वाणिज्यिक बैंकों का ऋण-जमा अनुपात पहली बार 80 फीसदी के पार पहुंच गया। यह स्तर नियामक के सहज दायरे का ऊपरी स्तर है। यह अनुपात दर्शाता है कि ऋण की बढ़ती मांग के बीच संसाधन जुटाने में चुनौती आ रही है।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के आंकड़ों से पता चला है कि अक्टूबर के दोनो पखवाड़े के अंत में यह अनुपात 80 फीसदी से अधिक था। सितंबर के पहले पखवाड़े में भी यह 80 फीसदी से अधिक चला गया था मगर अगले पखवाड़े में थोड़ा गिर गया। 75 से 80 फीसदी की सीमा में ऋण-जमा अनुपात को नियामक के सहज दायरे में माना जाता है।
ऋण-जमा अनुपात इसलिए बढ़ा है क्योंकि जमा वृद्धि सुस्त रही है और अब एक अंक में बढ़ रही है जबकि ऋण मांग ज्यादा बढ़ी है। आरबीआई के आंकड़ों से पता चलता है कि अक्टूबर में बैंकों की जमा वृद्धि 9.7 फीसदी रही जो मार्च में 10.3 फीसदी थी। इसी अवधि के दौरान ऋण वृद्धि 11 फीसदी से बढ़कर 11.3 फीसदी पहुंच गई।
फरवरी और जून के बीच भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति द्वारा रीपो दर में 100 आधार अंक कटौती के बाद ब्याज दर घटने की वजह से बैंकों के लिए जमा जुटाना चुनौती रही है।
जमा में सुधार के लिए कुछ बैंक जमा दरों में वृद्धि पर विचार कर सकते हैं। उदाहरण के लिए आईसीआईसीआई बैंक ने वरिष्ठ नागरिकों के लिए जमा दर को बढ़ाकर 7.2 फीसदी कर दिया है।
बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, ‘ऋण-जमा अनुपात 80 फीसदी पार कर गया है और इसके इस ऊंचे स्तर पर बने रहने का अनुमान है क्योंकि ऋण वृद्धि में और सुधार होने की संभावना है।’
बैंकों की ऋण मांग आम तौर पर वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में बढ़ जाती है। कम ब्याज दर, माल एवं सेवा कर की दर घटने से बैंकर ऋण वृद्धि को लेकर उत्साहित हैं। इस महीने की शुरुआत में भारतीय स्टेट बैंक ने मौजूदा वित्त वर्ष के लिए अपनी ऋण वृद्धि के अनुमान को पहले के 11 फीसदी से संशोधित कर 12 से 14 फीसदी कर दिया।
सबनवीस ने कहा, ‘कॉरपोरेट निवेश की मांग जो पहले कम थी, खपत में सुधार और क्षमता उपयोग बढ़ने के साथ बढ़नी चाहिए। कंपनियों की बड़ी उधारी भी ऋण-जमा अनुपात पर दबाव डाल रही हैं जबकि म्युचुअल फंड में निवेश बढ़ने से जमा वृद्धि धीमी बनी हुई है।’
रीपो दर में 100 आधार अंक की कटौती के बाद नए जमा पर भारित औसत घरेलू सावधि जमा दरों में 106 आधार अंक और पुराने जमा पर ब्याज दर में 22 आधार अंक की कमी आई है।