पिछला वित्त वर्ष (2023-24) निजी बैंकों के लिए बेहतर और सरकारी क्षेत्रों के लिए शानदार रहा। सभी बैंकों की समेकित शुद्ध आय में विस्तार हुआ और ज्यादातर समय शुद्ध ब्याज मार्जिन भी बरकरार रहा।
बैंकों की गैर ब्याज आय भी बढ़ी क्योंकि बैंकों ने पूरक उत्पादों की बिक्री की व्यवस्था बढ़ाई और उनकी शुल्क आय भी बढ़ी है। समस्त फंसे हुए कर्ज (GNPA) में तेजी से कमी आई। शुद्ध एनपीए में भी कमी आई है।
कई मामलों में प्रोविजन में कमी आई है या उनकी स्थिति उलट गई है क्योंकि मुश्किल कर्ज की वसूली हुई है। इससे मुनाफा बढ़ा है और ऋण की लागत कम हुई है।
वित्त वर्ष 23 की तुलना में वित्त वर्ष 24 में ब्याज आय की बात करें तो निजी बैंकों के लिए यह सालाना आधार पर 38 फीसदी बढ़ी जबकि सरकारी बैंकों के मामले में 26 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
एनपीए की बात करें तो नॉमिनल और ऋण के प्रतिशत दोनों ही रूपों में इसमें कमी आई है। सरकारी बैंकों का समेकित जीएनपीए मार्च 24 में 3.4 लाख करोड़ रुपये रहा जबकि मार्च 22 में यह 5.4 लाख करोड़ रुपये था। मार्च 24 में शुद्ध एनपीए 72,544 करोड़ रुपये रहा जबकि मार्च 22 में यह 1.54 लाख करोड़ रुपये था। मार्च 24 में निजी बैंकों का जीएनपीए 1.24 लाख करोड़ रुपये रहा जबकि दो वर्ष पहले यह 1.74 लाख करोड़ रुपये था।
निजी बैंकों का शुद्ध एनपीए मार्च 24 में 29,000 करोड़ रुपये रहा जबकि दो वर्ष पहले यह 40,500 करोड़ रुपये था। अधिकांश बैंक प्रोविजन को कम करते हुए भी अपने एनपीए को एक फीसदी से कम रखने में कामयाब रहे। इसके परिणामस्वरूप अधिकांश बैंकों की बैलेंस शीट अब बेहतर है।
इस संदर्भ में शेयर बाजार की प्रतिक्रिया विश्लेषण करने लायक है। नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) के निजी बैंक सूचकांक ने गत वर्ष 6 फीसदी प्रतिफल दिया। यह मानक निफ्टी 50 की तुलना में कमजोर रहा।
बैंक निफ्टी जिसमें निजी क्षेत्र और सरकारी बैंक दोनों (निजी बैंकों का भार अधिक) शामिल हैं ने 8.3 फीसदी प्रतिफल दिया। सरकारी बैंक सूचकांक ने 7.8 फीसदी प्रतिफल दिया।
सरकारी बैंकों का मूल्यांकन कम रहा और फंसे हुए कर्ज का स्तर अधिक था। हालांकि निजी बैंकों को अभी भी मूल्यांकन पर अधिक रियायत मिल रही है और उनकी बैलेंस शीट बेहतर है। सरकारी बैंकों की बैलेंस शीट में उल्लेखनीय सुधार का अर्थ यह है कि उनमें से कई की रेटिंग में सकारात्मक सुधार होगा।
तीन अंकों के प्रतिफल के साथ बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले बैंकों में बैंक ऑफ महाराष्ट्र, पंजाब नैशनल बैंक, इंडियन ओवरसीज बैंक, यूनियन बैंक और सेंट्रल बैंक शामिल हैं। ये सबसे अधिक जीएनपीए वाले बैंक थे।
इसके विपरीत भारतीय स्टेट बैंक (SBI) और बैंक ऑफ बड़ौदा (BOB) जो दो सबसे मजबूत और बेहतर पूंजीकरण वाले बैंक हैं उनके शेयरों को भी अपेक्षाकृत कम मान्यता मिली, हालांकि उन्होंने भी 40 फीसदी से अधिक प्रतिफल दिया जो अपेक्षाकृत बेहतर है।
बड़े निजी बैंकों की बात करें तो एचडीएफसी बैंक (HDFC Bank) को पिछले वर्ष ऋणात्मक प्रतिफल हासिल हुआ। एचडीएफसी के साथ उसके एकीकरण के असर को लेकर बाजार अभी भी अनिश्चित है। कई तरह से देखें तो बैंक सकारात्मक भविष्य की ओर देख रहे हैं। वे मजबूत कारोबारी ऋण और वृद्धि में तेजी की उम्मीद कर रहे हैं। उन्हें यह उम्मीद भी है कि मुद्रास्फीति के तय लक्ष्य तक पहुंचने के बाद मौद्रिक नीति सहज होगी और दरों में कटौती की जाएगी।
बहरहाल केंद्रीय बैंक ने असुरक्षित ऋण की कई श्रेणियों में जोखिम का आकलन बढ़ा दिया है और अधोसंरचना संबंधी ऋण की प्रोविजनिंग बढ़ाने का प्रस्ताव है। ऋण-जमा अनुपात भी सख्त है और ऐसे में बैंकों पर जमा पर ब्याज बढ़ाने का दबाव है।
इसका असर ब्याज मार्जिन पर भी पड़ेगा। यह क्षेत्र अच्छी स्थिति में है और रिजर्व बैंक का सख्त नियंत्रण निकट भविष्य में मुनाफे पर असर डालेगा। वृहद आर्थिक नजरिये से बैंकिंग क्षेत्र अभी इस स्थिति में है कि निजी क्षेत्र के पूंजीगत व्यय में सुधार का समर्थन कर सके।