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वायदा की सफलता के लिए समान कर जरूरी

Last Updated- December 05, 2022 | 11:43 PM IST

भारत में वायदा कारोबार के बढ़ते महत्व को देखते हुए वायदा बाजार आयोग के अध्यक्ष बी सी खटुआ ने कहा है कि देश भर में एकसमान कर संरचना और वस्तुओं का मुक्त प्रवाह न होना  इसकी सफलता में आड़े आ रहे है।


उन्होंने कहा है कि राज्य और केंद्र द्वारा अलग-अलग टैक्स लगाए जाते हैं। कई राज्यों में एक ही वस्तु पर टैक्स की दरें भी अलग-अलग हैं। उन्होंने बताया कि इस तरह की परिस्थितियों में नकदी कारोबार की सफलता मुश्किल लगती है। खटुआ ने  भारतीय उद्योग परिसंघ (कनफेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज,सीआईआई) द्वारा आयोजित कांफ्रेंस के मौके पर ये बातें कहीं।


देश के दो बड़े कमोडिटी एक्सचेंजों मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज(एमसीएक्स) और नैशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स)ने कई वस्तुओं के नकदी ऑनलाइन कारोबार के लिए कई राज्य सरकारों से अनुमति ले रखी है और कई के लिए बातचीत निर्णायक दौर में चल रही है। इसकी अनुमति मिलने के बाद कई अन्य वस्तुओं का इन एक्सचेंजों के जरिये नकदी ऑनलाइन कारोबार संभव हो सकेगा।


वैसे केंद्र सरकार समान वस्तु और सेवा कर (गुड्स एंड सर्विस टैक्स, जीएसटी) लाने की तैयारी कर रही है और इसके 2010 तक आने की उम्मीद है। जीएसटी लागू होने के बाद सभी चालू करों की जगह ले लेगा। दरअसल राज्य सरकारों की कम रूचि और बेहतर बुनियादी सुविधाओं के अभाव में भारत में नकदी कारोबार बड़े स्तर पर टुकड़ों में बंटा हुआ है।


कृषि जिंस विपणन समिति (एग्रीकल्चर कमोडिटी मार्केटिंग कमिटी, एपीएमसी) देश में कृषि जिंसों के संबंध में नियंत्रक की भूमिका अदा करती है, लेकिन राज्य दर राज्य इसके मानदंड अलग होते जाते हैं। बिहार और केरल जैसे राज्य कब से एपीएमसी के नियमों को धता बता चुके हैं। इन राज्यों में स्थानीय आढ़तिये ही अब चीजों को तय करते हैं और कीमतें रोजाना आधार पर मांग और आपूर्ति के परंपरागत सिद्धांत से तय होती हैं।


हालांकि जब एक राष्ट्रीयकृत एक्सचेंज किसी वस्तु की कीमत तय कर देता है ऐसी स्थिति में स्थानीय कारकों का वस्तु का मूल्य तय करने के लिए कुछ नहीं बचता है। वास्तव में वस्तुओं की एक राज्य से दूसरे राज्य में आवजाही में भी सुधार होना चाहिए।

First Published - April 24, 2008 | 11:38 PM IST

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