पर्यावरण के प्रहरी के रूप में उत्तर प्रदेश नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) आर्टिफिशल इंटेलिजेंस समेत आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल कर रहा है ताकि प्रदेश के विकास और पारिस्थितिकी की चिंताओं के बीच संतुलन कायम किया जा सके। बोर्ड के अध्यक्ष रवींद्र प्रताप सिंह ने वीरेंद्र रावत के साथ साक्षात्कार में भविष्य की योजनाओं पर चर्चा की। मुख्य अंश:
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) राज्य का पर्यावरण प्रहरी है। यह किस तरह काम कर रहा है?
यूपीपीसीबी का काम प्रदूषण को रोकना, नियंत्रित करना और उसे कम करना है। इसके साथ ही उसका काम टिकाऊ विकास सुनिश्चित करना भी है। बोर्ड उत्तर प्रदेश में केंद्रीय नियामक, निगरानी और प्रवर्तन की भूमिका निभाता है। यह उद्योगों, सामान्य अपशिष्ट प्रबंधन सुविधाओं और अन्य संबंधित गतिविधियों को जल एवं वायु अधिनियम के प्रावधानों के तहत लागू करने और परिचालन की सहमति जारी करता है। आवेदन से लेकर प्रमाण पत्र जारी करने तक हमारी प्रक्रिया ऑनलाइन है। जल्दी ही हम एक ऑनलाइन अनुपालन निगरानी प्रणाली भी शुरू करने जा रहे हैं।
उत्तर प्रदेश का लक्ष्य 2030 तक एक लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का है। यह तभी संभव होगा जब औद्योगिक विकास की गति तेज हो। चूंकि उद्योगों से प्रदूषण होता ही है, इसे रोकने में यूपीपीसीबी कैसे अपनी भूमिका निभाएगा?
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रदूषण को नियंत्रित रखते हुए उत्तर प्रदेश को 2030 तक एक लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य को पाने के लिए यूपीपीसीबी ऑनलाइन निरंतर उत्सर्जन निगरानी प्रणाली यानी ओसीईएमएस का दायरा बढ़ा रहा है और प्रमुख प्रदूषक उद्योगों की वेब कैमरा आधारित निगरानी की व्यवस्था की जा रही है ताकि पारदर्शिता रहे और शीघ्र कदम उठाए जा सकें। स्वचालित अलर्ट, एआई आधारित विश्लेषण और रिमोट निगरानी के उपकरण बेहतर अनुपालन और उल्लंघन के बारे में शीघ्र जानकारी होना सुनिश्चित करेंगे। उद्योगों को स्वच्छ ईंधन तकनीक मसलन पीएनजी, बायोमास पेलेट्स, ऊर्जा किफायत वाले बॉयलर, ईएसपी, बैग फिल्टर और वेट स्क्रबर आदि अपनाने के लिए प्रोत्साहन दिया जा रहा है। पानी का इस्तेमाल करने वाली इकाइयों को जीरो लिक्विड डिस्चार्ज और बेहतर अपशिष्ट जल रिसाइक्लिंग की दिशा में मार्गदर्शन किया जा रहा है। इसके अलावा नए और मौजूदा औद्योगिक क्षेत्रों में साझा प्रदूषण नियंत्रण प्रणालियों जैसे सीईटीपी/ईटीपी, ग्रीन बफर, सतत निगरानी और पर्यावरण के अनुकूल लेआउट योजना को बढ़ावा दिया जाएगा। इसके अलावा सर्कुलर इकनॉमी को गति दी जा रही है। इसमें ई-कचरा, प्लास्टिक और सीऐंडडी कचरा रिसाइक्लिंग, बायोमेडिकल कचरा प्रबंधन से पर्यावरण संरक्षण में मदद मिलेगी।
उत्तर प्रदेश उत्तर प्रदेश चमड़ा उद्योग और चमड़े के उत्पादों का एक प्रमुख केंद्र है, जो कार्बन उत्सर्जन करते हैं। यह उद्योग बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर भी तैयार करता है और इसका एक बड़ा निर्यात बाजार भी है। ऐसे में इस उद्योग के लिए आगे की राह क्या है?
उत्तर प्रदेश चमड़ा उद्योग और चमड़े से बनी वस्तुओं का राष्ट्रीय केंद्र है। खासकर कानपुर, उन्नाव और आगरा में बड़े पैमाने पर चमड़ा उद्योग हैं। यह क्षेत्र बड़े पैमाने पर रोजगार तैयार करता है और निर्यात में योगदान करता है। हालांकि, टेनिंग प्रक्रियाएं, रसायन केंद्रित अपशिष्ट, अनियंत्रित उत्सर्जन और ऊर्जा खपत मिलकर बड़ा कार्बन और प्रदूषण फुटप्रिंट बनाते हैं। आगे की राह उद्योग जगत को सीमित करना नहीं है, बल्कि इसे अधिक स्वच्छ, कुशल और वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाना है। यूपीपीसीबी का ध्यान टेनरीज के तकनीक आधारित आधुनिकीकरण पर है। क्रोम रिकवरी इकाइयों, रिवर्स ऑस्मोसिस (आरओ) सिस्टम, मल्टीपल इफेक्ट इवैपरेटर्स (एमईई) और सीईटीपी इनफ्लो से पहले जैविक उपचार की स्थापना, साथ ही धीरे-धीरे जीरो लिक्विड डिस्चार्ज की ओर बढ़ना, प्रदूषण को उल्लेखनीय रूप से कम करेगा। अपशिष्ट उपचार सुविधाओं में रियल टाइम इंटीग्रेशन, वेब कैमरा मॉनिटरिंग और स्वचालित फ्लो मीटर शामिल होने चाहिए ताकि प्रदूषण के स्रोत के स्तर पर ही सख्त अनुपालन हो सके।
उत्तर प्रदेश को बड़े धार्मिक पर्वों के लिए जाना जाता है। महा कुंभ जैसे आयोजनों के दौरान पवित्र नदियों के आसपास के उद्योग अस्थायी रूप से बंद कर दिए जाते हैं। यह कैसे सुनिश्चित हो सकता है कि उद्योग भी बंद न हों और प्रदूषण भी नियंत्रित रहे?
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दूरदर्शी नेतृत्व में उत्तर प्रदेश सरकार ने 2025 के महा कुंभ का सफल आयोजन किया। उस समय सभी उद्योगों को अस्थायी रूप से बंद नहीं किया गया था। हमने महा कुंभ में और खासकर अमृत स्नान के दिनों में विभिन्न उद्योगों के लिए रोस्टर बनाए थे ताकि किसी तरह की दुर्घटना न हो। एसटीपी और सीईटीपी स्थापित किए गए थे ताकि सीवेज का लगातार उपचार हो सके। एक बार यह नेटवर्क पूरी तरह विकसित हो जाने के बाद बंदी की जरूरत नहीं होगी।
पर्यावरण और प्रदूषण बोर्ड की मंजूरियों को अक्सर सबसे कठिन औद्योगिक और विनिर्माण प्रक्रियाओं में गिना जाता है। ये अक्सर निवेश परियोजनाओं को बाधित करने करती हैं। इस पर आपकी राय?
हमने उद्योगों की विनिर्माण प्रक्रिया के आधार पर उनका विस्तृत वर्गीकरण किया है। उद्योगों को उनके प्रदूषण सूचकांक के आधार पर लाल, नारंगी, हरे और सफेद की श्रेणी में बांटा गया है। हमारी प्रक्रिया निवेश के अनुकूल है और बिना किसी इंसानी हस्तक्षेप के ऑनलाइन मंजूरी हासिल की जा सकती है। यह कारोबारी सुगमता के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की सिंगल विंडो प्रणाली से जुड़ी है।
यूपीपीसीबी की भविष्य की योजनाएं क्या हैं?
हम लगातार जन-जागरूकता कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं, जिनमें संवाद सत्र और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म शामिल हैं। साथ ही भविष्य की तकनीकी उन्नयन आवश्यकता पूरी करने के लिए शोध एवं विकास प्रकोष्ठ भी बनाया गया है।