एक साल के भीतर भारत में करीब एक दर्जन राज्य में चुनाव होंगे और उसके बाद अगले साल मई में 2024 का आम चुनाव होगा। ऐसे में, 2023-24 के बजट में सभी प्रकार के मतदाताओं के लिए कुछ न कुछ था। हालांकि विपक्ष ने दावा किया है कि बजट ने कम आय और वंचित परिवारों को निराश किया है।
विपक्ष ने कहा कि इस बजट में वैश्विक कारोबार में मंदी, 2023-24 में दुनिया भर में मंदी और रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध के बाद सुरक्षा स्थिति में गिरावट को देखते हुए भविष्य की चुनौतियों पर ध्यान नहीं दिया गया है, जिसके कारण भारतीय अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
वरिष्ठ नागरिकों और वे लोग जो जल्द ही सेवानिवृत्त होने वाले हैं, उन्हें बजट की बेहतर फसल मिली है। हिमाचल प्रदेश में भाजपा को चुनावी झटके का एक कारण यह भी था कि वहां का एक बड़ा मतदाता समूह पुरानी पेंशन योजना से असंतुष्ट था। लेकिन सरकारी कर्मचारी और मध्यम वर्ग के कर्मचारी जो सेवानिवृत्त होने वाले थे, सरकार के इस कदम से फायदे में रहेंगे।
काफी लोकप्रिय रही वरिष्ठ नागरिक बचत योजना के लिए जमा सीमा को 15 लाख रुपये से बढ़ाकर 30 लाख रुपये कर दिया गया है जिसके बाद बुजुर्गों के लिए एक स्थिर और सुनिश्चित बचत सुनिश्चित की जा सकेगी।
जब इसे आयकर ढांचे में बदलाव के साथ जोड़ा जाता है, तो नई व्यवस्था का मतलब पेंशनभोगियों के लिए प्रति माह 15,000 रुपये और उससे अधिक की बचत है।
एक वरिष्ठ अधिकारी, जो पहले भी बजट तैयार करने वाली समिति का हिस्सा रहे हैं, ने कहा कि इसका मतलब यह है कि बहुत सारे पेंशनभोगी अब किसी भी कर देनदारी से मुक्त हो जाएंगे और यह सामूहिक तुष्टीकरण है।
कम आय वाले परिवार की महिलाओं को दो साल की अवधि के लिए प्रदान की जाने वाली बचत योजना के सरकार के कदम को समर्थन मिलने की उम्मीद है। भले ही बजट में विवरण नहीं दिया गया है, अगले तीन वर्षों में प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना 4.0 के माध्यम से युवाओं के लिए रोजगार की जरूरतों को पूरा करने का मुद्दा सामने आ सकता है।
प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत ग्रामीण आवास के लिए भारी मात्रा में व्यय बढ़ाने के कारण मतदाताओं के समर्थन में वृद्धि आएगी।
हालांकि, विपक्ष को यह बजट आकर्षक नहीं लगा। कांग्रेस के प्रवक्ता और पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने कहा, ‘वित्त मंत्री ने अपने भाषण में गरीबी, बेरोजगारी, असमानता या समता का कहीं भी जिक्र नहीं किया। शुक्र है कि दो बार उन्होंने गरीब शब्द का प्रयोग कर दिया था। मुझे भरोसा है कि भारत के लोग इस बात को समझेंगे कि सरकार के लिए कौन महत्त्वपूर्ण है और कौन नहीं।’
एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए चिदंबरम ने कहा कि नई कर व्यवस्था से अधिक लोगों को लाभ नहीं होने वाला है। कोई अप्रत्यक्ष कर कम नहीं किया गया है। क्रूर और अतार्किक जीएसटी दरों में कोई कटौती नहीं की गई है।
पेट्रोल, डीजल, सीमेंट, उर्वरक आदि की कीमतों में कोई कमी नहीं हुई है। कई अधिभार और उपकरों में कोई कटौती नहीं की गई है, जिसमें किसी भी तरह से राज्य सरकारों का कोई हिस्सा नहीं होता है। इस बजट से किसे फायदा हुआ है? निश्चित रूप से गरीब को नहीं। न ही नौकरी की तलाश में भटक रहे युवाओं, छंटनी के कारण परेशान कर्मचारियों और गृहिणियों को ही कोई लाभ मिला है।
उन्होंने कहा भारत में अरबपतियों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है और जनता का पैसा आबादी के एक फीसदी हिस्से के पास ही जा रहा है।
शिवसेना के राज्यसभा सदस्य अनिल देसाई ने कहा, ‘कोविड के कारण एमएसएमई को भारी नुकसान से बेरोजगारी में बारी बढ़ोतरी हुई। हमारी अर्थव्यवस्था में इतने महत्त्वपूर्ण क्षेत्र के लिए बजट में कुछ भी नहीं है।’
कर्नाटक से राज्यसभा सांसद नासिर हुसैन ने कहा, ‘मैं कर्नाटक से हूं और अपर भद्रा परियोजना के लिए 5000 करोड़ रुपये के अनुदान से खुश हूं। लेकिन महंगाई का क्या? बेरोजगारी के बारे में क्या? बजट आम लोगों की आजीविका कमाने में आने वाली सभी समस्याओं का समाधान करने के लिए कौन से विशेष कदम उठाने जा रहा है?’
चिदंबरम ने कहा कि सरकार को यह बताने की जरूरत है कि जब केंद्र सरकार के पूंजीगत खर्च और प्रभावी पूंजीगत खर्च बजट अनुमान से कम हैं तो ऐसे में भारत वर्तमान वर्ष में कैसे 7 फीसदी की आर्थिक वृद्धि दर्ज कर रहा है।
उन्होंने कहा कि हमें पता है कि निजी निवेश में कमी आई है, निर्यात कम हो रहे हैं और निजी खपत भी स्थिर बनी हुई है। उन्होंने बजट व्यय का हवाला देते हुए यह भी आरोप लगाया कि सरकार ने मौजूदा योजनाओं पर धन खर्च नहीं किया है जिसका वह खर्च करने का दावा करती है।