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लेखक : राजेश कुमार

आज का अखबार, लेख

अर्थतंत्र: केंद्रीय बैंक क्यों खरीद रहे इतना सोना?

सोने की मांग बढ़ने से पिछले दो वर्षों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसका भाव 30 प्रतिशत से भी अधिक चढ़ चुका है। भारतीय बाजारों में तो सोने के दाम में पंख लग गए हैं। दाम में मौजूदा तेजी सोने के साथ एक महत्त्वपूर्ण सैद्धांतिक तथ्य से मेल नहीं खाती है। सोना नियमित आय का स्रोत […]

आज का अखबार, लेख

अर्थतंत्र: सरकार की क्षमता में सुधार की दरकार

चुनावी राजनीति में राजनीतिक दल प्रायः चुनाव से पहले राजनीतिक घोषणापत्रों के माध्यम से अपने दृष्टिकोण एवं योजनाएं जनता के समक्ष रखते हैं। परंतु, भारत विकास के जिस चरण में खड़ा है वहां ऐसे घोषणापत्र कदाचित ही सभी वर्गों की अपेक्षाएं पूरी कर पाते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि अगर राष्ट्रीय जनतांत्रिक […]

आज का अखबार, लेख

अर्थतंत्र: चुनावी वित्त-व्यवस्था के लिए बेहतर समाधान

चुनाव आयोग ने 18वीं लोकसभा के लिए आम चुनावों की घोषणा कर दी है और इसके साथ ही भारत दुनिया में अब तक की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने के लिए कमर कस रहा है। आगामी चुनावों पर ध्यान केंद्रित करने के बीच हाल में हुए दो महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम ने नागरिकों को देश […]

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अर्थतंत्र: अंतरिम बजट, महामारी का दौर और राजकोषीय नीति का पुनर्गठन

आगामी अंतरिम बजट नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के दूसरे कार्यकाल की राजकोषीय नीति संबंधी अंतिम कवायद होगी। इसके साथ ही हालिया इतिहास में राजकोषीय प्रबंधन के मामले में सबसे मुश्किल पांच वर्ष के कार्यकाल का अंत हो जाएगा। हालांकि सरकार अभी भी कोविड-19 महामारी के कारण लगे झटकों से उबर रही है और […]

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अर्थतंत्र: लोक लुभावन नीतियों का दौर

कुछ राज्यों में चल रहे विधानसभा चुनावों के नतीजे 3 दिसंबर को घोषित हो जाएंगे। चुनाव विश्लेषक इन परिणामों- विशेषकर मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़- का गहन विश्लेषण करेंगे और 2024 के आम चुनाव में राजनीतिक हवा के रुख से इसे जोड़कर देखेंगे। इन तीनों राज्यों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस के बीच […]

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चीन की दीवार में मंदी की बढ़ती दरार

पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना (पीबीओसी) ब्याज दरों में कमी करने के मामले में बड़े केंद्रीय बैंकों के बीच एक बड़ा अपवाद है। ज्यादातर केंद्रीय बैंक जहां मुद्रास्फीति पर नियंत्रण के लिए जूझ रहे हैं, वहीं चीन का केंद्रीय बैंक कमजोर पड़ती विकास की संभावनाओं और गिरती कीमतें रोकने के लिए कदम उठा रहा है। हालांकि […]

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अर्थतंत्र: स्थानीय मुद्रा में व्यापार की सीमाएं

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लेन-देन में अमेरिकी मुद्रा डॉलर का दबदबा बदलती परिस्थितियों में कई देशों को असहज बना रहा है। यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद यह असहजता और बढ़ गई है। अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देशों ने अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली को रूस के लिए प्रतिकूल बना दिया है। स्पष्ट है, कोई भी […]

आज का अखबार, लेख

अर्थतंत्र: अमेरिका में ऋण सीमा पर विवाद एवं इसके आर्थिक परिणाम, बता रहे हैं एक्सपर्ट

राष्ट्रपति जो बाइडन और अमेरिकी संसद के प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष एवं रिपब्लिकन पार्टी के सांसद केविन मैकार्थी ऋण सीमा बढ़ाने पर ‘सैद्धांतिक रूप’ में सहमत हो गए है। अब इस सैद्धांतिक सहमति को 5 जून से पहले अमेरिकी संसद के दोनों सदनों सीनेट और प्रतिनिधि सभा में पारित कराना होगा। हालांकि, रिपब्लिकन पार्टी के […]

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लंबी है राजकोषीय मजबूती की राह

राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के लिए यह जरूरी है कि देश की राजकोषीय स्थिति की व्यापक समीक्षा करते हुए भविष्य की राह तलाश की जाए। बता रहे हैं राजेश कुमार केंद्रीय बजट से संबंधित टिप्पणियां आमतौर पर इस बात पर केंद्रित रहती हैं कि आर्थिक और वित्तीय बाजारों पर इसका क्या संभावित असर होगा। चूंकि अर्थव्यवस्था एक […]

आज का अखबार, लेख

बजट के तीन बिंदुओं पर रहेगा विशेष ध्यान

भारत के आर्थिक एवं नीतिगत ताने-बाने में केंद्रीय बजट सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कड़ी होती है। 1 फरवरी को प्रस्तुत होने वाला बजट कई दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण होने जा रहा है। कोविड महामारी के बाद कदाचित सामान्य परिस्थितियों में प्रस्तुत होने वाला यह पहला बजट होगा जिसमें निकट भविष्य के लिए अनुमान दिए जाएंगे। यह बजट इसलिए […]

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