कॉर्पोरेट बॉन्ड पर यील्ड बढ़ने के बावजूद भारतीय कंपनियां पूंजीगत व्यय के लिए बैंकों से उधार लेने में दिलचस्पी नहीं दिखा रही हैं। इसकी वजह यह है कि बॉन्ड पूंजी बाजार में मौजूदा दरों की तुलना में उधारी दरें ऊंची देनदारियों के कारण अब भी ऊंचे स्तर पर हैं।
बैंकिंग उद्योग और बॉन्ड बाजार के कारोबारियों का कहना है कि बैंकों से रकम नहीं लेने का एक कारण यह भी है कि कंपनियों के पास फिलहाल पर्याप्त नकदी उपलब्ध है जिससे वे अपनी तात्कालिक जरूरतें पूरी कर सकते हैं। पहली तिमाही में शानदार प्रदर्शन करने के बाद प्राथमिक बॉन्ड बाजार की रफ्तार सुस्त हो गई है।
जुलाई के बाद से नकारात्मक खबरों के कारण यील्ड 20-25 आधार अंक तक बढ़ गई जिससे बाजार में नए बॉन्ड आने की रफ्तार कम हो गई है। जुलाई की शुरुआत से 10 वर्ष की अवधि की सरकारी प्रतिभूतियों पर यील्ड 6.3 प्रतिशत के स्तर से बढ़कर अगस्त के अंत में 6.6 प्रतिशत हो गई है।
प्राइम डेटाबेस के आंकड़ों के अनुसार जुलाई और अगस्त में भारतीय कंपनियों ने वित्त वर्ष 2026 की अप्रैल-जून तिमाही में 3.42 लाख करोड़ रुपये की तुलना में घरेलू ऋण पूंजी बाजार से 1.19 लाख करोड़ रुपये से थोड़ी अधिक रकम जुटाई है। जुलाई में कंपनियों ने बॉन्ड के जरिये 69,125 करोड़ रुपये जुटाए, जबकि अगस्त में उन्होंने 50,152 करोड़ रुपये जुटाए थे।
नाम नहीं छापने की शर्त पर बॉन्ड बाजार के सूत्र ने कहा, ‘एसडीएल (राज्य विकास ऋण) पर यील्ड वर्तमान में इतनी अधिक हैं कि निवेशक कॉर्पोरेट बॉन्ड से दूर जा रहे हैं। यील्ड लगभग दैनिक और साप्ताहिक रूप से बढ़ रही हैं, इसलिए इस बात अंदाजा लगा पाना मुश्किल है कि उचित मूल्य क्या होना चाहिए। इसका नतीजा यह हुआ है कि दर बाजार (रेट मार्केट) काफी अव्यवस्थित और कमजोर प्रतीत होता है।‘
कॉर्पोरेट बॉन्ड की आमद कम हो गई है और यील्ड बढ़ने लगी हैं मगर कॉर्पोरेट ऋण वृद्धि में तेजी नहीं आई है। आरबीआई के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार 25 जुलाई को समाप्त पखवाड़े में बैंकिंग उद्योग में ऋण वृद्धि पिछले वर्ष की समान अवधि में 10.2 प्रतिशत की तुलना में सालाना आधार पर 6 प्रतिशत बढ़ी। यह जून में दर्ज 5.5 प्रतिशत की वृद्धि से थोड़ी अधिक है।