देश में 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाए जाने से ठीक एक हफ्ते पहले अखिल भारतीय हथकरघा बोर्ड (एआईएचबी) को 27 जुलाई की एक अधिसूचना के माध्यम से समाप्त कर दिया गया। अधिसूचना में कहा गया कि यह कदम सरकार के न्यूनतम हस्तक्षेप और अधिकतम प्रशासन के मद्देनजर उठाया जा रहा है। इस कदम के क्या निहितार्थ हैं, इसके बारे में पूछे जाने पर एक पूर्व कपड़ा सचिव ने कहा, ‘क्या कोई हथकरघा बोर्ड भी था? वास्तव में था? इसे कब समाप्त कर दिया गया?’
हालांकि सक्रिय कार्यकर्ता हथकरघा बोर्ड को चाय-समोसा वाली एक जगह बताते हैं जो मूल रूप से द्वितीय श्रेणी के कार्यकर्ताओं और राजनीतिक दलों से सहानुभूति रखने वालों के काम के लिए था। कपड़ा मंत्रालय में काम कर चुके एक अफसरशाह ने कहा, ‘यात्रा भत्ता और महंगाई भत्ता मिल जाता था। दिल्ली की यात्रा हो जाती थी। लेकिन अगर इसके सदस्यों ने कोई जरूरी बातें भी कही तो उनके सुझाव हमेशा नीति में शामिल नहीं किए जाते थे।’
दस्तकार की लैला तैयबजी का एक अलग ही नजरिया है। वह कहती हैं, ‘कई सालों से एआईएचबी एक आधिकारिक मंच बना रहा जहां बुनकर और शिल्पकार अपनी आवाज और विचार सीधे व्यक्त कर सकते थे। बोर्ड एक ऐसी जगह था जहां इस क्षेत्र के प्रतिनिधि काफी तादाद में मौजूद थे और उन्हें इस क्षेत्र से जुड़ी नीति बनाने और इससे खर्च में सरकार को सलाह देने का अधिकार था। यह एक ऐसी जगह थी जहां लोग सरकार के साथ सीधे संवाद कर सकते थे या फिर अपने प्रशासन का हिस्सा हो सकते थे, अब उनकी संख्या कम होती जा रही है जो चिंताजनक है।’ खादी और चंदेरी तैयार करने और उसे बाजार में लाने के लिए मध्य प्रदेश के बुनकरों को एक साथ लाने वाले समूह खाडिजी को चलाने वाले उमंग श्रीधर कहते हैं, ‘भारत में 1.1 करोड़ हथकरघा बुनकर हैं। इस संस्था को खत्म करने से पहले कुछ लोगों के साथ विचार-विमर्श करने पर सरकार का क्या जाता? किसी चीज को खत्म करना तो आसान है लेकिन उसे बनाना मुश्किल है।’
हथकरघा नीति के विशेषज्ञ डी नरसिम्हा रेड्डी कहते हैं, ‘इस संस्था को खत्म करने का कारण न्यूनतम सरकार और अधिकतम प्रशासन को बताया गया है और सरकारी निकायों को व्यवस्थित और तार्किक बनाने की जरूरत की बात की गई है। लेकिन यह तर्क केवल सुनने में अच्छा है। अखिल भारतीय हथकरघा बोर्ड सरकार और हथकरघा बुनकरों के बीच एकमात्र संस्थागत कड़ी था।’ वह कहते हैं, ‘इस पर मुश्किल से हर साल एक लाख रुपये खर्च होता था। हथकरघा क्षेत्र का कारोबार 100,000 करोड़ रुपये तक का है जो सीमेंट और कृषिरसायन जैसे कई औद्योगिक क्षेत्रों से कहीं अधिक है। जरूरत इस बात की थी कि नीति बनाने, निगरानी, समीक्षा और जन सुनवाई से जुड़े कार्यों की जरूरतों को देखते हुए बोर्ड का पुनर्गठन किया जाता।’ इस क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या प्रमाणन की है। आखिर ‘हथकरघा’ और ‘खादी’ में क्या-क्या शामिल होता है? क्या हथकरघा से बने सभी उत्पाद खादी हैं? एचआईएचबी को हथकरघा के प्रमाणीकरण का कोई अधिकार नहीं था। यह काम कपड़ा मंत्रालय की एक समिति के द्वारा किया जाता था। खादी एवं ग्रामोद्योग निगम (केवीआईसी) किसी कपड़े को खादी के रूप में प्रमाणित करने वाली एकमात्र संस्था है।
लेकिन खादी और हथकरघा उत्पादकों की दुनिया में उस वक्त हलचल मच गई जब 2018 में केवीआईसी ने बंबई उच्च न्यायालय में मशहूर हथकरघा एवं हस्तशिल्प की खुदरा विक्रेता कंपनी फैबइंडिया के खिलाफ एक मामला दर्ज कराते हुए ‘अवैध रूप से’ इसके ट्रेडमार्क ‘चरखा’ और खादी के नाम के साथ परिधान बेचने के लिए 525 करोड़ रुपये के हर्जाने की मांग की। इसने फैबइंडिया से ‘बिना शर्त माफी’ के साथ ही लिखित में यह मांग की कि वह खादी ट्रेडमार्क वाले किसी भी खादी या इससे जुड़े उत्पादों के लिए कोई सौदा नहीं करेगा। फैबइंडिया ने इसे मान लिया। लेकिन कार्यकर्ता कहते हैं कि कंपनी ने जो कपड़े खरीदे थे, उनमें से ज्यादातर केवीआईसी से थे। श्रीधर कहते हैं, ‘कई डिजाइनर जो हमसे फैब्रिक खरीदते हैं वे सावधान हो गए जबकि हमारे पास खादी प्रमाणीकरण है। क्या होगा अगर कल केवीआईसी हमारे खिलाफ अदालत में मामला दायर करते दे या फिर डिजाइनरों के खिलाफ मामला दायर कर दे? ‘
हालांकि तथ्य यह है कि एक बार प्रमाणपत्र हासिल करने के बाद इस बात की शायद ही कोई जांच होती है कि बेचा गया उत्पाद खादी है, हथकरघा है या इसका उत्पादन करने के लिए पावरलूम का इस्तेमाल किया गया है या नहीं।
संघर्ष की गुंजाइश यहीं से बनती है। श्रीधर कहते हैं, ‘एक हथकरघा कारीगर हाथ से बुने कपड़े बनाने के लिए कई दिनों तक काम करता है। लेकिन अगर वह पावरलूम का इस्तेमाल आंशिक रूप से उसी कपड़े के उत्पादन के लिए कहता है तब लागत स्वाभाविक रूप से कम हो जाती है। इसी वजह से हथकरघा प्रतिस्पर्धा में नहीं रह पाता है।’ इस क्षेत्र की विशेषज्ञ शिखा त्यागी कहती हैं कि पिछले छह साल से एआईएचबी की कोई बैठक नहीं हुई है। वह यह भी कहती हैं कि हथकरघा क्षेत्र कई मंत्रालयों में फैला हुआ है और इसकी देखरेख की जिम्मेदारी किसी की भी नहीं है। सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय का अधिकार हथकरघा के एक हिस्से पर है। इस क्षेत्र का कुछ हिस्सा कपड़ा मंत्रालय के अधीन आता है और कुछ ग्रामीण विकास मंत्रालय के अंतर्गत है। इसके अलावा केवीआईसी का अपना साम्राज्य है। नितिन गडकरी जब भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष थे तब पार्टी ने घोषणा की थी कि वह हथकरघा और हस्तशिल्प के लिए एक अलग मंत्रालय बनाएगी। इसे 2014 में भाजपा के घोषणा पत्र में भी शामिल किया गया था। ऐसा करने के बजाय भाजपा सरकार ने कारीगरों की आवाज को ध्यान में रखने वाली एकमात्र संस्था को ही खत्म कर दिया है।