उत्तराखंड के जोशीमठ (Joshimath) में इस साल के शुरू में हुए भू-धंसाव से लगभग दो तिहाई नगर क्षतिग्रस्त हो गया है। नगर के हर तीन में से दो घरों में दरारें हैं। एक नई रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के नेतृत्व में एक समिति ने पाया है कि जोशीमठ में जमीन धंसने की घटनाओं का लगभग 65 प्रतिशत घरों पर असर पड़ा है।
इससे करीब 565 करोड़ रुपये की संपत्ति को नुकसान पहुंचा है। रिपोर्ट के अनुसार जोशीमठ के कुल 2,152 घरों में से करीब 1,403 घर जमीन धंसने से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं और उन्हें तुरंत बनाए जाने की जरूरत है।
यह रिपोर्ट 35 सदस्यों वाली एक टीम के विश्लेषण पर आधारित थी, जिसने नुकसान का आकलन करने और प्रभावित क्षेत्रों में दीर्घकालिक बहाली और पुनर्निर्माण के लिए जरूरी मदद का आकलन करने के लिए 22 अप्रैल से 25 अप्रैल तक जायजा लिया था।
इस टीम में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, संयुक्त राष्ट्र एजेंसियां, सीएसआईआर- केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान और अन्य एजेंसियों के पेशेवर लोग शामिल थे। बिज़नेस स्टैंडर्ड ने इस रिपोर्ट की प्रति का जायजा लिया है।
इस आकलन में नुकसान की सीमा के आधार पर घरों को विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है। इन श्रेणियों को विभिन्न रंगों के आधार पर वर्गीकृत किया गया है जैसे कि काला (आंशिक रूप से ध्वस्त), लाल (असुरक्षित और गिराने की जरूरत), पीला (मरम्मत या रेट्रोफिटिंग की दरकार) और हरा (सुरक्षित) रंग। इस वर्गीकरण के तहत 472 इमारतें काली और लाल रंग की श्रेणी में शामिल हैं जबकि 931 घर पीले रंग में वर्गीकृत किए गए हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भूस्खलन और अन्य आपदाओं से बचाव के लिए आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त घरों को फिर से रहने लायक बनाना महत्वपूर्ण है। इसके लिए इन्हें बेहतर बनाने वाला नजरिया अपनाना चाहिए।’ पुनर्निर्माण की कुल लागत 422 करोड़ रुपये आने का अनुमान है जिसमें 472 घरों के पुनर्निर्माण पर 91 करोड़ रुपये और 931 घरों पर 331 करोड़ रुपये
खर्च होंगे।
रिपोर्ट में जोशीमठ में इमारतों के क्षतिग्रस्त होने के प्रमुख कारणों के लिए कमजोर निर्माण सामग्री, लोहे-सरियों का अपर्याप्त इस्तेमाल, संरचना से जुड़ी खामियों और तीखी ढलानों पर मकान बनाने को जिम्मेदार ठहराया गया है। रिपोर्ट में जोर देकर बताया गया है कि ईंट या पत्थरों की चिनाई के लिए मिट्टी मिले कमजोर मसाले के इस्तेमाल के कारण थोड़ी सी भी जमीन धंसने से इमारतों को व्यापक नुकसान हुआ।
जोशीमठ में भूस्खलन की यह पहली घटना नहीं
रिपोर्ट में स्थानीय प्रशासन द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों का भी जिक्र किया गया है। इन आंकड़ों के अनुसार 2 जनवरी, 2023 को गाद से भरा गंदा पानी 600 लीटर प्रति मिनट के हिसाब से छोड़ा गया जिसे 11 जनवरी, 2023 को घटाकर 200 लीटर प्रति मिनट कर दिया गया था। वर्तमान में गंदा पानी बिल्कुल नहीं छोड़ा जा रहा है।
रिपोर्ट में राज्य सरकार को सलाह दी गई कि वह मॉनसून के मौसम के समाप्त होने तक शहर में निर्माण कार्यों पर व्यापक प्रतिबंध लगा दे। मॉनसून के बाद जमीनी हकीकत का आकलन करने के बाद सिर्फ हल्की इमारतों के निर्माण की अनुमति देने का सुझाव भी उसने दिया। जोशीमठ में भूस्खलन की यह पहली घटना नहीं है। जोशीमठ में जमीन धंसने की घटनाएं पहले भी 1970 के दशक में हुई थीं।
गढ़वाल आयुक्त महेश चंद्र मिश्र की अध्यक्षता में गठित एक पैनल ने 1978 में एक रिपोर्ट दी थी जिसमें कहा गया था कि शहर और नीती तथा माणा घाटियों में बड़े निर्माण कार्य नहीं किए जाने चाहिए क्योंकि ये इलाके मोरेन पर स्थित हैं।
मोरेन असल में हिमनदों के खिसकने से उनके साथ आने वाली चट्टानों और मिट्टी से बना होता है। यह हिमालयी नगर भूकंप के लिए सबसे संवेदनशील क्षेत्रों में शामिल है और यहां भूस्खलन तथा अचानक बाढ़ का खतरा हमेशा रहता है।