ईवाई इंडिया के चेयरमैन और मैनेजिंग पार्टनर राजीव मेमानी ने कहा कि आगामी बजट में राजकोषीय घाटे को नियंत्रित रखने, कर की दरों में स्थिरता बरकरार रखने और कारोबार सुगमता जैसे मसलों पर ध्यान देने की जरूरत है। रुचिका चित्रवंशी के साथ बातचीत में उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र के निवेश के लिए बेहतर माहौल है। प्रमुख अंश…
भारत में आने वाला पूंजी प्रवाह और प्रभावित हो सकता है, चाहे वह निजी इक्विटी हो, उद्यम पूंजी हो, या शेयर बाजार में आने वाली पूंजी हो या क्यूआईपी (क्वालीफाइड इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट्स) की ओर देख रही कंपनियों या आईपीओ (आरंभिक सार्वजनिक निर्गम) का मामला हो। साथ ही वैश्विक रणनीतिकार किसी उद्यम में जाने से पहले पूंजी के आवंटन में ज्यादा सावधान रहेंगे।
दूसरे, भारत में अभी भी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का करीब 21 प्रतिशत निर्यात से आ रहा है और इसमें से ज्यादातर विकसित देशों से आ रहा है। वहां मांग पर असर होगा। यह आईटी सेवाओं में लोगों की उम्मीद से कम हो सकता है, क्योंकि कंपनियां अभी भी डिजिटल बदलाव कर रही हैं। जिंसों और वस्तुओं के निर्यात पर असर ज्यादा दिख सकता है।
यहां गति है। अगर सरकार जिंस के घटे वैश्विक दाम से बचे धन को खर्च कर लेती है और इसका निर्यात करने के बजाय घरेलू अर्थव्यवस्था में खर्च करती है तो भारत में बेहतर मूल्य वर्धन हो सकता है। भारत की अर्थव्यवस्था 6 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ेगी।
निजी अंतिम खपत व्यय भारत के लिए अहम निर्धारक है। जीडीपी का करीब 60 प्रतिशत खपत के माध्यम से आता है, इसलिए इसका असर होगा। महंगाई दर के हिसाब से अभी हम आरामदायक स्थिति में नहीं है, लेकिन निश्चित रूप से यह नियंत्रण के बाहर नहीं है। असल चुनौती ग्रामीण अर्थव्यवस्था और कम आमदनी वाले इलाकों से है। मांग को लेकर निश्चित रूप से दबाव है। अगर अर्थव्यवस्था तेजी बनी रहती है और रोजगार का सृजन होता है तब भारत में इस तरह के ब्याज दर से दिक्कत नहीं होगी।
बजट में राजकोषीय घाटे को कम करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। गैर कर राजस्व और कर कानून में स्थिरता, कारोबार सुगमता के मसलों को लेकर कुछ कार्रवाई की जरूरत है। अगर व्यक्तिगत कर की दरें, खासकर कम आमदनी वाले स्लैब घटाए जाते हैं तो इससे बढ़ी महंगाई और ज्यादा ब्याज दर का असर भी कम हो जाएगा।
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अभी भारत बहुत बेहतर स्थिति में है। लोग आपूर्ति श्रृंखलाओं को जोखिम मुक्त करना चाहते हैं। इस हिसाब से चीन पर वैश्विक निर्भरता बहुत ज्चादा है, खासकर विनिर्माण के हिसाब से। यह चीन से बाहर जाएगा। भारत उसमें से कितना हिस्सा ले सकता है, यह हम पर निर्भर है। अमेरिका जैसे देश फ्रेंड-शोरिंग की बात कर रहे हैं। भारत को एक बहुत भरोसेमंद और विश्वसनीय भागीदार के रूप में देखा जाता है। यदि भारत अधिक आक्रामक हो सकता है, निवेश बढ़ा सकता है।