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रक्षा अर्थव्यवस्था की दिलचस्प पहेली….नए सिरे से विचार करने का वक्त

यूक्रेन में चल रहा युद्ध सन 1945 के बाद सबसे गहन तीव्रता वाला युद्ध है। यूक्रेन में सालाना 50,000 लोग युद्ध के कारण मारे जा रहे हैं और रूस में यह संख्या 80,000 सालाना है।

Last Updated- October 18, 2023 | 10:45 PM IST
Govt approves capital acquisition of military hardware worth Rs 70,584 cr

विवादों और संघर्षों से भरे इस नए वैश्विक दौर में सैन्य उत्पादन पर नए सिरे से विचार करने का वक्त आ गया है। बता रहे हैं अजय शाह

यूक्रेन (Ukraine-Russia War) में चल रहे लंबे युद्ध के बाद अब गाजा में इजरायल (Israel-Hamas War) की सैन्य कार्रवाई ने सैन्य उत्पादन को वैश्विक बहस के केंद्र में ला दिया है। हालांकि दो देशों के बीच चल रहे गहन युद्ध और विद्रोह के बीच अंतर करना आवश्यक है।

अफगानिस्तान और इराक में चल रहे युद्धों को उग्रवादी विद्रोह कहा जा सकता है। अफगानिस्तान में तत्कालीन सोवियत संघ को सालाना औसतन 1,500 लोगों की जान गंवानी पड़ी। वहीं अफगानिस्तान में अमेरिका को सालाना औसतन 240 और इराक में 220 लोगों की जान गंवानी पड़ी।

वियतनाम में अमेरिका ने हर वर्ष 2,500 लोग खो दिए। ऐसी कीमत तब चुकानी पड़ी जब एक सक्षम सेना के सामने अनियमित या अपेक्षाकृत कमजोर विपक्ष था। गाजा में छिड़ा संघर्ष इसी श्रेणी का है।

गाजा की आबादी 20 लाख (Gaza Population) है और क्रय शक्ति समता के आधार पर उसकी प्रति व्यक्ति जीडीपी 5,500 डॉलर है। यह भारत के 7,100 डॉलर से भी कम है। वहां कोई व्यवस्थित अर्थव्यवस्था या कर आधार नहीं है। हमास को ईरान और रूस का समर्थन है लेकिन ये देश खुद कमजोर हैं और रूस तो खुद यूक्रेन युद्ध में उलझा हुआ है। उनके पास इजरायल से घिरे हुए गाजा में आपूर्तियां भेजने की भी क्षमता नहीं है।

ऐसी लड़ाइयां यकीनन दर्दनाक होती हैं लेकिन इसे किसी भी तरह समकक्षों के बीच जंग नहीं कहा जा सकता है। हमास लश्कर ए तैयबा जैसा है जिसने भयंकर आतंकवादी हमला करने में कामयाबी पाई। वह कोई सैन्य शक्ति नहीं है जिसे किसी अर्थव्यवस्था का समर्थन हासिल हो।

यूक्रेन में चल रहा युद्ध सन 1945 के बाद सबसे गहन तीव्रता वाला युद्ध है। यूक्रेन में सालाना 50,000 लोग युद्ध के कारण मारे जा रहे हैं और रूस में यह संख्या 80,000 सालाना है। इस युद्ध की तुलना वियतनाम, अफगानिस्तान, इराक और गाजा से नहीं हो सकती।

इन वजहों से दुनिया भर में सैन्य उत्पादन से जुड़ी पहेलियां प्रमुख रूप से यूक्रेन युद्ध के इर्दगिर्द तैयार हो रही हैं। वहां हथियारों की जरूरत उत्पादन क्षमता पर दबाव डाल रही है। यूक्रेन को हर वर्ष 15 लाख तोप के गोलों और एक लाख ड्रोन की आवश्यकता है।

रूस सालाना 20 लाख गोले तैयार कर रहा है और उसकी वार्षिक खपत 40 लाख गोलों की है। रूसी तोप की नली 2,500 राउंड तक गोले छोड़ सकती हैं और टैंकों की नली 500 राउंड। इनमें सुधार या इन्हें बदलने के लिए गहन इंजीनियरिंग तंत्र की आवश्यकता है।

एक छोटे से युद्ध में भी गोला-बारूद की कमी पड़ सकती है। लंबी जंग अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता की परीक्षा लेती हैं। रूस को उत्तर कोरिया और ईरान का समर्थन है और यूक्रेन की तुलना में उसकी उत्पादन क्षमता कम है क्योंकि उसे उन देशों का समर्थन हासिल है जो कुल मिलाकर वैश्विक जीडीपी का 65 फीसदी तैयार करते हैं।

यह एक विशिष्ट युद्ध है जहां कई उपकरणों और हथियारों के ध्वंस की तस्वीरें सार्वजनिक रूप से मौजूद हैं। फिलहाल रूस की ओर 12,573 वाहनों और उपकरणों के टुकड़ों के अलावा यूक्रेन की ओर से 4,585 वाहन और उपकरणों के टुकड़े देखे जा सकते हैं। रूस के पाले में इस टूटफूट की मात्रा बहुत अधिक है।

परंतु विकसित देशों की आर्थिक शक्ति का रक्षा उत्पादन में बदलाव बहुत कठिन साबित हुआ है। सन 1989 के बाद विकसित देशों में रक्षा उत्पादन कम हुआ है। निजी स्तर पर लोग नए कारखानों की स्थापना में व्यय करने में घबरा रहे हैं क्योंकि यूक्रेन युद्ध समाप्त होने के बाद उनकी जरूरत नहीं रह जाएगी। विकसित देशों में खरीद प्रक्रिया में कई चीजों पर नजर डाली जाती है, ऐसे में अल्पावधि में दोनों पक्षों में आपूर्ति हासिल करने की होड़ रही।

यही वजह है कि हमें उत्तर कोरिया और ईरान से रूस को आपूर्ति होने और यूक्रेन को एक अरब डॉलर मूल्य के उपकरणों की आपूर्ति की अफवाह सुनने को मिली। यह भी सुनने में आया कि रूस का एक पोत दक्षिण अफ्रीका में सैन्य उपकरणों से लद रहा है। ऐसे में रक्षा अर्थशास्त्र के लिए तीन बातें हैं।

रक्षा क्षेत्र से जुड़ी यह मांग रक्षा विनिर्माण कंपनियों और उनके आपूर्तिकर्ताओं के लिए विस्तार की वजह बनेगी। अल्पावधि में यह खरीद उधारी से संचालित विस्तारवादी राजकोषीय नीति की वजह है। वृहद अर्थव्यवस्था के बारे में सोचें तो एक उदाहरण सामने है। सन 1989 में तत्कालीन सोवियत संघ का पतन होने के बाद वहां की सैन्य उत्पादन क्षमता के असैन्य उत्पादन में शामिल होने से शांति कायम करने में मदद मिली।

ऐसे में अब जबकि दोबारा बड़े पैमाने पर सैन्य उत्पादन की वापसी होगी तो असैन्य खपत पर अपरिहार्य रूप से नकारात्मक असर होगा। भारत में रक्षा उपकरणों के लिए अब हम रूस से अलग विकल्पों की ओर बढ़ रहे हैं। कई गरीब देश हैं जिन्होंने रूस के सस्ते उपकरणों पर भरोसा किया है और वे लागत तथा अन्य वजहों से वैकल्पिक स्रोतों की ओर नहीं जा पा रहे हैं। उनके लिए मुश्किल हालात हैं क्योंकि रूस खुद मात्रा, कीमत और तकनीकी उन्नति के क्षेत्र में पिछड़ रहा है।

जैसा कि विश्वजित बनर्जी और बेंजामिन काच ने मई 2022 में कहा भी था कि भारत के उत्पादों के लिए यह अवसर है कि वे इन बाजारों में आर्थिक कामयाबी हासिल करें और रूस को प्रतिस्थापित करते हुए अपना सैन्य प्रभाव बढ़ाएं। यह तीन चरणों में हो सकता है: पहला, रूसी मानकों के अनुरूप कलपुर्जे तैयार करना, उसके बाद रूसी प्लेटफॉर्म के सस्ते उन्नत संस्करण बनाना जो रूस की पेशकश से बेहतर हों और अंत में नाटो के मानकों को अपनाना और कम लागत पर उपकरण मुहैया कराना।

अभी तक रक्षा अर्थशास्त्र का वैश्विक माहौल यूक्रेन युद्ध से संचालित है। हमास को बड़े आकार का लश्कर ए तैयबा कहा जा सकता है लेकिन वह कोई सार्थक राज्य शक्ति नहीं है। रक्षा विनिर्माण में विश्व स्तर पर आपधापी है क्योंकि यूक्रेन युद्ध में बड़ी मात्रा में हथियारों की आवश्यकता है। आने वाले दिनों में कई बदलाव आ सकते हैं। व्लादीमिर पुतिन की आयु भी बढ़ रही है और उनके हाथ से समय भी निकल रहा है।

अमेरिका में दक्षिणपंथी राष्ट्रवाद अमेरिका में प्रबल है इसलिए कई शक्तिशाली लोग युद्ध चुन सकते हैं। उदाहरण के लिए शी चिनफिंग के नेतृत्व में चीन ताइवान या भारत पर हमला कर सकता है। हमें इसके लिए तैयार रहना चाहिए। ये युद्ध रक्षा उत्पादन में नई तरह की जटिलता को जन्म देंगे।
 (लेखक एक्सकेडीआर फोरम में शोधकर्ता हैं)

First Published - October 18, 2023 | 9:58 PM IST

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