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किसानों को उपज के नहीं मिल रहे उचित दाम, हरियाणा में होने वाले विधान सभा चुनाव पर पड़ सकता है असर

हरियाणा में बासमती चावल के दाम कम होकर 2,500 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं, जो पिछले साल 3,500 से 4,000 रुपये प्रति क्विंटल थे।

Last Updated- September 02, 2024 | 6:40 AM IST
FARMER

मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में रहने वाले कमलेश पाटीदार के लिए रक्षा बंधन ठीक नहीं गुजरा। जब उनके सगे-संबंधी रक्षाबंधन का त्योहार मनाने में जुटे थे तब कमलेश अपने पूरी तैयार सोयाबीन की खेत में अपने दो ट्रैक्टरों से जुताई कर रहे थे। यह कोई मामूली बात नहीं थी मगर हालात कुछ ऐसे हो गए थे।

खुले बाजार में सोयाबीन के जो दाम मिल रहे थे उनसे लागत भी वसूल नहीं हो पा रही थी, मुनाफा कमाना तो दूर की बात थी। निराश होकर कमलेश ने न केवल अपनी फसल बरबाद करना बेहतर समझा बल्कि उन्होंने दूसरे किसानों को भी ऐसा करने की सलाह दी।

मध्य प्रदेश और इससे सटे बाजारों में सोयाबीन की कीमतें 3,500-4,000 रुपये प्रति क्विंटल थीं। पिछले दस वर्षों से भी अधिक समय में सोयाबीन के दाम इतने निचले स्तर पर कभी नहीं आए थे। सोयाबीन का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 4,892 रुपये प्रति क्विंटल है। मध्य प्रदेश के बाजारों में सोयाबीन की कीमतें एमएसपी से 800-900 रुपये कम हैं।

हाल में राज्य में किसानों ने 6,000 रुपये प्रति क्विंटल खरीद मूल्य की मांग के समर्थन में प्रदर्शन करना शुरू किया है। भारत में इस खरीफ सत्र में लगभग 1.25 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में सोयाबीन की बोआई हुई थी। यह सोयाबीन के सामान्य रकबे से करीब 2 प्रतिशत अधिक है। पिछले पांच वर्षों का औसत रकबा सामान्य रकबा कहलाता है।

खाद्य तेलों का सस्ता आयात सोयाबीन की कीमतों में गिरावट का एक बड़ा कारण है। सरकार ने मार्च 2025 तक देश में शून्य शुल्क पर खाद्य तेलों के आयात की अनुमति दी गई है। मुद्रास्फीति नियंत्रित करने के लिए उठाए गए इस कदम के बाद देश में खाद्य तेलों का आयात काफी बढ़ गया है, जिससे किसानों की कमाई पर चोट पड़ रही है।

सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन (एसईए) से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार जुलाई 2024 में भारत में 18.4 लाख टन खाद्य तेल का आयात हुआ, जो जून के 18.5 लाख टन की तुलना में मामूली कम है।

एक और बड़ा कारण यह है कि भारत ने 10.08 लाख टन पाम तेल का आयात किया, जो एक रिकॉर्ड है। यह नवंबर 2022 के बाद से अब तक का सबसे ऊंचा स्तर है। इतने बड़े पैमाने पर सस्ते खाद्य तेलों के आयात का असर बाजार पर पड़ना तय है। मध्य प्रदेश में किसान प्रकोष्ठ के प्रमुख केदार सिरोही ने कहा, ‘मध्य प्रदेश की कृषि अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा सोयाबीन पर आधारित है। खुले बाजार में इसके दाम में इस कदर गिरावट पूरी ग्रामीण अर्थव्यवस्था को तबाह कर रहा है।’

महाराष्ट्र सहित दूसरे राज्यों में यही स्थिति दिख रही है। मध्य प्रदेश के बाद महाराष्ट्र देश में सोयाबीन का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। कुछ दिनों पहले जब केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश के दौरे पर गए थे तो सोयाबीन किसानों के एक प्रतिनिधिमंडल ने उनसे मुलाकात की थी।

चौहान ने किसानों को आश्वस्त किया कि केंद्र सरकार उनके हित सुरक्षित रखने के लिए एमएसपी पर सीधी खरीदारी सहित सभी अन्य जरूरी उपाय करेगी। महाराष्ट्र में इस साल नवंबर में विधान सभा चुनाव होने वाले हैं। राज्य में लोक सभा चुनाव में महायुति सरकार के खस्ता प्रदर्शन के लिए ग्रामीण क्षेत्र में व्याप्त असंतोष को जिम्मेदार बताया गया था। विशेषज्ञों के अनुसार इस बार फिर वही हाल रहा तो राज्य में महायुति सरकार की विश्वसनीयता को तगड़ी चोट पहुंचेगी।

अरहर के दाम पर भी चोट!

केवल सोयाबीन के कमजोर दाम की गूंज ही राजनीतिक गलियारों में नहीं सुनाई दे रही है। इस बार अरहर की बोआई का रकबा भी अधिक रहा है, यानी इसका उत्पादन अधिक रह सकता है। देश में चना के बाद अरहर दूसरी दाल है, जिसका सबसे अधिक उत्पादन होता है। चना के बाद देश में अरहर का सबसे अधिक उत्पादन होता है और दलहन के सालाना उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी 13-14 प्रतिशत होती है।

खरीफ सत्र में महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर अरहर की खेती होती है। पूरे देश में लगभग 45.7 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में अरहर की बोआई हुई है, जो इसके सामान्य रकबे से अधिक है। हालांकि, अब समस्या यह है कि अस साल अरहर का उत्पादन भी अधिक रहा और शून्य शुल्क के कारण इसका बाहर से आयात हुआ तो आने वाले दिनों में बाजार में इसके दाम गिर सकते हैं। उपभोक्ताओं के लिहाज से तो यह अच्छा होगा मगर किसानों के लिए समस्या और गहरा सकती है। इसका असर राजनीतिक गलियारों में भी दिखना शुरू हो जाएगा।

हाल में भारतीय दलहन खाद्यान्न संघ (आईजीपीए) के चेयरमैन विमल कोठारी ने कहा कि इस साल कीमतें बढ़ने की बात तो दूर, उल्टा इनमें कमी आएगी। आईग्रेन इंडिया में जिंस विश्लेषक राहुल चौहान का कहना है कि वित्त वर्ष 2025 में दलहन के दाम बढ़ने की गुंजाइश नजर नहीं आ रही है। चौहान ने कहा कि दूसरे देशों में भी अरहर सहित अन्य दलहन फसलों का उत्पादन अधिक रह सकता है, जिससे ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, म्यांमार और अफ्रीकी देशों में कीमतों को लेकर आपसी प्रतिस्पर्द्धा दिख सकती है।

बासमती पर असर

विधान सभा चुनाव की राह देख रहे हरियाणा में भी किसानों से जुड़े मसलों की गूंज सुनाई दे रही है। हरियाणा में बासमती चावल के दाम कम होकर 2,500 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं, जो पिछले साल 3,500 से 4,000 रुपये प्रति क्विंटल थे। इसका एक बड़ा कारण यह है कि 950 डॉलर प्रति टन से कम दाम वाले बासमती के निर्यात पर सीमा तय कर दी गई है।

पिछले सप्ताह केंद्र सरकार ने चीनी उद्योग को समर्थन देने के लिए कई उपायों की शुरुआत की है। खबरों के अनुसार खाद्य तेलों पर आयात शुल्क बढ़ाने और बासमती का न्यूनतम निर्यात मूल्य घटाने पर विचार हो रहा है।

 

First Published - September 2, 2024 | 6:20 AM IST

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