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ट्रंप का H-1B वीजा कदम: अमेरिकी कंपनियों के लिए महंगा, भारत की अर्थव्यवस्था के लिए लाभकारी

इस फैसले का सबसे ज्यादा असर भारतीयों पर पड़ेगा क्योंकि अमेरिका में एच-1बी वीजा पाने वालों में लगभग तीन-चौथाई भारतीय होते हैं। बता रहे हैं देवा​शिष बसु

Last Updated- September 23, 2025 | 11:04 PM IST
H-1B visa

अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने 19 सितंबर को एक नया बड़ा फैसला किया। उन्होंने आदेश दिया कि अब से अमेरिका के बाहर के विदेशी कर्मचारियों के लिए एच-1बी वीजा की सभी नई अर्जियों पर एक लाख डॉलर का शुल्क लगेगा। यह कदम कंपनियों को विदेशी कर्मचारियों को काम पर रखने से रोकने के लिए है, खासतौर पर शुरुआती स्तर की नौकरियों में।

इस फैसले का सबसे ज्यादा असर भारतीयों पर पड़ेगा क्योंकि अमेरिका में एच-1बी वीजा पाने वालों में लगभग तीन-चौथाई भारतीय होते हैं। एच-1बी वीजा तंत्र के तहत, कंपनियां किसी विशेष काम के लिए विदेशी कर्मचारियों को काम पर रखने के लिए सरकार से अनुमति मांगती हैं, खासतौर पर प्रौद्योगिकी या इंजीनियरिंग के क्षेत्र में।

वीजा शुल्क बढ़ाने के इस फैसले से इन्फोसिस, टीसीएस, विप्रो और एचसीएल जैसी बड़ी आउटसोर्सिंग कंपनियां सबसे ज्यादा प्रभावित होंगी जो लंबे समय से कनिष्ठ स्तर के इंजीनियरों को अमेरिका भेज रही हैं। हालांकि, जो कंपनियां आर्टिफिशल इंटेलिजेंस, चिप डिजाइन, बायोटेक्नोलॉजी या साइबर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में विशेषज्ञों को काम पर रखना चाहती हैं, वे शायद यह शुल्क चुकाने के लिए तैयार हो सकती हैं खासतौर पर वहां के लिए जहां घरेलू स्तर पर प्रतिभाशाली लोगों की कमी है और वेतन बहुत ज्यादा है।

अमेरिका में एफ-1 वीजा पर पढ़ रहे छात्रों को शायद राहत मिल सकती है अगर वे देश छोड़े बिना अपने एफ-1 वीजा को एच-1बी में बदलते हैं। इससे उनके लिए अमेरिका में ही रहने और स्थायी नागरिकता के लिए आवेदन करने का एक बड़ा कारण बनेगा। अगर मुख्य कर्मचारी प्रभावित होते हैं तो उन पर निर्भर आश्रितों को भी परेशानी हो सकती है। संक्षेप में कहा जाए तो नया शुल्क, भारत के पेशेवर प्रवासियों के एक बड़े वर्ग की गतिशीलता में बड़ा बदलाव लाएगा।

ट्रंप की व्यापार वार्ताएं अब तक मुख्य रूप से चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान और वियतनाम जैसे देशों से सामान के आयात-निर्यात पर केंद्रित थीं। हालांकि इन देशों ने इस नुकसान से बचने के लिए जल्दी ही ट्रंप के साथ समझौते कर लिए, कुछ ने तो बहुत ज्यादा निवेश और नौकरियां देने का भी
वादा किया।

भारत ने दबाव में आकर न तो कोई समझौता किया और न ही झूठे वादे किए, शायद इसलिए क्योंकि उसे लगा कि उसके पास खोने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है। लेकिन भारत दूसरों की तुलना में ज्यादा कमजोर है क्योंकि सॉफ्टवेयर निर्यात और भारत आने वाली विदेशी मुद्रा ही भारतीय रुपये को सहारा देते हैं। इन दोनों के बिना भारत की आर्थिक वृद्धि पर बुरा असर पड़ेगा। ट्रंप ने नए एच-1बी शुल्क के साथ भारत पर थोड़ा और दबाव डाला है। वह और भी नुकसान पहुंचा सकते हैं, जिसमें भेजी हुई रकम पर कर लगाना भी शामिल है।

व्हाइट हाउस का कहना है कि एच-1बी कार्यक्रम का दुरुपयोग हो रहा है। इस आदेश में अमेरिकी कंपनियों (बिना नाम लिए) पर आरोप लगाया गया है कि वे अमेरिकियों को नौकरी से निकाल रही हैं और कम वेतन पर विदेशियों को काम पर रख रही हैं। माइक्रोसॉफ्ट, इंटेल, एमेजॉन और सेल्सफोर्स जैसी कंपनियां इसमें शामिल हो सकती हैं, जिन्होंने हजारों घरेलू नौकरियां कम की हैं और हजारों एच-1बी वीजा के लिए मंजूरी दी है। अमेरिकी कंपनियां, विदेशी प्रतिभाशाली लोगों की मांग करती हैं जबकि वे अपने ही देश के कर्मचारियों को नौकरी से निकाल रही हैं जिससे यह धारणा बनती है कि यह योजना कौशल विकास के बजाय लागत बचाने पर आधारित है।

रुझान रहेगा बरकरार?

इस प्रतिबंध की वजह से शेयर बाजार और खासकर प्रौद्योगिकी कंपनियों के शेयरों में गिरावट देखी गई। लेकिन सवाल यह है कि प्रतिबंध लंबे समय तक चलेगा या नहीं और अगर चलता है तो क्या यह भारत के लिए फायदेमंद साबित होगा?

सबसे पहले, अमेरिका के अंदर ही इसका विरोध होगा। इस एक कदम से सिलिकॉन वैली में प्रतिभाशाली लोगों की आपूर्ति कम हो गई है। वर्ष 2023 में, लगभग 65 फीसदी एच-1बी वीजा ‘कंप्यूटर-संबंधी’ भूमिकाओं (सॉफ्टवेयर इंजीनियर, सिस्टम विश्लेषक, आदि) के लिए थे।

एच-1बी वीजा के शीर्ष प्रायोजकों में एमेजॉन, गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, मेटा, ऐपल और अमेरिका में काम करने वाली कुछ बड़ी भारतीय कंपनियां जैसे टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज शामिल हैं। स्टार्टअप, अस्पताल, अनुसंधान प्रयोगशालाएं और वित्तीय सेवा कंपनियां भी एच-1बी कामगारों पर बहुत अधिक निर्भर होती हैं।
इस अतिरिक्त शुल्क से लागत बढ़ेगी, नई भर्तियों को हतोत्साहित किया जाएगा और दुर्लभ कौशल वाली परियोजनाओं के लिए प्रतिभाशाली लोगों को काम पर रखने की प्रक्रिया धीमी होगी। अगर विदेश से प्रतिभाशाली लोग नहीं आते हैं तब उच्च स्तर का प्रौद्योगिकी नवाचार धीमा हो सकता है। ऐसे में मुकदमेबाजी की संभावना बन सकती है और यह संभव है कि अमेरिकी अदालतें इन उपायों को सिरे से खारिज कर सकती हैं या फिर संशोधित कर
सकती हैं।

हालांकि विडंबना की बात यह है कि अगर यह प्रतिबंध जारी रहता है, तो यह वास्तव में भारत को फायदा पहुंचा सकता है। बहुराष्ट्रीय कंपनियां पहले से ही प्रवासन की परेशानी के बिना भारतीय प्रतिभाओं का लाभ उठाने के लिए भारत में वैश्विक क्षमता केंद्र (जीसीसी) में निवेश कर रही हैं। भारत में लगभग 1,700 जीसीसी हैं, जिनमें 19 लाख लोग कार्यरत हैं और जिन्होंने पिछले साल 64.6 अरब डॉलर का निर्यात राजस्व हासिल किया।

कुछ अनुमानों के अनुसार, वर्ष 2030 तक भारत में 2,400 से अधिक जीसीसी हो सकते हैं, जिनमें लगभग 30 लाख लोग काम करेंगे। अमेरिकी वीजा फीस के कारण इस रुझान में और तेजी आएगी। जो कंपनियां पहले कर्मचारियों को अमेरिका भेजती थीं, उन्हें अब लगेगा कि इसके बजाय बाहर अपने केंद्रों का विस्तार करना सस्ता और आसान है। ऐसे में प्रतिभाशाली लोग देश में ही बने रहेंगे लेकिन उनकी पहुंच वैश्विक परियोजनाओं तक भी होगी।

भारत पर इसका प्रभाव सिर्फ आंकड़ों तक ही सीमित नहीं होगा। ज्यादा कुशल इंजीनियर, डेटा वैज्ञानिक और उत्पाद प्रबंधक देश में ही रहेंगे, जिससे यहां प्रतिभाशाली लोगों का दायरा और बड़ा होगा। कंपनियां अपने काम को बड़े शहरों से आगे बढ़कर कोयंबत्तूर, कोच्चि, अहमदाबाद, जयपुर और भुवनेश्वर जैसे शहरों में भी फैलाएंगी, जिससे वे उन प्रतिभाओं का लाभ उठा पाएंगी जिनसे कोई काम नहीं लिया जा सका है। भारतीय केंद्र, सिर्फ कोडिंग या डेटा एंट्री जैसे काम के बजाय, अब अधिक महत्त्व वाले काम जैसे कि शोध एवं विकास, डिजाइन और उत्पाद प्रबंधन भी करेंगे। इससे एक वैश्विक ‘प्रतिभा केंद्र’ के रूप में भारत की भूमिका और भी मजबूत होगी।

ट्रंप शायद सोच रहे होंगे कि वह भारत को कमजोर कर रहे हैं। लेकिन, असलियत में वह इसे एक मजबूत, आत्मनिर्भर और वैश्विक रूप से एकीकृत मॉडल की ओर ले जाने में अप्रत्यक्ष रूप से मदद कर रहे हैं। दरअसल एच-1बी वीजा शुल्क एक चुनौती और प्रोत्साहन दोनों ही है। वास्तव में यह आयातित श्रम पर निर्भर अमेरिका की कंपनियों के लिए महंगा है। लेकिन यह सिलिकॉन वैली का सपना देखने वाले भारतीय कामगारों के लिए भी असुविधाजनक है। हालांकि यह संभावित रूप से भारत की घरेलू अर्थव्यवस्था के लिए एक वरदान साबित हो सकता है। ऐसे में यह कहना मुनासिब हो सकता है कि ट्रंप की संरक्षणवाद की नीति के अनचाहे परिणाम, उनके इरादों से कहीं अधिक उदार साबित हो सकते हैं।

First Published - September 23, 2025 | 11:01 PM IST

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