का वैश्विक केंद्र बनने की योजना बनाई है।