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काली मिर्च के निर्यात पर संकट के काले बादल

Last Updated- December 10, 2022 | 10:35 PM IST

मौजूदा वित्तीय वर्ष में काली मिर्च के निर्यात को गहरा धक्का लगा है और जिस तरह के रूझान दिख रहे हैं उससे यही संकेत मिलते हैं कि 25,000 टन निर्यात के लक्ष्य तक पहुंचने में थोड़ी दिक्कत जरूर आएगी।
मसाला बोर्ड ने 70 फीसदी का लक्ष्य निर्धारित किया है जिसे इस साल हासिल किया जा सकता है। कारोबार में मौजूदा मंदी से निर्यात प्रभावित हुआ है। देश को मौजूदा वित्त वर्ष की अप्रैल-फरवरी की अवधि के दौरान काली मिर्च के निर्यात में 26.5 फीसदी की रिकॉर्ड स्तर की गिरावट की वजह से निर्यात को गहरा झटका लगा है।
इस बार कुल निर्यात 31,760 टन जिसकी कीमत 466.26 करोड़ रुपये थी उसके मुकाबले 23,350 टन का निर्यात किया गया जिसकी कीमत 384.09 करोड़ रुपये है। इस तरह निर्यात में 17.6 फीसदी की कमी देखी गई। मसाला बोर्ड ने पूरे साल के लिए 35,000 टन का जो लक्ष्य निर्धारित किया है उसे पाना बहुत मुश्किल है। वैसे 66.7 फीसदी के लक्ष्य को पा लिया गया है।
भारत की कीमतें वियतनाम के मुकाबले 250 डॉलर, ब्राजील के मुकाबले 350 डॉलर और इंडोनेशिया के मुकाबले 400 डॉलर ज्यादा है।  इससे यह आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कीमतों के लिहाज से अंतरराष्ट्रीय बाजार में निर्यात पर किस तरह असर पड़ सकता है।
मौजूदा वैश्विक आर्थिक मंदी की वजह से मसाले के निर्यात पर दबाव तो बढ़ेगा ही साथ ही काली मिर्च के निर्यात पर खासतौर से दबाव पड़ सकता है। पूरे वित्तीय वर्ष के दौरान दूसरी किस्मों के मुकाबले एएसटीए श्रेणी की काली मिर्च की कीमतें औसतन 100-150 डॉलर प्रति डॉलर ऊंची बनी रहीं। 
मौजूदा वित्तीय वर्ष के 11 महीनों के दौरान काली मिर्च के निर्यात में गिरावट ही जारी रही है। सबसे खास 20 मसालों में काली मिर्च और अदरक को निर्यात के मोर्चे पर तगड़ा झटका लगा है।
अदरक के निर्यात में 31.6 फीसदी की गिरावट आई और यह 4400 टन रह गया जिसकी कीमत 30.32 करोड़ रुपये है जबकि पिछले साल इसी अवधि में 6435 टन जिसकी कीमत 25.11 करोड़ रुपये रही है। वैसे अदरक के निर्यात में मात्रा के लिहाज से नुकसान सहना पड़ा लेकिन कीमतों के लिहाज से 20.8 फीसदी की बढ़ोतरी हुई।
काली मिर्च को अप्रैल और फरवरी महीने की अवधि में मात्रा के साथ कीमतों में भी नुकसान सहना पड़ा। इसी वजह यह थी कि भारत की काली मिर्च की कीमतें ज्यादा थीं और मंदी की वजह से विदेशी बाजारों खासतौर पर यूरोपीय संघ के देशों और अमेरिका से मांग में कमी आई।
वर्ष 2007-08 में भारत से 35,000 टन का निर्यात किया गया था जिसकी कीमत 519.50 करोड़ रुपये थी। अगर इससे पिछले साल की तुलना करें तो मात्रा में 22 फीसदी और कीमतें 70 फीसदी तक ऊंची थी। इससे पहले के वित्तीय वर्ष में 28,750 टन का निर्यात किया गया था जिसकी कीमत 306.20 करोड़ रुपये थी।
वर्ष 2007-08 में मात्रा और कीमतों के लिहाज से भारत से सबसे ज्यादा काली मिर्च का निर्यात आयात किया गया। इसकी वजह यह थी कि उस वक्त कीमतों की दर बहुत कम थी। एफओबी यूनिट की कीमतों में औसतन बढ़ोतरी वर्ष 2006-07 के 106.50 रुपये प्रति किलोग्राम के मुकाबले 148.43 रुपये प्रति किलोग्राम रही।
इस तरह वैल्यू में 70 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई। बड़े निर्यातकों के मुताबिक मार्च में कुल निर्यात अधिकतम 1500 टन और कुल सालाना निर्यात 25,000 टन तक हो सकता है।

First Published - April 1, 2009 | 10:38 PM IST

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