सरकारी हस्तक्षेप के बावजूद सीमेंट की कीमत में जबदस्त मांग और सीमित आपूर्ति के चलते लगातार बढ़ोतरी हुई है।
सीमेंट उत्पादक कंपनियां भी उत्पादन लागत में हुई बढ़ोतरी का तर्क देते हुए इस बढोतरी को जायज ठहरा रही हैं। अंबुजा सीमेंट के प्रबंध निदेशक ए.एल.कपूर ने बिजनेस स्टैंडर्ड के साथ हुई विस्तृत बातचीत में संकेत दिया है कि इसकी कीमत में एक बार फिर वृद्धि हो सकती है। पेश है चंदन किशोर कांत से हुई उनकी बातचीत के प्रमुख अंश-
कंपनी की मालिकाना हक एक विदेशी फर्म के हाथों चले जाने के बाद कंपनी का कैसा हाल-चाल है?
यह एक अजेय गठबंधन है। अंबुजा और हॉल्सिम की साझेदारी से बेहतर कोई और साझेदारी हो ही नहीं सकती थी। हॉल्सिम का पूरा ढांचा नवीनतम प्रौद्योगकी से संचालित है। इस कंपनी का मानना है कि लोकल कंपनियों को पूरी स्वायत्तता और आजादी दी जानी चाहिए ताकि वे अपनी क्षमता का पूरा सदुपयोग कर सकें।
यही नहीं हॉल्सिम के अत्याधुनिक ढांचा से हमें अपने आप को भी आधुनिक बनाने में मदद मिली है। हॉल्सिम कंपनी हमारी कंपनी से कहीं ज्यादा अनुभवी और प्रोफेशनल है। यह फर्म सीमेंट बनाने के लिए जरूरी तकनीकी ज्ञान का भंडार है।
अपनी क्षमता में और 30 लाख टन की वृद्धि के लिए अंबुजा सीमेंट इस समय क्या कर रही है?
कारोबार में यदि आपने अपना मार्केट शेयर खोया तो इसमें आपका टिक पाना मुश्किल है। इस समय पूरे देश में हमारे पास 6000 से अधिक डीलर हैं। हमने हमारे लिए काम करने वाले इस डीलर नेटवर्क को पिछले 20 साल से कैसे बनाए रखा है?
यदि हम अपने ब्रांड के वॉल्यूम ग्रोथ में बढ़ोतरी नहीं करते हैं तो हमारी बाजार हिस्सेदारी घटेगी और धीरे-धीरे हमारे ब्रांड की उपस्थिति कम होने लगेगी। ऐसी स्थिति में हमारे डीलर दूसरे ब्रांड की ओर खिसकने लगेंगे। इसलिए हमारे लिए जरूरी है कि हम अपना बाजार बढायें और उद्योगजगत के साथ कदमताल करते जाएं।
सीमेंट उद्योग विशेषकर अंबुजा सीमेंट की चुनौतियां क्या हैं?
गुणवत्तायुक्त कोयले की उपलब्धता हमारे लिए सबसे गंभीर चुनौती है। हमें इस तरह की कई चुनौतियों से जूझना है। अंबुजा नगर में कुल तीन भट्ठियां ऐसी हैं जो पूरी तरह से आयातित कोयले पर निर्भर है। हालांकि कोयला के दाम इस बीच दुगुना हो गया है। पर इस आयातित कोयले की गुणवत्ता और इसकी उपलब्धता को लेकर इतनी निश्चिंतता जरूर है कि इससे हमारे उत्पादन प्रक्रिया पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
वहीं दूसरे प्लांटों के लिए हम किसी नजदीकी खदान से बेहतरीन क्वालिटी के कोयले के इंतजाम में जुटे हैं। पर समस्या जस की तस है। सरकार चाहती है कि सीमेंट की कीमत में स्थिरता आए वहीं दूसरी ओर वह हमारे कोयले के स्रोत में कटौती करने में जुटी है।
सीमेंट उद्योग को हरेक साल 2.5 करोड़ टन कोयले की जरूरत होती है पर उसे इसके विपरीत महज 1.4 करोड़ टन कोयला ही मिल पाता है। शेष 1.1 करोड़ टन कोयले को निजी क्षेत्र से आयात और ई-नीलामी के जरिए खरीदना पड़ता है। ई-नीलामी में कोयले का भाव 40 से 50 फीसदी ज्यादा होता है और हमारे सामने विकल्प नहीं होता।
पिछले दो सालों में सीमेंट की कीमत में 50 फीसदी की तेजी देखी गई है। आपको क्या लगता है कि आगे आने वाले समय में इसमें कोई स्थिरता आ सकती है?
कच्चे सामानों की कीमत में हुई बढ़ोतरी को उपभोक्ताओं तक पहुंचाने के सिवा हमारे सामने कोई विकल्प नहीं था। इस वृद्धि को बाजार में पहुंचाने से होता यह है कि मांग और आपूर्ति में संतुलन बना रहता है।
पिछले साल भर में 50 किलोग्राम के सीमेंट बैग की उत्पादन लागत 14 से 15 रुपये बढ़ गयी है पर हमारी कंपनी ने महज प्रति बैग 5 से 7 रुपये की वृद्धि की है। पर सीमेंट की बढ़ी कीमत को उपभोक्ताओं तक तभी पहुंचाया जाता है जब कच्ची सामग्रियों की उपलब्धता कम और सीमेंट की मांग काफी ज्यादा होती है।
ऐसा नहीं है कि हम ऐसा अपना खजाना भरने के लिए करते हैं। हमने अपनी क्षमता का 90 फीसदी उपयोग किया है। यह उद्योग बाजार को सीमेंट आपूर्ति करने के लिए अपनी ओर से पूरी कोशिश कर रहा है।
सीमेंट उद्योग पर लगातार यह आरोप लगाया जा रहा है कि वह एकजुट होकर कीमत बढ़ाने में जुटा है?
यह पूरी तरह से गलत है। यहां ऐसी कोई बात नहीं है। हम बाजार पर लगातार निगाहें रखते हैं और उसके बाद ही कीमत बढ़ाने के बारे में कोई निर्णय करते हैं।