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‘किसानों के लिए काला हीरा, लौटेगा मधुबनी-दरभंगा का वैभव’, कैसे मखाने की खेती कर मालामाल हो रहे हैं बिहार के किसान

कोरोना के बाद मखाने की मांग तेजी से बढ़ी है। रोगों से लड़ने और पोषक तत्वों के कारण मखाने का सेवन बढ़ रहा है।

Last Updated- February 17, 2025 | 2:03 PM IST
Makhana
फोटो क्रेडिट- रामवीर सिंह गुर्जर

पांच साल पहले आई कोरोना महामारी ज्यादातर कारोबारों के लिए काल बनकर आई थी मगर मखानों के कारोबार में इसने नई जान फूंक दी। उस दौरान मखाने की मांग इतनी बढ़ी कि उत्पादन में इजाफे के बाद भी दाम दो-तीन गुना बढ़ गए हैं। मखाना किसान मालामाल तो हुए ही हैं अब उन्हें बाजार भी नहीं तलाशना पड़ रहा क्योंकि खरीदार खुद उनके दरवाजे आ रहे हैं। 

मखाने के दिन बदलने का सबसे बड़ा फायदा बिहार के किसानों को हुआ है क्योंकि देश में 85 फीसदी से ज्यादा मखाना वहीं से आता है। बिहार सरकार मखाने की खेती बढ़ाने के लिए कई तरह के उपाय कर रही है और अब केंद्र सरकार का ध्यान भी इस पर टिक गया है। इस बार के आम बजट में मखाना बोर्ड बनाने का ऐलान किया गया है, जिसके बाद बिहार के मखाने की मांग विदेश में भी बढ़ने की उम्मीद है।

मालामाल मखाना किसान

मखाने की सबसे ज्यादा खेती बिहार के मिथिलांचल में होती है, जहां पोखरों में मखाने उगाए जाते हैं। मिथिलांचल में दरभंगा जिले के राम प्रसाद सहनी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘मखाने की खेती हमारा पुश्तैनी काम है मगर कोरोना के बाद हमारी किस्मत ही बदल गई क्योंकि मखाने की मांग एकाएक बढ़ गई। अब मखाना हमारे लिए काला हीरा बन गया है और बहुत अच्छे दाम दिला रहा है।’ पिछले सीजन में सहनी ने करीब 12 लाख रुपये के मखाने बेचे, जबकि कोरोना से पहले 3-4 लाख रुपये के मखाने ही बिकते थे।

मखाने के दाम दोगुने से भी ज्यादा होने के कारण सहनी जैसे किसानों की आमदनी भी खूब बढ़ गई है। मिथिलांचल राज कृषक प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड चला रहे आशुतोष ठाकुर ने बताया कि मखाना किसान अब 1,000 रुपये से 1,500 रुपये प्रति किलोग्राम तक दाम पा रहे हैं। पिछले दो साल में ही दाम दोगुने हो गए हैं और कोरोना से पहले की तुलना में चार गुने। ठाकुर ने कहा, ‘हमारे एफपीओ ने करीब 2 करोड़ रुपये के मखाने बेचे हैं। दो-तीन साल पहले इससे आधी बिक्री भी नहीं हो पाती थी। जब से लोगों को पता चला है कि मखाना बीमारियों से लड़ने की क्षमता बढ़ाता है और पोषण से ऊरपूर होता है तब से इसकी खपत बहुत बढ़ गई है।’

दरभंगा में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के मखाना अनुसंधान केंद्र के प्रमुख डॉ इंदु शेखर सिंह ने बताया कि मखाने में अंडे से भी ज्यादा प्रोटीन होता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता भी इसके सेवन से बढ़ती है। इसीलिए मखाने की मांग तेजी से बढ़ रही है, जिस कारण दाम भी उछल पड़े हैं। अब खरीदार इन्हें खरीदने किसानों के खेतों तक आ रहे हैं।

पोखर से खेत पहुंचा मखाना

मखाने की खेती अब पोखर के साथ खेतों में भी होने लगी है। ठाकुर ने बताया कि इसकी खेती के लिए पानी ज्यादा चाहिए, इसलिए पोखर और झील अच्छे रहते हैं। मगर मांग बढ़ने के साथ ही मखाना खेतों में भी उगाया जाने लगा है। मिथिलांचल के ही कटिहार, पूर्णिया, किशनगंज, सुपौल, अररिया, मधेपुरा, सहरसा और खगड़िया में मखाना खेतों में भी हो रहा है क्योंकि इन इलाकों में पूर्वी कोसी नहर के कारण पानी काफी उपलब्ध है। पोखर में मखाना उगाने वाले दरभंगा के बिकाऊ मुखिया मांग बढ़ती देखकर खेत में भी इसे उगाना चाहते थे मगर लंबे वक्त के लिए ठेके पर कोई खेत नहीं मिल रहा था। अब मुखिया को दो एकड़ खेत मिल गया है, इसलिए उस पर भी मखाना उगाया जाएगा।

बढ़ रहा रकबा व उत्पादन

मांग बढ़ने से मखाने की खेती भी बढ़ रही है। डॉ सिंह ने बिहार सरकार के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि 2021-22 में राज्य में मखाने का रकबा 35,224 हेक्टेयर था, जिसमें 56,389 टन मखाना बीज हुआ और 23,657 टन मखाना लावा निकला। खाने में लावा ही इस्तेमाल होता है। बीते दो-तीन साल में मखाने की खेती तेजी से बढ़ी है। सहनी के मुताबिक पहले वह केवल 1 हेक्टेयर में मखाना उगाते थे मगर अब 3 हेक्टेयर में खेती कर रहे हैं। मांग बढ़ने से किसान भी इसमें बहुत दिलचस्पी लेने लगे हैं। कई साल से 50-60 हेक्टेयर में मखाना उगाने वाल ठाकुर का एफपीओ अब 250 हेक्टेयर में इसकी खेती करने जा रहा है। 

बिहार सरकार भी मखाने की खेती को बढ़ावा दे रही है। सहनी ने बताया कि राज्य सरकार से 72,000 रुपये प्रति हेक्टेयर सब्सिडी मिल रही है, जिससे किसानों में इसका आकर्षण बढ़ रहा है। ठाकुर ने कहा, ‘पहले खरीदार किसानों से पूछते थे कि कितना मखाना दे पाएंगे मगर अब किसान पूछते हैं कि कितना खरीद पाओगे। जाहिर है कि अब उनके पास खूब मखाना हो रहा है।’

निर्यात बढ़ाएगा मखाना बोर्ड 

बजट में करीब 100 करोड़ रुपये के आवंटन के साथ प्रस्तावित मखाना बोर्ड से इसके निर्यात को भी बढ़ावा मिलने की संभावना है। ठाकुर ने कहा, ‘काजू निर्यात संवर्द्धन परिषद, नारियल, चाय और कॉफी बोर्ड से इन उत्पादों का निर्यात बढ़ा है। मखाना बोर्ड से भी ऐसा ही होने की उम्मीद है। पिछले कुछ साल में कंपनियां बिहार से मखाना खरीदकर निर्यात कर भी रही हैं। हमारे एफपीओ से भी हाल में दिल्ली की एक कंपनी निर्यात के लिए मखाना ले गई।’ डॉ सिंह ने कहा कि मखाने के निर्यात के लिए अभी अलग से एचएसएन कोड नहीं है, इसलिए निर्यात के आंकड़े भी नहीं मिल पाते। मोटा अनुमान है कि देश से 3-4 हजार टन मखाना निर्यात हो रहा है। सबसे ज्यादा मखाना अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया तथा संयुक्त अरब अमीरात को जाता है। मखाना बोर्ड बनने से कोड बन जाएगा और निर्यात के सही आंकड़े मिलेंगे।

मखाने से बन रहे मूल्यवर्द्धित उत्पाद 

मखानों की बढ़ती मांग देखकर इसका प्रसंस्करण और मूल्यवर्द्धन भी होने लगा है, जिससे अधिक कमाई हो जाती है। मधुबनी मखाना प्राइवेट लिमिटेड में बिक्री प्रबंधक पप्पू कुमार ने बताया कि उनकी कंपनी रोजमर्रा इस्तेमाल के लिए रोस्टेड मखाने जैसे उत्पाद बनाती है, जिनमें मार्जिन अच्छा मिलता है। 1,000 रुपये किलो कीमत वाले मखाने की कुल लागत मूल्यवर्द्धन के बाद 1,500 रुपये किलो होती है मगर इसे 2,000 से 2,500 रुपये किलो में बेचा जाता है। रोस्टेड उत्पादन में आधा मखाना और आधी सूजी तथा दूसरी सामग्री होती है। मगर मखाना महंगा होने का असर इन उत्पादों पर भी दिख रहा है। पप्पू ने बताया कि उनकी कंपनी पहले 40 रुपये में तीन फ्लेवर वाला 25 ग्राम का पैकेट बेच रही थी। अब इसका 16 ग्राम का पैकेट 20 रुपये में निकाला है मगर लोग 10 रुपये में मखाना खाना चाहते हैं, जो दाम कम होने पर ही संभव हो सकेगा। डॉ सिंह ने कहा कि मखाने से अब कुरकुरे, पास्ता, हॉर्लिक्स, खीर पाउडर, मखाना हलवा, कुकीज, स्नैक्स आदि भी बन रहे हैं। लुधियाना में आईसीएआर के सीफेट में वैज्ञानिक डॉ राजेश विश्वकर्मा ने बताया कि मखाने से ऐसे उत्पाद तैयार करने की प्रक्रिया सीखने कई उद्यमी उनके यहां आ रहे हैं।

लौटेगा मधुबनी-दरभंगा में मखाने का वैभव

मिथिलांचल में मखाना सामाजिक आयोजनों और रीति-रिवाजों का अभिन्न हिस्सा है। शरद पूर्णिमा पर होने वाले कोजगरा त्योहार के दिन वर पक्ष के घर कन्या पक्ष की ओर से उपहारों में मखाना विशेष रूप से आता है और परिवार तथा गांव में बांटा जाता है। उस दिन हर परिवार पूजा-प्रसाद में मखाने का इस्तेमाल करता है। उसी समय मखाने की नई फसल भी आती है। ठाकुर ने बताया कि मधुबनी और दरभंगा में सबसे अच्छी किस्म का मखाना होता है, जो 4-5 फुट गहरे पानी में होने के कारण ज्यादा फूला रहता है। मगर ये दोनों जिले पिछले कुछ समय में मखाने की खेती में पिछड़ गए हैं। ठाकुर ने कहा कि मधुबनी में पोखर खूब हैं, जिस कारण मखाना भी बहुत होता है मगर पिछले कुछ समय में पूर्वी कोसी नहर का पानी मिलने के कारण दूसरे जिलों में खेतों में भी मखाना उगाया जाने लगा है। इसीलिए मधुबनी, दरभंगा से ज्यादा उपज दूसरे स्थानों पर हो रही है। लेकिन अब पश्चिम बिहार में भी कोसी का पानी आने लगा है, जिससे इन दोनों जिलों में पोखर के साथ खेतों में भी मखाना उगने लगेगा। इन दोनों जिलों का मखाना गुणवत्ता के हिसाब से सबसे अच्छा भी माना जाता है। खेतों में 25 से 30 हेक्टेयर प्रति क्विंटल उपज होती है, जबकि पोखर में इससे आधा मखाना ही हो पाता है। इसलिए खेतों में मखाने की फसल से दोनों जिले फिर अव्वल बन सकते हैं।

First Published - February 16, 2025 | 11:40 PM IST

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