नवंबर में स्टील कंपनियों ने कीमतें 1,250 रुपये प्रति टन बढ़ा दी है और यह साल 2018 के सर्वोच्च स्तर के पास पहुंच गया है। नवंबर 2018 में हॉट रोल्ड कॉयल (एचआरसी) 46,250 रुपये प्रति टन (जो फ्लैट स्टील का बेंचमार्क माना जाता है) पर पहुंच गया था। हालांकि उसके बाद वाले महीने में कीमतें घट गई थी। मौजूदा बढ़ोतरी के बाद एचआरसी की कीमतें 45,000 रुपये प्रति टन के करीब है।
एक उत्पादक के मुताबिक, एचआरसी की कीमतें करीब 1,250 रुपये प्रति टन बढ़ाई गई है, लेकिन ग्लैवनाइज्ड व कलर कोटेड उत्पादों की कीमतें ज्यादा बढ़ी है। जेएसपीएल के प्रबंध निदेशक वी आर शर्मा ने कहा, कंपनी ने कीमतों में 1,000-2,000 रुपये प्रति टन की बढ़ोतरी की।
संचयी आधार पर स्टील मिलोंं ने एचआरसी की कीमतें जुलाई से अब तक 8,000-8,500 रुपये प्रति टन बढ़ाई है। कीमतों में बढ़ोतरी देसी मांग में सुधार में प्रतिबिंबित हुई। इक्रा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष जयंत राव ने कहा, देसी स्टील (एचआरसी) की कीमतों में पिछले दो साल से काफी अंतर दिखा है। एक ओर जहां स्टील की कीमतें नवंबर 2018 की शुरुआत में 46,500 रुपये प्रति टन थी, वहीं अगले एक साल में नवंबर 2019 तक कीमतें 32,250 रुपये प्रति टन पर आ गई। हालांकि उसके बाद उसमें सुधार हुआ और यह मौजूदा स्तर 44,500 रुपये प्रति टन पर पहुंच गई। मौजूदा स्तर पर देसी कीमतें अंतरराष्ट्रीय स्टील कीमतों से जुड़ी है।
एक उत्पादक ने कहा, हमने लंबे समय से इस तरह का मार्जिन नहींं देखा है। ये कीमतें सर्वोच्च स्तर पर नहीं हैं लेकिन कम से कम उसके करीब तो है। लौह अयस्क की कीमतें उच्चस्तर पर है और कोकिंग
कोल की कीमतों ने इसकी आंशिक भरपाई कर दी है।
स्टील की कीमतों में बढ़ोतरी को मोटे तौर पर देसी मांग में बढ़ोतरी के रूप मेंं देखा जा रहा है, खास तौर से ऑटोमोटिव, अप्लायंसेज व ग्रामीण मांग। शर्मा ने कहा कि सरकारी परियोजनाओं में भी जोर पकड़ा है।
सितंबर 2020 में तैयार स्टील का उपभोग माह दर माह के आधार पर 3.74 फीसदी बढ़ा लेकिन 2019 के मुकाबले यह 0.8 फीसदी कम है। देसी मांग हालांकि रफ्तार पकड़ रही है, ऐसे में कंपनियां निर्यात में कटौती कर रही हैं। लॉकडाउन के महीनों में स्टील फर्मों ने अपना ज्यादातर उत्पादन निर्यात बाजार में उतार दिया था। कुछ कंपनियों के मामले में निर्यात उनके कुल उत्पादन का 70-80 फीसदी तक था।
