कारोबारी कुछ परिस्थितियों के विश्लेषण के लिए ‘ज्ञात-अज्ञात’ शब्द का प्रयोग करते हैं। उदाहरण के लिए सालाना बजट को ले सकते हैं या फिर भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समीक्षा को। आपको पता होता है कि ये कब होने वाला है और आपको पता होता है कि इसका वित्तीय प्रभाव होगा। परंतु आपको यह नहीं पता होता है कि इसका क्या असर होगा। आप ज्ञात समय के आधार पर संसाधन जुटाते हैं, परिदृश्य तैयार करते हैं और उसके अनुरूप कदम उठाते हैं।
इस समय दो ऐसी परिस्थितियां हैं जिनमें ‘अज्ञात’ का तत्व और आर्थिक प्रभाव निहित हैं। इनमें से एक है वैश्विक शुल्क जंग और दूसरा है पहलगाम में आतंकी घटना के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच गतिरोध।
टैरिफ की जंग ‘ज्ञात-अज्ञात’ की श्रेणी में आती है। टैरिफ की नई दरें 90 दिनों के लिए स्थगित की गई हैं और यह अवधि जुलाई में समाप्त हो जाएगी। डॉनल्ड ट्रंप के बारे में अनुमान लगाना मुश्किल है। इस समय उन्होंने खुद को पीछे कर लिया है लेकिन उनके पास अधिक विकल्प नहीं हैं।
वह अंतिम प्रस्तावित स्तर पर टैरिफ लागू कर सकते हैं। संभव है कि वह चीन पर खास टैरिफ लगाने को लेकर पुनर्विचार करें। या फिर वह अप्रैल 2025 के पहले ढांचे पर वापस जा सकते हैं और ऐसा दिखा सकते हैं मानो कुछ हुआ ही नहीं हो। हर परिणाम के अलग वित्तीय प्रभाव हैं। 90 दिन की अवधि समाप्त होने के बाद कारोबारियों को अत्यधिक अस्थिरता के लिए तैयार रहना होगा। हर हेज फंड समय को ध्यान में रखकर संसाधन जुटा रहा होगा। कारोबारी मौजूदा प्रस्तावित ढांचे के लागू होने को लेकर कयास लगा रहे होंगे या फिर वे आगे और मोलभाव के बाद टैरिफ को नए सिरे से निर्धारित करने को लेकर दांव लगा सकते हैं। प्रस्तावित ढांचे को लागू किए जाने की स्थिति में बाजार कहीं अधिक गिरावट का शिकार हो सकता है। अगर टैरिफ पूरी तरह वापस लिया जाता है तो बाजार में राहत की तेजी आ सकती है जो कुछ समय तक बरकरार रहेगी। टैरिफ में कटौती से भी बाजार में राहत रैली हो सकती है, या एक दायरे में उतार-चढ़ाव हो सकता है, जबकि व्यापार ‘सौदों’, जैसा कि ट्रंप उन्हें कहते हैं, पर बातचीत हो सकती है।
अगर टैरिफ को पूरी तरह वापस ले लिया जाता है तो भी वैश्विक अर्थव्यवस्था में तीन महीने तक उथलपुथल रहेगी जिससे राजस्व में कमी आएगी और कमाई में भी। इससे मध्यम अवधि में बाजार में गिरावट आएगी और अगर मुद्रास्फीति बढ़ती है तथा अमेरिकी फेडरल रिजर्व दरों में और कटौती करने से इनकार करता है तो लंबे समय तक मंदी का बाजार बना रह सकता है। लंबी अवधि की बात करें तो जुलाई में चाहे जो भी हो, इस गतिरोध ने आपूर्ति श्रृंखला और कारोबारी रिश्तों की समीक्षा को बढ़ावा दिया है और सीमा पार व्यापार के मामलों में यह डॉलर से दूरी बनाने की प्रक्रिया को भी गति प्रदान कर सकता है।
भारत के व्यापार खाते की बात करें तो हमारा वस्तु आयात करीब 700 अरब डॉलर का और वस्तु निर्यात 400 अरब डॉलर का है। यह सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का करीब एक तिहाई है। आईफोन का उदाहरण दिखाता है कि भारत चीन प्लस एक की रणनीति का लाभार्थी हो सकता है। जो विनिर्माता चीन से बाहर निर्माण करवाना चाहते हैं वे कलपुर्जों को भारत आयात करके यहीं असेंबल करा कर उत्पाद तैयार करवा सकते हैं। इसमें मूल्यवर्धन न्यूनतम होगा लेकिन रोजगार को बढ़ावा मिलेगा और खपत में बढ़ोतरी होगी। कमजोर वैश्विक आर्थिक गतिविधियों का परिणाम कम ऊर्जा कीमतों के रूप में भी सामने आ सकता है जो एक सकारात्मक बात होगी क्योंकि भारत बड़े पैमाने पर ऊर्जा का आयात करता है।
अगर अमेरिका दंडात्मक टैरिफ लागू रखता है तो चीन भी वैश्विक बाजारों में अपने सस्ते जिंस और सस्ती वस्तुओं की भरमार कर देगा। इससे भारत के समूचे कारोबारी क्षेत्र का मुनाफा नष्ट हो सकता है और कुछ चुनिंदा कारोबारों का मुनाफा बढ़ सकता है। उदाहरण के लिए सस्ता स्टील अधोसंरचना परियोजनाओं की लागत कम करेगा जबकि भारतीय स्टील निर्माताओं पर इसका बुरा असर होगा। भारत के नीति निर्माता भी एंटी डंपिंग टैरिफ ढांचा तैयार करने को मजबूर सकते हैं।
दूसरी परिस्थिति में कई ‘ज्ञात-अज्ञात’ शामिल हैं। भारत-पाकिस्तान गतिरोध के बारे में एक बात जो अनुमानित है वह यह है कि दोनों देशों के राजनीतिक प्रतिष्ठान अपने-अपने नागरिकों के समक्ष जीता का दावा करेंगे भले ही वास्तव में कुछ भी घटित हो। संभव है कि भारत और पाकिस्तान दोनों वास्तविक लड़ाई के बजाय माहौल बनाते रहें। विशेष बलों की छापेमारी, मिसाइल हमलों और उनके प्रत्युत्तर के रूप में सीमित लड़ाई भी देखने को मिल सकती है। या फिर करगिल में बनी परिस्थितियों के उलट हालात भी बन सकते हैं जहां भारत नियंत्रण रेखा के पास के ऊंचे इलाकों पर कब्जा कर ले। या फिर दोनों देशों के बीच खुली जंग भी हो सकती है। भारत सिंधु नदी के ऊपर इलाके पर अपने नियंत्रण का फायदा उठाते हुए पाकिस्तान को ताजा पानी जाना रोक सकता है। चीन पूर्वोत्तर में ब्रह्मपुत्र का जल रोक कर जवाब दे सकता है। पानी को लेकर छिड़ने वाली जंग का असर पानी की कमी से जूझ रहे भारतीय उपमहाद्वीप में दशकों तक नजर आ सकता है।
इस ‘ज्ञात-अज्ञात’ के वित्तीय असर के बारे में अनुमान लगा पाना मुश्किल काम है। भारत के पास बड़ा और विकसित होता हुआ सैन्य-औद्योगिक और वैमानिकी क्षेत्र है। रक्षा अनुबंध बहुत अनियमित होते हैं और परियोजनाओं में अक्सर दशकों की देरी हो जाती है। युद्ध की स्थिति बनने पर रक्षा संबंधी गतिविधियों में तेजी आ सकती है और बजट आवंटन में बढ़ोतरी हो सकती है। यह निवेशकों के लिए एक ध्यान देने वाला क्षेत्र हो सकता है।