देश के स्टॉक मार्केट में इस्पात दिग्गजों टाटा, जिंदल और मित्तल की संपत्ति 7 मई से अब तक तकरीबन 25 फीसदी सिकुड़ चुकी है।
उल्लेखनीय है कि 7 मई को सरकार की कोशिशों या दबाव के चलते देश की इस्पात कंपनियों ने निर्णय लिया था कि तीन महीनों तक इस्पात की कीमतें नहीं बढ़ाई जाएगी। आंकड़े बताते हैं कि तब से अब तक बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के सूचकांक में भी तकरीबन 16.46 फीसदी की गिरावट हो चुकी है।
बढ़ती महंगाई दर से चिंतिंत केंद्र सरकार ने इसे थामने के लिए कई मोर्चों पर अनेक कदम उठाए। 7 मई को तो प्रधानमंत्री ने इस्पात कंपनियों के प्रतिनिधियों से मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद कंपनियों ने इस्पात की कीमतों में प्रति टन 4 हजार रुपये की कटौती की घोषणा की। हालांकि 6 अगस्त को समय-सीमा पूरे होने के बाद भी कंपनियों ने ऐलान किया कि कीमतों में की गई कटौती आगे भी जारी रहेगी।
अब तो परिस्थितियां भी बदल चुकी हैं। कीमतों में वृद्धि की बात ही छोड़ दीजिए मौजूदा हालात तो कीमतों में गिरावट के हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस्पात की कीमतों में 100 डॉलर प्रति टन से ज्यादा की कमी हो चुकी है। ओलंपिक संबंधी निर्माण कार्यों के खत्म हो जाने के बाद बाजार में इस्पात की उपलब्धता अब बढ़ी है। इससे इस्पात की कीमतों पर दबाव बना है।
हॉट रोल्ड कॉयल (एचआरसी) का लैंडिग प्राइस जुलाई में जहां 1,120 डॉलर प्रति टन था, वहीं अब यह घटकर 1,020 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गया है। यही नहीं रुपये में हुई ताजा कमजोरी से एचआरसी का लैंडिग प्राइस इसकी घरेलू कीमत से थोड़ा ही ज्यादा रह गया है। दूसरी ओर, लौह अयस्कों और कुकिंग कोल की कीमतों में अब तक कमी नहीं हुई है।
उद्योग जगत पर सतर्क निगाह रखने वालों का अनुमान है कि मौजूदा वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही में यह दबाव अपना असर दिखाएगी। जून में समाप्त हुई पहली तिमाही में जेएसडब्ल्यू जैसी इस्पात कंपनियों के शुद्ध मुनाफे में पहले ही कमी हो चुकी है। सरकार ने इस्पात के लंबे उत्पादों के आयात पर पहले ही 15 फीसदी का निर्यात शुल्क लगा दिया था।
यही नहीं, इन उत्पादों के आयात पर लगने वाले 5 फीसदी सीमा शुल्क को भी हटा लिया गया था। इसका परिणाम यह हुआ था कि अप्रैल से जुलाई के बीच इस्पात के निर्यात में 25 फीसदी की कमी हो गई। जबकि इस्पात आयात में 20 फीसदी की वृद्धि हो गई। अब तो कंपनियों की मांग है कि इस्पात के आयात पर फिर से आयात शुल्क लगा दिया जाए।
वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने तो इस्पात कंपनियों पर कीमतों में वृद्धि के लिए गुटबंदी करने का आरोप जड़ा था। इस्पात और लौह उत्पादों का थोक मूल्य सूचकांक में 3.64 फीसदी की हिस्सेदारी है। फ्लैट इस्पात उत्पादों की कीमत में अप्रैल 2007 से अब तक 17 से 24 फीसदी और लंबे उत्पादों की कीमत में 50 से 60 फीसदी का उछाल आ चुका है।
ऐसा नहीं कि महंगाई को नियंत्रित करने के लिए उठाए गए सरकारी कदम का असर सिर्फ इस्पात उद्योग पर पड़ा है बल्कि चीनी और सीमेंट उद्योग भी इससे प्रभावित हुआ है।