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Rice Price : ग्लोबल सप्लाई में कमी, El Nino चावल की कीमतों में और लगा सकती है आग

घरेलू स्तर पर पिछले एक साल में चावल की खुदरा कीमतों में 22 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है

Last Updated- May 10, 2023 | 1:08 PM IST
Rice Prices: Shortage in global supply, El Nino may set fire to rice prices
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निर्यात मांग के आगे भी मजबूत बने रहने की संभावना और मॉनसूनी बारिश पर ‘अल नीनो’ (El Nino) के प्रभाव पड़ने की आशंका को लेकर खरीफ बोआई को लेकर बढ़ रही चिंता के बीच चावल (rice) की घरेलू कीमतों में तेजी आगे भी जारी रह सकती है।

जानकारों के अनुसार घरेलू कीमतों में आगे नरमी की संभावना नहीं है क्योंकि वैश्विक स्तर (global level) पर सप्लाई डेफिसिट (supply deficit) की स्थिति बनी हुई है। साथ ही भारतीय चावल (Indian rice) ग्लोबल मार्केट में फिलहाल सबसे ज्यादा कॉम्पिटेटिव है। जिस वजह से एक्सपोर्ट डिमांड आगे भी मजबूत बनी रह सकती है। इसके अतिरिक्त मॉनसून के ऊपर ‘अल नीनो’ के मंडराते खतरे के बीच खरीफ धान (paddy) के उत्पादन पर भी असर पड़ने की आशंका बढ़ गई है।

Green Agrevolution Pvt. Ltd (DeHaat) में कमोडिटी रिसर्च हेड इंद्रजीत पॉल के मुताबिक फिलहाल चावल की 1,121 वैरायटी 8,300 से 8,400 रुपये प्रति क्विंटल के रेंज में कारोबार कर रही है। जो जून 2023 तक बढ़कर 9,000 से 9,500 रुपये प्रति क्विंटल तक जा सकती है।

कितनी बढ़ी कीमतें

उपभोक्ता मंत्रालय के प्राइस मॉनिटरिंग डिवीजन (Price Monitoring Division) के आंकड़े बताते हैं कि पिछले एक साल में दिल्ली में चावल की खुदरा कीमतों में 22 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। चावल की कीमत शुक्रवार (5 मई, 2023) को 39 रुपये प्रति किलोग्राम दर्ज की गई। जबकि ठीक एक साल पहले यह 32 रुपये प्रति किलोग्राम थी। थोक कीमतों में भी समान अवधि के दौरान 18 फीसदी की तेजी आई और यह 2,550 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 3,000 रुपये प्रति क्विंटल जा पहुंची।

वहीं, इंटरनैशनल ग्रेन काउंसिल (IGC) की मंथली ग्रेन रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक स्तर पर पिछले एक साल में चावल की कीमतों (Rice sub-index) में तकरीबन 18 फीसदी का इजाफा हुआ है। जबकि मार्च के मुकाबले अप्रैल में कीमतों में 3 फीसदी की तेजी आई।

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क्यों घटी ग्लोबल सप्लाई

फिच सॉल्यूशंस (Fitch Solutions) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2023 में वैश्विक स्तर पर चावल की सप्लाई डिमांड के मुकाबले 8.7 मिलियन टन (87 लाख टन) कम रह सकती है। पिछले 20 साल में सप्लाई में यह सबसे बड़ी गिरावट है। इससे पहले 2003-04 में सप्लाई डेफिसिट (supply deficit) यानी डिमांड-सप्लाई मिसमैच बढ़कर 18.6 मिलियन टन (1.86 करोड़ टन) तक चली गई थी। इस रिपोर्ट की मानें तो 2024 यानी अगले साल से पहले चावल की कीमतों में नरमी आने की कोई संभावना नहीं है।

मौजूदा सप्लाई डेफिसिट के लिए उत्पादन में कमी के साथ साथ मांग में बढ़ोतरी भी जिम्मेदार हैं। प्रतिकूल मौसम की वजह से कई प्रमुख उत्पादक देशों में उत्पादन में आई कमी की वजह से जहां ग्लोबल सप्लाई में कटौती आई, वहीं रूस-यूक्रेन संघर्ष की वजह से वैश्विक स्तर पर गेहूं की आपूर्ति में आए भारी व्यवधान की वजह से वैश्विक स्तर पर चावल की मांग बढी।

हालांकि गेहूं की वैश्विक आपूर्ति में हाल के कुछ महीनों में काफी सुधार हुआ है। परिणामस्वरूप कीमतें भी पिछले साल के इसी समय के मुकाबले 30 फीसदी से ज्यादा घटी है। गेहूं की अंतरराष्ट्रीय कीमत फिलहाल दो साल के निचले स्तर पर है। आने वाले समय में भी गेहूं की कीमतों पर दबाव बना रह सकता है। गेहूं की आपूर्ति बढ़ने और कीमतों में नरमी से चावल की मांग पर थोड़ा असर पड़ सकता है लेकिन कीमतों पर दबाव बने ऐसी स्थिति नहीं है। क्योंकि फिलहाल सप्लाई डेफिसिट रिकॉर्ड स्तर पर है।

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यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर (USDA) की तरफ से पिछले महीने जारी डिमांड-सप्लाई रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2022-23 के लिए चावल का कुल ग्लोबल क्लोजिंग स्टॉक घटकर 171.4 मिलियन टन (17.14 करोड़ टन) रह सकता है। जो पिछले साल के मुकाबले 6 फीसदी कम है। 2017-18 के बाद यह सबसे कम क्लोजिंग स्टॉक है।

ग्लोबल मार्केट में भारतीय चावल कितना कॉम्पिटेटिव

ग्लोबल ट्रेड की बात करें तो भारत से चावल का निर्यात फिलहाल 442 डॉलर प्रति टन के भाव पर हो रहा है। जो पिछले साल के एक्सपोर्ट प्राइस के मुकाबले 27 फीसदी ज्यादा है। जबकि थाईलैंड और वियतनाम में चावल का एक्सपोर्ट प्राइस क्रमश: 11 और 16 फीसदी बढ़ा है।

चावल के औसत एक्सपोर्ट प्राइस में भी समान अवधि के दौरान 15 फीसदी की तेजी आई है। लेकिन कम तेजी के बावजूद थाईलैंड और वियतनाम के चावल का एक्सपोर्ट प्राइस अभी भी भारत के मुकाबले ज्यादा है।

आईजीसी (IGC) के मुताबिक थाईलैंड और वियतनाम के चावल का एक्सपोर्ट प्राइस फिलहाल क्रमश: 490 डॉलर प्रति टन और 480 डॉलर प्रति टन है। इस तरह से कह सकते हैं कि भारतीय चावल अभी भी ग्लोबल मार्केट में सबसे ज्यादा कॉम्पिटेटिव है।

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प्रतिबंध के बावजूद निर्यात की रफ्तार नहीं पड़ी धीमी

कॉमर्स मिनिस्ट्री के आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2022-23 में देश से कुल 223.5 लाख टन चावल का एक्सपोर्ट हुआ जो पिछले वित्त वर्ष के 212.3 लाख टन के मुकाबले 5 फीसदी ज्यादा है। इसी अवधि के दौरान बासमती चावल का निर्यात 16 फीसदी बढ़कर 39.4 लाख टन के मुकाबले 45.6 लाख टन तक पहुंच गया।

गैर बासमती चावल के निर्यात में भी समान अवधि के दौरान 3 फीसदी की तेजी आई। वित्त वर्ष 2022-23 में देश से कुल 177.9 लाख टन गैर बासमती चावल का एक्सपोर्ट हुआ जबकि वित्त वर्ष 2021-22 में 172.9 लाख टन गैर बासमती चावल का एक्सपोर्ट हुआ था।

हालांकि पिछले साल सितंबर में घरेलू स्तर पर कीमतों पर लगाम लगाने के लिए सरकार ने टूटे चावल (broken rice) के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। साथ ही गैर बासमती चावल के निर्यात पर 20 फीसदी एक्सपोर्ट ड्यूटी भी लगा दी थी।

पिछले साल सरकार ने यह कदम तब उठाया था जब गेहूं की सरकारी खरीद में काफी गिरावट आई थी और कमजोर मॉनसून की वजह से धान के उत्पादन में भी कमी की आशंका जतायी जा रही थी। हालांकि अभी तक चावल की सरकारी खरीद मौजूदा मार्केटिंग सीजन के दौरान संतोषजनक ही रही है और सरकारी अनुमानों के मुताबिक उत्पादन में भी कोई गिरावट नहीं दर्ज की गई। पिछले खरीद सीजन में भी चावल की रिकॉर्ड सरकारी खरीद हुई थी।

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क्या कहते हैं उत्पादन और सरकारी खरीद के आंकड़े

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक मौजूदा खरीफ मार्केटिंग सीजन (2022-23) के दौरान 30 अप्रैल तक 744.03 लाख टन धान (499.78 लाख टन चावल) की सरकारी खरीद हुई है जबकि पिछले मार्केटिंग सीजन (2021-22) के दौरान कुल 857.30 लाख टन धान (602.45 लाख टन चावल) की सरकारी खरीद हुई थी। इससे पहले मार्केटिंग सीजन 2020-21 के दौरान  रिकॉर्ड 895.65 लाख टन धान (602.45 लाख टन चावल) की सरकारी खरीद हुई थी।

वहीं सरकार के दूसरे अग्रिम अनुमानों के मुताबिक वर्ष 2022-23 में देश में 13.08 करोड़ टन चावल के उत्पादन की संभावना है जबकि पिछले वर्ष 12.95 करोड़ टन चावल का उत्पादन हुआ था।

क्या देश में है चावल का पर्याप्त स्टॉक

गेहूं की खरीद में कमी के मद्देनजर सरकार पिछले साल सरकारी लोक कल्याणकारी योजनाओं के तहत गेहूं के वितरण में कटौती कर चावल से उसकी भरपाई कर रही थी। एफसीआई (FCI) से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा एक्ट (NFSA) और अन्य लोक कल्याणकारी योजनाओं (welfare schemes) के तहत वितरण के लिए मौजूदा वित्त वर्ष के पहले 10 महीनों (अप्रैल 2022 – जनवरी 2023) में सेंट्रल पूल से 554.59 लाख टन चावल और 217.63 लाख टन गेहूं की निकासी की गई। जबकि पिछले वित्त वर्ष (2021-22) कुल 557.35 लाख टन चावल और 506.34 लाख टन गेहूं की निकासी की गई थी।

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बावजूद इसके अभी भी सेंट्रल पूल में चावल का पर्याप्त स्टॉक है। 1 अप्रैल 2023 को सेंट्रल पूल में 248.60 लाख टन चावल (बिना कुटे धान /unmilled paddy को छोड़कर) का स्टॉक था जो सरकार द्वारा तय बफर मानदंड (buffer norms) का तकरीबन दोगुना है। बफर मानदंड के मुताबिक 1 अप्रैल को कम से कम 135.8 लाख टन चावल का स्टॉक सेंट्रल पूल में होना चाहिए। हालांकि पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले यह  23 फीसदी कम है। 1 अप्रैल 2022 को सेंट्रल पूल में 323.22 लाख टन चावल का स्टॉक था।

क्या सरकार निर्यात प्रतिबंधों में देगी ढील

जहां तक निर्यात पर प्रतिबंध और एक्सपोर्ट ड्यूटी का प्रश्न है, सरकार की नजर फिलहाल गेहूं की सरकारी खरीद पर है। अगर गेहूं की सरकारी खरीद सरकार के अनुमान के मुताबिक रहती है तो यह सरकार के लिए बड़ी राहत की बात होगी।

कुछ जानकारों के अनुसार क्योंकि अगले साल देश में आम चुनाव है इसलिए सरकार ‘अल नीनो’ के मंडराते खतरे के बीच सितंबर-अक्टूबर तक धान की बोआई पर नजर रखना जरूर चाहेगी।

देश के पूर्व एग्रीकल्चर सेक्रेटरी सिराज हुसैन के मुताबिक ‘अल नीनो’ की आशंका के बीच सरकार आगामी खरीफ सीजन में बोआई और उसके बाद की सरकारी खरीद पर नजर रखेगी। इसलिए तब तक गैर बासमती चावल पर एक्सपोर्ट ड्यूटी में कटौती की संभावना नहीं है।

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इंद्रजीत पॉल भी कमोबेश यही राय रखते हैं। उनके अनुसार सरकार एक्सपोर्ट बैन को वापस नहीं ले सकती है क्योंकि ‘अल नीनो’ ने मॉनसूनी बारिश को लेकर चिंता बढ़ा दी है। जिस वजह से धान के उत्पादन में कमी की आशंका जतायी जा रही है। साथ ही सरकार 2025 तक 20 फीसदी एथेनॉल मिश्रित पेट्रोल की आपूर्ति के लक्ष्य को हासिल करना चाह रही है। जिसके लिए ब्रोकन राइस का देश में पर्याप्त सप्लाई जरूरी है।

गौरतलब है कि गन्ना के अलावा ब्रोकन राइस का इस्तेमाल भी एथेनॉल के उत्पादन में होता है। वहीं सरकार गैर बासमती चावल पर एक्सपोर्ट ड्यूटी इसलिए नहीं हटाएगी क्योंकि एक्सपोर्ट ड्यूटी के बावजूद भारतीय चावल वैश्विक बाजार में सबसे ज्यादा कॉम्पिटेटिव है।

हां, अगर गेहूं की सरकारी खरीद सरकार के अनुमान के मुताबिक रहती है और मॉनसून धान की बोआई के रास्ते में रोड़ा नहीं डालता है तो सरकार के पास गैर बासमती चावल पर एक्सपोर्ट ड्यूटी कम करने की या हटाने की गुंजाइश होगी। अगर सरकार ऐसा करती है तो नि:संदेह निर्यात में और तेजी आएगी। परिणामस्वरूप कीमतों को और सपोर्ट मिलेगा।

First Published - May 7, 2023 | 3:58 PM IST

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