आर्थिक समीक्षा (Economic Survey) पेश किए जाने के बाद मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने कहा कि बजट में घाटे का लक्ष्य कर्ज के स्तर और सरकार द्वारा प्रभावी तरीके से व्यय की क्षमता पर निर्भर रहना चाहिए।
उन्होंने कहा कि वित्त वर्ष 2023 के और आंकड़े उपलब्ध होने पर आर्थिक समीक्षा को अद्यतित किया जाएगा। आर्थिक समीक्षा के विभिन्न पहलुओं पर नागेश्वरन से बात की अरूप रायचौधरी और असित रंजन मिश्र ने। पेश है मुख्य अंश:
आपने कहा है कि वैश्विक आर्थिक नरमी भारत के लिए अनुकूल होगी। क्या आप यह संकेत दे रहे हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था विकसित दुनिया से अलग हो चुकी है?
मेरा कहने का मतलब यह नहीं है। मेरा तर्क है कि हम अलग तरह से जुड़े हुए हैं। यह सोचा जाता है कि मजबूत वृद्धि का मतलब निर्यात की बेहतर संभावना है लेकिन विकसित देशों में मजबूत वृद्धि से आयात भी बढ़ता है जिससे ब्याज दरों, मुद्रा की मजबूती, तेल कीमतों आदि पर भी प्रभाव पड़ता है। इसलिए मैं संतुलन की बात करता हूं। विकसित देशों में नरमी से मौजूदा दौर में भारत संतुलन कायम करने की बेहतर स्थिति में होगा।
आपने पूंजीगत व्यय आधारित वृद्धि का समर्थन किया है। क्या आप सोचते हैं कि केंद्र को अगले कुछ और वर्षों के लिए पूंजीगत व्यय पर जोर देना चाहिए या आने वाले वर्षों में निजी क्षेत्र पूंजीगत निवेश में तेजी लाने की स्थिति में आ जाएगा?
पिछले कुछ वर्षों से निजी क्षेत्र उधारी लेने और निवेश बढ़ाने से परहेज कर रहा था क्योंकि वह अपनी बैलेंस शीट दुरुस्त करने में लगा था और बैंक भी ज्यादा सतर्क हो गए हैं। बैंक अब अच्छे बहीखाते वाली कंपनियों को ही कर्ज देना चाहते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां जब अपने स्तर से कर्ज लेती हैं और पूंजीगत व्यय करती हैं तो कुछ लोग सोचते हैं कि यह पूरी तरह से सरकारी व्यय होता है। इसलिए हमने बजट से अलग उधारी को कम कर दिया है। हालांकि निजी क्षेत्र के मुनाफे में आने और उनकी बैलेंस शीर्ट मजबूत होने के बाद उन्हें निवेश के लिए आगे आना चाहिए।
आपने कहा है कि सरकार चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य हासिल करने में सक्षम होगी। क्या हम वैश्विक महामारी से पहले की तरह 3 फीसदी के मध्यावधि लक्ष्य की ओर लौट सकते हैं?
यह अच्छा सवाल है लेकिन इस पर सोच-विचार किए बिना कुछ भी कहना हमारे लिए महज अनुमान होगा। इस मुद्दे पर कुछ भी कहने से पहले यह देखना जरूरी है कि घाटे का सहज स्तर क्या है और वह स्तर क्या है जिसे देखकर निजी क्षेत्र पांव पीछे खींच लेगा तथा अर्थव्यवस्था पर बुरा असर होगा। यदि आपके घाटे का स्तर सहज है और सरकार कारगर तरीके से वहां खर्च कर सकती है जहां उसकी जरूरत है तब आप तय कर पाएंगे कि घाटे का सही आंकड़ा क्या होना चाहिए। इसलिए मुझे लगता है कि केवल आंकड़ों से नहीं चिपकना चाहिए।
पिछले साल को छोड़कर आर्थिक समीक्षा को दो खंड में पेश किए जाने की परंपरा रही है। क्या आपको लगता है कि एक खंड ज्यादा तार्किक है?
हां, ऐसा कहा जा सकता है। असल में इसमें अर्थव्यवस्था का आकलन प्रस्तुत करना चाहिए न कि किसी के अपने विचार क्योंकि ऐसा करने से सरकार के दृष्टिकोण का सही पता नहीं चल पाता है। इस मुद्दे पर आंतरिक स्तर पर व्यापक विचार-विमर्श के बाद ही निर्णय लिया गया है। हमारा मानना है कि कुछ महीनों के बाद जब पूरे वित्त वर्ष का आंकड़ा उपलब्ध होगा तब आप आर्थिक समीक्षा को अद्यतन कर सकते हैं…हां, हम ऐसा करेंगे क्योंकि सामान्य तौर पर आर्थिक समीक्षा 8 से 9 महीनों के आंकड़ों के आधार पर तैयार की जाती है। इसलिए हमें पूरे आंकड़े आने के बाद इसका अपडेट उपलब्ध कराना चाहिए।
अद्यतन आर्थिक समीक्षा कब तक आने की उम्मीद है?
मुझे इस बारे में आंतरिक स्तर पर चर्चा करनी होगी, साथ ही जी-20 के कार्यक्रमों का भी ध्यान रखना होगा। मेरे विचार से जी-20 कैलेंडर जारी होने के बाद अद्यतन आर्थिक समीक्षा जारी करना सही रहेगा।