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कृषि निर्यात में लक्षित वृद्घि हासिल करने के लिए घटानी होगी लेनदेन की लागत

Last Updated- December 14, 2022 | 9:11 PM IST

चालू वित्त वर्ष के पहले छह महीनों में कृषि निर्यात सभी तरह की उम्मीदों से ऊपर रहा है। कोविड 19 के कारण लगाए गए लॉकडाउन के बाद अर्थव्यवस्था में आई सुस्ती और महामारी के कारण वैश्विक मांग में गिरावट आने से जहां सभी जिंसों के निर्यात को चोट पहुंची वहीं इस सबके बावजूद कृषि निर्यात में जबरदस्त तेजी आई।
कृषि मंत्रालय का दावा है कि अप्रैल से सितंबर 2020-21 के बीच (ताजा आंकड़ा सितंबर तक का है) भारत का कृषि निर्यात डॉलर के हिसाब से 34 फीसदी बढ़कर 5.34 अरब डॉलर से 7.14 अरब डॉलर हो गया।
हालांकि इन आंकड़ों पर करीब से नजर डालने पर पता चलता है कि बहुत सी वस्तुएं इस आकलन का हिस्सा नहीं हैं।
इसमें भैंस का मांस, समुद्री उत्पाद निर्यात, कच्चा कपास और चाय, कॉफी, रबड़ आदि को शामिल नहीं किया गया है।
ये सभी चीजें मिलकर समग्र कृषि क्षेत्र के निर्यात का एक बड़ा हिस्सा है और भैंस का मांस जैसी कुछ चीजें बासमती और गैर-बासमती चावल के बाद देश के सबसे बड़े कृषि निर्यातों में से एक है। वाणिज्य विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि यदि आप रोपण फसलों, कच्चा कपास और समुद्री उत्पादों को शामिल करें तो भारत का कुल कृषि निर्यात जिसमें पशुधन शामिल है, अप्रैल से सितंबर के दौरान करीब 18.10 अरब डॉलर का रहा। यह पिछले वर्ष की समान अवधि के मुकाबले करीब 1.03 फीसदी कम है।  
यदि केवल कृषि और उससे संबंधित गतिविधियों के निर्यातों पर ही विचार करें और रोपण तथा समुद्री उत्पादों के निर्यातों को अलग रखें तब भी वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि अप्रैल से सितंबर के बीच निर्यात 10.26 फीसदी की बहुत सामान्य दर से बढ़कर 12.88 अरब डॉलर से बढ़कर 14.20 अरब डॉलर का रहा।
आंकड़ों से यह भी स्पष्ट होता है कि 2020 से 21 के अप्रैल से सितंबर अवधि के दौरान सभी वस्तुओं ने एक समान वृद्घि नहीं दर्ज की है।
भैंस के मांस के निर्यात में करीब 15 फीसदी की गिरावट आई है और यह 1.59 अरब डॉलर से घटकर 1.36 अरब डॉलर हो गई है जबकि समुद्री उत्पादों का निर्यात करीब 19 फीसदी कम होकर 3.35 अरब डॉलर से घटकर 2.70 अरब डॉलर रह गई है।
भारत के प्रमुख कृषि उत्पाद निर्यातों में से एक मसालों का निर्यात अप्रैल से सितंबर अवधि में करीब 3 फीसदी फिसलकर 1.96 अरब डॉलर से 1.90 अरब डॉलर पर आ गया।
आंकड़ों से पता चलता है कि कोविड के महीनों के दौरान भी बड़ी फसलों में चावल (बासमती और गैर बासमती चावल दोनों) उसके बाद चीनी (कच्चा और शोधित दोनों) और कच्चा कपास ने मजबूत प्रदर्शन किया जो इस क्षेत्र की मजबूती को दर्शाता है।
कच्चे कपास के मामले में वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ा से पता चलता है कि भारत ने अप्रैल से सितंबर 2020-21 में करीब 0.46 अरब डॉलर मूल्य के कच्चे कपास का निर्यात किया है जो पिछले वर्ष की समान अवधि के मुकाबले 105 फीसदी से ऊपर अधिक है। जबकि चीनी को लेकर व्यापारियों का कहना है कि भारत ने अनुमानित तौर पर सितंबर में समाप्त 2019-20 चीनी सीजन में 60 लाख टन चीनी का निर्यात किया है जिसमें से 57 लाख टन चीनी पहले ही देश से बाहर जा चुका है।  
अप्रैल से सितंबर की अवधि में गैर बासमती चावल का निर्यात अनुमानित तौर पर 1.95 अरब डॉलर का रहा जो पिछले वर्ष की समान अवधि के मुकाबले 91 फीसदी अधिक है जबकि बासमती चावल का निर्यात अनुमानित तौर पर 2.12 अरब डॉलर का रहा जो पिछले वर्ष की समान अवधि के मुकाबले 4.50 फीसदी अधिक है।
हालांकि अच्छे प्रदर्शन के बावजूद विशेषज्ञ मानते हैं कि 2018 में जारी नई कृषि निर्यात नीति के मुताबिक 2022 तक 60 अरब डॉलर के कृषि निर्यात के लक्ष्य तक पहुंच पाने से अभी भी देश काफी पीछे चल रहा है।  
वैश्विक बाजारों में कमी आने के कारण भारत का कृषि निर्यात विगत कुछ वर्र्षों से 40 अरब डॉलर के आसपास बना हुआ है जो 2013-14 के 43 अरब डॉलर के उच्च स्तर से काफी नीचे है।
विशेषज्ञों का कहना है समुद्री बंदरगाहों और हवाईअड्डों पर लॉजिस्टिक्स की खराब स्थिति के साथ ही पादप स्वच्छता के कड़े नियम जो कभी कभी गैर शुल्क रुकावटों का काम करता है निर्यात की राह में रुकावट पैदा करते हैं। निर्यात संबंधी कानून में समय समय पर किया जाने वाला बदलाव जैसा कि हाल में प्याज के मामले में किया गया है, आदि निर्यात के लक्ष्य को हासिल करने में बड़े बाधक हैं।
दिलचस्प है कि 2018-19 में लाई गई कृषि नीति में निर्यातों पर मनमाने तरीके से रोक लगाने की प्रवृति को छोडऩे की वकालत की गई थी ताकि 2022 तक भारत को एक सशक्त गंतव्य बनाया जा सके। ग्लोबल एग्रीसिस्टम प्राइवेट लिमिटेड के चेयरमैन और कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादन निर्यात विकास प्राधिकारण (एपीडा) के पूर्व प्रमुख गोकुल पटनायक ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘मुझे लगता है कि खरीफ की बंपर पैदावार के कारण विशेष तौर फसल और कपास का कृषि निर्यात अच्छा रहा है। इसके कारण कुछ भारतीय फसलें उसी तरह के वैश्विक फसलों के मुकाबले प्रतिस्पर्धी हो गई हैं। लेकिन इसे बरकरार रखने के लिए लॉजिस्टिक्स और परिवहन संबंधी मुद्दों का समाधान जरूरी है जिससे लेनदेन की लागत में कमी आएगी।’ पटनायक ने कहा कि पादप स्वच्छता के मामले में विगत कुछ वर्षों में इसकी घटनाएं कम हुई हैं क्योंकि भारतीय व्यापारी अब वैश्विक बेंचमार्क को लेकर ज्यादा सतर्क हो गए हैं और वे खरीदार की जरूरत को पूरा करने के लिए उनके साथ मिलकर काम कर रहे हैं।
पटनायक ने कहा, ‘मुझे लगता है कि सरकार को भी सक्रिय होकर जितना जल्दी हो सके इन मामलों का समाधान करना चाहिए क्योंकि आयात करने वाले देश कभी कभी इन चीजों का इस्तेमाल गैर-शुल्क रुकावट के तौर पर करते हैं।’

First Published - November 17, 2020 | 11:09 PM IST

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