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कच्चे तेल का आयात घटाने के लक्ष्य से चूक सकता है भारत

Last Updated- December 12, 2022 | 10:06 AM IST

पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक भारत के घरेलू कच्चे तेल का उत्पादन 2020 में करीब 25 से 26 लाख टन प्रति महीने रहा है।  यह 2019 में हुए 27 से 28 लाख टन प्रति माह उत्पादन की तुलना में थोड़ा कम है। उत्पादन में कमी की प्रमुख वजह पुराने क्षेत्र हैं, वहां तब तक तेल उत्पादन कम रहेगा, जब तक कि बढ़ी हुई तेल अन्वेषण तकनीक लागू नहीं की जाती।
तेल अन्वेषण कंपनियों के अधिकारियों के मुताबिक तेल के कम दाम होने और सरकार की ओर से प्रोत्साहन संबंधी समर्थन न मिलने के कारण उत्पादन लागत ज्यादा पड़ रही है।
एक तेल अन्वेषण कंपनी के प्रतिनिधि ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘कच्चे तेल की कीमत कम होने के साथ अब जोखिम बहुत ज्यादा है। कोविड-19 महामारी के लॉकडाउन के दौरान तेल व गैस अन्वेषण कंपनियों के लिए पैकेज की भी बात चली, लेकिन इसे मूर्त रूप नहीं दिया जा सका।’
 ब्रेंड क्रूड साल की शुरुआत में 66 डॉलर प्रति बैरल पर खुला और दिसंबर 2020 में 50 डॉलर प्रति बैरल के करीब रहा। पूरे साल के दौरान उल्लेखनीय रूप से इसकी कीमतों में उतार चढ़ाव बना रहा और कीमतें 20 डॉलर प्रति बैरल के निचले स्तर पर भी पहुंच गईं। हालांकि साल के ज्यादातर दिनों में इसकी कीमतें 40 से 50 डॉलर प्रति बैरल के बीच बनी रहीं। घरेलू कंपनियां कच्चे तेल की बिक्री ब्रेंट के दाम पर नहीं करतीं, लेकिन यह तेल शोधन कंपनियों के लिए मोलभाव के लिए मानक का काम करता है।
तेलशोधन संयंत्रों के लिए आयातित कच्चा तेल तरजीही है क्योंकि इसकी गुणवत्ता अच्छी होती है और  मौजूदा समय में इसकी बहुतायत है। बड़ी तेल अन्वेषण और उत्पादन कंपनियों का भी मानना है कि भारत के बाहर कच्चे तेल के निर्यात को अनुमति नहीं है, ऐसे में घरेलू रिफाइनरी ही उनके एकमात्र खरीदार हैं, जिसकी वजह से इस जिंस की बिक्री का मूल्य और कम हो जाता है।
कच्चे तेल का उत्पादन जहां कम हुआ है, तेल शोधन संयंत्रों का उत्पादन उस अनुपात में नहीं है। इसका मतलब यह है कि कच्चे तेल की जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भरता और बढ़ी है। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2022 तक आयात 10 प्रतिशत घटाने के लक्ष्यों का विरोधाभासी है। भारत के तेल व गैस क्षेत्र को यह लक्ष्य मोदी ने मार्च 2015 में दिया था। वित्त वर्ष 2013-14 में भारत की आयात पर निर्भरता 77 प्रतिशत थी, जो अब वित्त वर्ष 2020-21 में बढ़कर 85 प्रतिशत से ज्यादा हो गई है।
घरेलू तेल व गैस उत्पादन बढ़ाने के लिए केंद्र ने कई सुधार किए हैं। इसमें अन्वेषण के लिए ज्यादा भूभाग दिया जाना और लाइसेंस प्रणाली को सरल करना व हाइड्रोकार्बन के सभी प्रारूपों के उत्पादन को अनुमति देना शामिल है। 2020 में ही पांचवें दौर की बोली में ओपन एकरेज लाइसेंसिंग नीति (ओएएलपी) के तहत 11 ब्लॉक आवंटित किए गए। यह उन आवंटित 94 ब्लॉकों के अतिरिक्त हैं, जिन्हें इस नीति को 2018 में लागू किए जाने के बाद पहले चार दौर में आवंटित किया गया था। ये दौर उत्साहजनक रहे हैं और कुछ मझोली तेल कंपनियों ने 2021 से ही उत्पादन शुरू कर देने का वादा किया है।  
उत्पादन में इस गिरावट पर बहस हो सकती है, जिसमें कोविड-19 महामारी के असर को भी नकारा नहीं जा सकता है। गैस उत्पादन में भी गिरावट आई है और साल के दौरान मांग कमजोर रही है। इसके अलावा 2020 में घरेलू उत्पादन प्रभावित होने की एक और वजह कोविड-19 के कारण हुई देशबंदी की वजह से उपकरणों की आवाजाही प्रभावित हुई है।
पेट्रोलियम मंत्रालय ने दिसंबर 2019 में कहा था कि तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम लिमिटेड के वेस्टर्न ऑफशोर 16 क्लस्टर से मोबाइल ऑफशोर प्रोडक्शन यूनिट न होने के कारण गिरावट आई है। 2018 से यहां से गिरावट बने रहने की एक वजह रही है।

First Published - January 1, 2021 | 9:08 PM IST

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