भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने बुधवार को राष्ट्रीय कंपनी विधि अपील अधिकरण (एनसीएलएटी) को जानकारी दी कि उसने संकटों का सामना कर रही एडटेक कंपनी बैजूस के साथ 158 करोड़ रुपये से अधिक बकाया राशि के मसले पर समझौता कर लिया है। कंपनी पर यह बकाया क्रिकेटरों की जर्सी से संबंधित सौदे के लिए है। हालांकि, एनसीएलएटी ने ऋणदाताओं की समिति (एलओसी) का गठन 1 अगस्त तक टाल दिया है। तब मामले की अगले सुनवाई होगी।
लॉ प्लेटफॉर्म बार ऐंड बेच के मुताबिक, एनसीएलएटी के चेन्नई पीठ को कहा गया है कि बैजूस के संस्थापक बैजू रवींद्रन के भाई रिजू रवींद्रन ने मंगलवार को क्रिकेट बोर्ड को 50 करोड़ रुपये चुका दिया है। अधिकरण को यह भी जानकारी दी गई है कि शुक्रवार यानी 2 अगस्त को कंपनी क्रिकेट बोर्ड को अतिरिक्त 25 करोड़ रुपये का भुगतान करेगी और नौ अगस्त तक शेष 83 करोड़ रुपये एडटेक फर्म चुका देगी।
मगर बैजूस के अमेरिकी ऋणदाताओं ने इस समझौते का विरोध किया है। उन्होंने एनसीएलएटी को बताया कि कंपनी ने भ्रष्ट तरीके से कर्ज चुकाया है और रकम चुकाने के लिए चोरी के पैसों का उपयोग किया गया है।
ऋणदाताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि बैजू रवींद्रन और रिजू रवींद्रन दोनों भाइयों ने 500 करोड़ रुपये से अधिक की हेराफेरी की साजिश रची है। रोहतगी ने कहा, ‘जो व्यक्ति वेतन देने की स्थिति में नहीं है वह अचानक 150 करोड़ रुपये की भुगतान कैसे कर सकता है। यह हमारा पैसा है जिसे इन लोगों ने निकाला है।’
अपने आरोपों को साबित करने के लिए रोहतगी ने बैजूस की अमेरिकी कंपनी बैजूस अल्फा के खिलाफ ऋणशोधन अक्षमता मामले में डेलावेयर की अदालत के फैसले का एक अंश भी पढ़ा। उन्होंने दलील दी कि आर्थिक तंगी के बीच बैजू रवींद्र दुबई भाग गया है। अमेरिकी ऋणदाताओं ने आरोप लगाया है कि बैजूस के संस्थापकों ने गैरकानूनी ढंग से 53.3 करोड़ डॉलर के ऋण का दुरुपयोग किया है और इसका अभी तक पता नहीं चल पाया है।