10 साल से अटकी दिवाला सुरक्षा प्रक्रिया, छोटे कर्जदारों के घर जोखिम में
एक ऐसे व्यक्ति के बारे में सोचिए जिसका एक छोटा सा घर है और जो एक छोटा कारोबार शुरू करने के लिए मामूली कर्ज लेता है। शायद किसी गलती की वजह से नहीं बल्कि विपरीत आर्थिक हालात के कारण वह अपने ऋण की किस्त चुकाने में चूक जाता है। इस हालत में क्या उसका घर […]
नियामकीय व्यवस्था में खामियां: भारत को शक्तियों का पृथक्करण बहाल करना होगा
देश में शक्तियों के बंटवारे की बहस पारंपरिक रूप से संवैधानिक ढांचे के भीतर विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका पर केंद्रित रहती है। बहरहाल आज कहीं अधिक बड़ी चुनौती इस शास्त्रीय त्रयी से इतर नियामकीय संस्थाओं में निहित है। नियामक अपने-अपने क्षेत्र में छोटे स्वयंभू राज्यों की तरह काम करते हैं और इस दौरान वे एक […]
वास्तविक जलवायु कार्रवाई नीतिगत निर्णयों से संभव, वित्तीय बाजारों से नहीं
सरकारें, वित्तीय बाजार नियामक और सामाजिक नागरिक संगठन सभी पृथ्वी के पर्यावरण को बेहतर बनाने में वित्तीय बाजारों की भूमिका को अहम मान रहे हैं। यह इस बात पर निर्भर करता है कि निवेशक अपने निजी लाभ पर सार्वजनिक हित को प्राथमिकता दें और पूंजी प्रवाह को टिकाऊ लक्ष्यों के साथ जोड़ा जा सके। वित्तीय […]
IBC की रफ्तार थमी: अस्तित्व मूल सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता पर निर्भर
भारतीय संसद ने 2016 में ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) का गठन किया ताकि देश को वित्तीय दिक्कत और फंसा कर्ज संभालने की चुनौतियों से उबारा जा सके। शुरुआती सालों में आईबीसी को संस्थागत तालमेल का फायदा मिला। विधायिका ने पहले पांच साल में संहिता में छह संशोधन किए ताकि क्रियान्वयन की चुनौतियां […]
कारोबारी लेनदेन की निश्चितता रखें बरकरार
उच्चतम न्यायालय ने 2 मई को दिवालिया एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता, 2016 (आईबीएस) के अंतर्गत भूषण पावर ऐंड स्टील (बीपीएस) के समाधान से जुड़ी एक याचिका का निपटारा कर दिया। यह याचिका पांच वर्ष पहले दायर की गई थी। उच्चतम न्यायालय ने एकदम सटीक ढंग से तथ्य आधारित विस्तृत निर्णय दिया। इस आदेश में […]
क्या प्रबंधक की भूमिका में आ रहे हैं नियामक?
इंडसइंड बैंक में विदेशी मुद्रा देनदारी के हिसाब-किताब में हुई गड़बड़ी खबरों में खूब रही है। इससे कुछ दिन पहले ही पहले बैंक के निवर्तमान प्रबंध निदेशक को तीन साल के लिए फिर नियुक्त करने की सिफारिश ठुकराकर केवल एक साल के लिए नियुक्त किया जाना भी सुर्खियों में रहा था। इससे पहले भी बैंक […]
विधि निर्माण में तय हो नागरिकों की भूमिका
इस वर्ष की आर्थिक समीक्षा और केंद्रीय बजट विनियमन पर खूब जोर रहा है। सरकार पहले लागू कई कानूनों और नियम-कायदों को वापस लेने पर विचार कर रही है। कायदे-कानून बनाते समय अगर सार्वजनिक सलाह-मशविरे पर जोर दिया गया होता तो यह कवायद नहीं करनी पड़ती। ढंग से मशविरा किया जाए तो नियमन न कम […]
कारोबारी सुगमता का बने अंतरराष्ट्रीय संस्थान
कारोबार को धन सृजन और आर्थिक वृद्धि का इंजन माना जाता है। सरकार ने कारोबार एवं व्यवसायों के लिए अनुकूल माहौल तैयार करने के लगातार प्रयास किए हैं। कारोबार स्वतंत्र माहौल में ही फलता-फूलता है, इसलिए उसकी बेड़ियां काटने के लिए पिछले कुछ साल में कई आर्थिक सुधार किए गए है। शुरुआत में कानूनी ढांचे […]
अचल संपत्ति क्षेत्र का दिवालियापन
दिवालिया कानूनों में मकान खरीदने वालों के हितों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, उन्हें निस्तारण प्रक्रिया की जटिलताओं में नहीं घसीटा जाना चाहिए। बता रहे हैं एमएस साहू और राघव पांडे किसी भी क्षेत्र के दिवालिया कानून की तरह ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता, 2016 (आईबीसी) भी लेनदार-देनदार के रिश्तों के इर्दगिर्द घूमती है। सामान्य […]
विफलता को सराहना कब आरंभ करेगा भारत?
कार्यपालिका और विधायिका एक दूसरे के साथ कदमताल करते हुए महत्त्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक मुद्दों के समाधान के लिए कानून बनाती हैं। पहले कानूनों में एक अनुच्छेद होता था, जो बताता था कि वे कार्यपालिका द्वारा तय अमुक तारीख को प्रभाव में आएंगे। किंतु हाल के कुछ कानूनों में इस अनुच्छेद के साथ एक शर्त है, जिसके […]









