बाढ़ प्रबंधन से जुड़ा एक बड़ा विरोधाभास बेहद कठिन स्थिति पैदा कर देता है। इस वजह से स्वच्छ जल की आपूर्ति अनिवार्य रूप से प्रभावित हो जाती है। बाढ़ का पानी गंदा होता है और एक बार जब यह पानी के आपूर्ति तंत्र से जुड़ जाता है तब विकल्प बेहद सीमित और स्पष्ट होते हैं जैसे कि पानी की आपूर्ति बंद कर दी जाए या हैजा जैसी बीमारियों की स्थिति से निपटा जाए।
दिल्ली फिलहाल इस समस्या का सामना कर रही है और बेंगलूरु को पिछले साल इसी तरह की स्थिति से निपटना पड़ा था। अब हिमाचल प्रदेश को भी इससे निपटना होगा। जलवायु परिवर्तन (Climate change) के कारण दुनिया भर में दिख रहा चरम स्तर का मौसम अब एक वैश्विक मुद्दा बन गया है।
देश में शहरी योजना की स्थिति बेहद खराब
भारत विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाली घटनाओं के चलते बेहद असुरक्षित है। इसकी वजह यह भी है कि नगरपालिका का बुनियादी ढांचा बेहद खराब है और निश्चित तौर पर यह जल को लेकर दबाव की स्थिति में है। इसके साथ-साथ देश में शहरी योजना की स्थिति बेहद खराब है या इसका अस्तित्व ही नहीं है।
पिछले 30 वर्षों में काम की तलाश में गांव के लोगों का पलायन, शहरों की ओर लगातार हुआ है। इसकी वजह से शहरी आबादी में 15 करोड़ से अधिक लोग जुड़ गए हैं। इसके अलावा गांव कस्बे बन गए हैं और अब कस्बे शहर बन गए हैं। नतीजतन, शहरों में पानी की मांग बढ़ गई है। वहीं पानी के पुराने और रिसाव वाले आपूर्ति तंत्र और नाली की प्रणाली को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है।
दिल्ली में पानी की आपूर्ति का 40 प्रतिशत रिसाव का शिकार
दिल्ली में पानी की आपूर्ति का 40 प्रतिशत रिसाव का शिकार हो जाता है और कई जगहों पर पानी की चोरी भी होती है जबकि बेंगलूरु को करीब 29 प्रतिशत का नुकसान होता है। अन्य नगरपालिकाओं में भी यही स्थिति है। इसके अलावा, जल की शुद्धता की उपचार क्षमता और नाली की क्षमता भी घट गई है।
इसके अलावा, मौजूदा जल स्रोत की जगहें, जो जल निकासी और पानी की आपूर्ति बढ़ाने में मदद कर सकती थीं, उन्हें निर्माण कार्यों के मकसद से पानी निकाल कर सुखा दिया गया है या उपेक्षा के कारण उसमें बस गाद जमा हो गई है।
दिल्ली की पुरानी मुगल नहर प्रणाली की स्थिति बेहद खराब है और यमुना की स्थिति तो वर्णन से परे है। बेंगलूरु में उन जगहों पर मॉल और अपार्टमेंट हैं जहां झीलें हुआ करती थीं। कोलकाता में आर्द्रता वाली जमीन का पुनर्ग्रहण काफी तेज गति से हुआ है। जब जल के स्रोत जैसे कि तालाब, झील, नदी आदि गायब हो जाते हैं तब जल निकासी प्रणाली प्रभावी ढंग से काम करना बंद कर देती है। ऐसे में बारिश का पानी, झीलों को भरने या नहरों से नदी में बहने के बजाय सड़कों पर भर जाता है।
इस तरह की स्थिति को देखते हुए अंदाजा होता है कि जल स्रोत निकायों के नवीनीकरण का काम अभी कई पीढ़ियों तक चलेगा। यूरोप और अमेरिका में नदियों की सफाई के साथ-साथ आमतौर पर प्रदूषण को कम करने में 20 से अधिक साल लगते हैं।
सफाई के अलावा, भारत को नहरों और नदियों से गाद निकालने, अधिक गंदे नाली के पानी और औद्योगिक स्तर पर निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों को बहने से रोकने के साथ ही बिल्डरों को जल स्रोत निकायों को भरने पर प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता होगी। यहां तक कि बारिश के पानी की मदद से जल स्तर का प्रबंधन करने वाली जल संचयन प्रणाली को भी हर जगह अनिवार्य नहीं बनाया गया है जबकि ऐसा होना चाहिए।
वास्तव में यह एक बहुत बड़ा काम है जिसमें बहु-आयामी पहलू, अच्छी इंजीनियरिंग, स्मार्ट योजना और सख्त नियमों की आवश्यकता आदि शामिल है। इसके अलावा, जल निकासी, जल आपूर्ति और नाली से जुड़े तंत्र में सुधार करना वास्तव में वित्तीय मोर्चे के लिहाज से बिना लाभ का साबित हो सकता है।
वहीं इस तरह के बुनियादी ढांचे पर किए जाने वाले निवेश के प्रतिफल, वित्तीय संदर्भ के लिहाज से नकारात्मक है और सामाजिक-राजनीतिक नतीजे बेहद अस्पष्ट है। इस तरह के परिणाम देने में लंबा समय लगता है इसलिए यह जरूरी नहीं कि ऐसी परियोजनाओं को शुरू करने वाली राजनीतिक पार्टी को वोट का लाभ मिले। संभव है कि जो नई पार्टी सरकार बनाए उसे दो चुनावों में इसका लाभ मिल जाए।
आप यह तर्क दे सकते हैं कि बेहतर पानी और नाली आदि से जुड़ी बेहतर सेवाओं वाले शहर को अधिक संसाधन मिलेंगे जो आखिरकार बड़े पैमाने के कर राजस्व का कारण बनेगा। लेकिन अगर यह सच है तब भी इसके साकार होने में वर्षों लग सकते हैं और इसके उलट एक तर्क यह है कि अक्सर गंभीर परिस्थितियों में जीने वाले ग्रामीण उच्च आमदनी की तलाश में किसी भी तरह से पलायन जरूर करेंगे।
दूसरी तरफ, एक बिल्डर अगर निर्माण की कोई भी योजना बनाता है तो इसका मतलब यह होगा कि शहरी स्थानीय निकाय में पैसा जाएगा और अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यह उन व्यक्तियों के लिए और भी अहम होगा जो इसकी मंजूरी देते हैं। इसके अलावा उच्च स्तर के कर के समान तर्क और जल्दी से लागू होंगे क्योंकि दुकानें और विभिन्न तरह की सेवाएं इस नए सुविधा केंद्र के चारों ओर फैल जाएंगे।
मैंने एक झील पर बने एक मॉल की कहानी सुनी है। नगरपालिका ने कहा कि वह लगभग चार महीने बाद प्रस्तावित स्थल का निरीक्षण करेगी। इसी दौरान इस योजना के प्रवर्तकों ने उस झील को भरने के लिए मिट्टी और रेत के ट्रक मंगा लिए। यह सभी के लिए जीत वाली स्थिति थी लेकिन निश्चित रूप से इससे एक और जल स्रोत का निकाय खत्म हो गया था।
वित्तीय और सामाजिक-राजनीतिक लाभ में असंतुलन एक प्रमुख कारण है जिसकी वजह से यह आपदा कई दशकों से धीमी गति से हुई है। जब तक, इस तरह के असंतुलन को रोका नहीं जाता है, जल प्रबंधन प्रणाली के क्षरण में तेजी आएगी क्योंकि जलवायु परिवर्तन के साथ शहरी आबादी का घनत्व बढ़ता है।