कारोबार को धन सृजन और आर्थिक वृद्धि का इंजन माना जाता है। सरकार ने कारोबार एवं व्यवसायों के लिए अनुकूल माहौल तैयार करने के लगातार प्रयास किए हैं। कारोबार स्वतंत्र माहौल में ही फलता-फूलता है, इसलिए उसकी बेड़ियां काटने के लिए पिछले कुछ साल में कई आर्थिक सुधार किए गए है। शुरुआत में कानूनी ढांचे को नया रूप दिया गया, जिससे व्यवसायों को बाजार में दाखिल होने, होड़ करने, बढ़ने और निवेश निकालने की ज्यादा आजादी मिली और बाजार अर्थव्यवस्था तैयार हो गई।
किंतु बाजार अर्थव्यवस्था के साथ कुछ चुनौती भी आती हैं। इनसे निपटने के लिए प्रशासन व्यवस्था में दो बड़े बदलाव हुए हैं। सबसे पहले बाजार को सही तरीके से चलाने के लिए नियम-कायदे की भूमिका बढ़ाई गई है। उसके बाद नियामक प्रमुख संस्थाओं के रूप में उभरे हैं और नियमों के जरिये बाजार के कामकाज पर नजर रख रहे हैं। नियम-कायदों के जरिये वे बाजार की नाकामियों से निपटते हैं, आजादी का दुरुपयोग नहीं होने देते और बाजार भागीदारों के अधिकारों की रक्षा करते हैं। वे पूंजी जुटाने, विलय-अधिग्रहण तथा वित्तीय समस्या के समाधान जैसे कारोबारी कामों के लिए व्यवस्थित रास्ता भी दिखाते हैं।
नियामकों का उदयः बाजार व्यवस्था की तरफ बढ़ने से विभिन्न क्षेत्रों में नियामक भी हो गए हैं। वे मुख्य रूप से चार प्रमुख क्षेत्रों – व्यवसाय (वकील, अकाउंटेंट, डॉक्टर), बाजार (प्रतिभूति, बीमा, प्रतिस्पर्द्धा), यूटिलिटी (बिजली, दूरसंचार, पेट्रोलियम) और मानक (स्वास्थ्य, सुरक्षा, पर्यावरण) में काम करते हैं। कुछ क्षेत्रों में केंद्र एवं राज्य दोनों के नियामक होते हैं। स्व-नियामकीय संगठन और अग्रिम-पंक्ति के नियामक (बैंक एवं सेवा क्षेत्रों से संबंधित) इस व्यवस्था को और धार देते हैं। निजी कंपनियों के लिए कारोबार के अधिक से अधिक क्षेत्र खुलने से नियामकों की संख्या लगातार बढ़ रही है और नई चुनौतियों का सामना करने एवं नए अवसरों का लाभ उठाने के लिए नए नियामकों के गठन के प्रस्ताव दिए जा रहे हैं। सरकार की तरह ही नियामक भी सार्वजनिक हितों की रक्षा करते हैं और उपभोक्ता सुरक्षा, विकास एवं नियमन आदि उत्तरदायित्वों का निर्वहन करते हैं। उनके पास विधायी, कार्यकारी और न्यायिक अधिकार भी होते हैं जो सरकार जैसी भूमिका निभाने में उनकी मदद करते हैं। मूल रूप से वे ‘सरकार के भीतर सरकार’ की तरह काम करते हैं और तय व्यवस्था में अलग दृष्टिकोण के साथ संचालन पर सरकार की ओर से नजर रखते हैं। दुनिया में आर्थिक संचालन का ढांचा विकसित हुआ है और नियामक तेजी से केंद्रीय भूमिका में आ रहे हैं। अक्सर उनका प्रभाव और दायरा परंपरागत सरकारी ढांचों से ज्यादा हो जाता है।
नियमन का विकासः कुछ बाजार में नाकामी देखते ही जवाबी कायदे बना देते हैं चाहे नाकामी सरकारी नियमों की वजह से हुई हो। वे सोचते ही नहीं कि विफलता के पीछ कंपनी का दोष है या निगरानी में कमी का। इस तरह की सोच से बेजा नियम भी बन जाते हैं और कभी-कभी उनमें इतनी खामियां होती हैं कि बचकर निकलना बहुत आसान हो जाता है। नतीजा, कुछ और कायदे जोड़ दिए जाते हैं। समय के साथ नियामकीय व्यवस्था पेचीदा होती गई है। कार्यपालिका द्वारा जारी नियम एवं कायदों जैसे बाद के प्रावधान और उनके भी ऊपर अधिकारों द्वारा जारी सर्कुलर तथा अधिसूचना के प्रावधानों की बाढ़ सी आ गई है। इनके कारण प्राथमिक नियम एवं दिशानिर्देश पीछे छूट रहे हैं। अधिकारियों वाले कायदे तो ऊपर के सभी नियमों से ज्यादा तादाद में हो गए हैं।
अफसोस की बात है कि इनमें कई दिशानिर्देश एवं सर्कुलर पाबंदी लगाते हैं, जिससे शुरुआती कानूनों में मिली आजादी छिन जाती है। नतीजा यह हुआ है कि कई कंपनियों में अनुपालन विभाग का आकार परिचालन विभाग के बराबर हो गया है। इससे निपटने के लिए हो अब ऐसे दबाव कम करने वाले सुधार हो रहे हैं। बाजार नियामक का 18 दिसंबर 2024 का पत्र यही बताता है, जिसमें 20 बार ‘कारोबार सुगम बनाने’ की बात कही गई है। इससे पता चलता है कि कंपनियों पर कितनी पाबंदियां लाद दी गई हैं और उन्हें खत्म करने के लिए कितने ज्यादा प्रयास करने होंगे।
क्षमता से जुड़ी बाधाएं: नियमों एवं दिशानिर्देशों का उद्देश्य प्रायः कारोबार में पेचीदा मसलों से निपटना होता है। इन मसलों में कई पक्षों के हित जुड़े होते हैं और मामूली सा बदलाव कई स्तरों पर अप्रत्याशित असर दिखाता है। बाजार अब आधुनिक चोला पहन रहे हैं और वैश्वीकरण की जद में आ रहे हैं, जिससे नियम-कानून भी अधिक पेचीदा हो गए हैं। नियामकों से उम्मीद की जाती है कि वे बाजार की स्थिति देखते हुए पूरी सक्रियता के साथ नियम तैयार करें और इनमें जरूरी बदलाव करें। मगर नियम लागू करते समय ध्यान रहे कि इससे कारोबारी स्वतंत्रता पर आंच नहीं आए।
हम दशकों से नियम-कायदे तैयार कर रहे हैं मगर बाजार अर्थव्यवस्था को सुचारु कामकाज में मदद करने के लिए उपयुक्त मानव संसाधन की कमी है। शिक्षण संस्थानों ने बाजार अर्थव्यवस्था की मांग पूरी करने के लिए विधि, अर्थशास्त्र, लेखा और प्रबंधन में पाठ्यक्रम बना लिए हैं मगर नियामकीय क्षमता विकसित करने के लिए व्यापक और उपयुक्त कार्यक्रम अब तक नहीं आया है। नतीजा यह हुआ है कि नियामक एवं कारोबार परंपरागत पाठ्यक्रमों से निकले पेशेवरों पर ही निर्भर रहते हैं। इससे कार्य क्षमता पर असर पड़ रहा है और सुधारों के फायदे भी नहीं मिल रहे हैं।
क्षमता निर्माणः नियामकों को ऐसे विशेषज्ञों की जरूरत है जो आजादी और निगरानी में संतुलन बिठा सकें। कंपनियों को ऐसे लोगों की जरूरत है जो नियमों पर चलते हुए इस आजादी का फायदा उठाकर कारोबार को आगे बढ़ाएं। सही प्रतिभा होगी तो नियामक, कंपनियां और पेशेवर फर्में एक दूसरे के नजरियों को बेहतर समझ पाएंगी, उनके बीच सहयोग बढ़ेगा और कारोबारी सुगमता बढ़ेगी। मगर इसके लिए ऐसी संस्थागत व्यवस्था चाहिए, जिसमें कारोबारी सुगमता बढ़ाने के लिए नियम बनाने और लागू करने में कुशल पेशेवर तैयार हो सकें।
भारत अंतरराष्ट्रीय नियामकीय अध्ययन संस्थान स्थापित करने की पहल कर नियमन को ऐसा पाठ्यक्रम बना सकता है, जिसमें विधि, अर्थशास्त्र, प्रबंधन, लेखा (अकाउंटेंसी) और व्यवहारिक विज्ञान का समावेश हो। शुरू में यह संस्थान अल्पावधि के कार्यक्रम एवं सर्टिफिकेट कार्यक्रम ला सकता है तथा बाद में व्यापक पाठ्यक्रमों के लिए संकाय एवं सामग्री तैयार कर सकता है। यह पहल लोकप्रिय होने के बाद संस्थान अपने कामकाजी जीवन या करियर मध्य में पहुंच चुके पेशेवरों के लिए एक वर्ष का कार्यक्रम शुरू कर सकता है। इसके बाद नियामकीय क्षेत्र में करियर बनाने की तमन्ना रखने वाले स्नातक छात्रों के लिए दो वर्ष का स्नातकोत्तर कार्यक्रम शुरू किया जा सकता है। इसके बाद नियामकीय अध्ययन में पीएचडी की गुंजाइश भी बन जाएगी।
संस्थान की स्थापनाः यह संस्थान सार्वजनिक-निजी भागीदारी के मॉडल पर आ सकता है। शुरू में प्रधानमंत्री या वित्त मंत्री इसके अध्यक्ष हो सकते हैं और बाद में अन्य देशों के नेता भी इसके अध्यक्ष बनाए जा सकते हैं। इससे वैश्विक प्रतिनिधित्व और समावेश को बढ़ावा मिलेगा। संस्थान को पूंजी देने वाले कारोबारी दिग्गज बारी-बारी से इसके निदेशक मंडल में आ सकते हैं। नियामकीय क्षमता में बड़ी खामी दूर कर यह संस्थान अधिक सक्षम, सहयोगात्मक और कारोबार के अनुकूल वैश्विक बाजार अर्थव्यवस्था तैयार करेगा। यह संस्थान एक और ‘मेक इन इंडिया’ पहल का नायाब उदाहरण हो सकता है।
(लेखक विधि पेशे से जुड़े हैं)